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उपचुनाव के प्रचार अभियान में भाजपा से पिछड़ी कांग्रेस, कमलनाथ की तुलना में शिवराज ने की 3 गुना सभाएं

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विकास सिंह

, गुरुवार, 28 अक्टूबर 2021 (08:40 IST)
भोपाल। मध्यप्रदेश में उपचुनाव के लिए चुनाव प्रचार का शोर थमने के बाद अब उम्मीदवार डोर-टू-डोर कैंपेन कर रहे है। चुनाव के अंतिम दौर में मतदाताओं को रिझाने के लिए उम्मीदवार कोई कोर कसर नहीं छोड़ना चाहते है।  अगर एक पखवाड़े चले धुआंधार चुनाव प्रचार के आंकड़ों के नजरिए से देखें तो सत्तारूढ़ पार्टी भाजपा कांग्रेस पर हावी होती दिखती है। भाजपा की तरफ से पूरे चुनाव प्रचार अभियान की कमान संभालने वाले मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने 29 सिंतबर से शुरु किए अपने चुनावी प्रचार अभियान में कुल 39 जनसभाएं की।
 
इसके साथ मुख्यमंत्री ने पांच रातें भी चुनावी क्षेत्र जोबट, रैगांव, खंडवा, बुरहानपुर और पृथ्वीपुर में बिताई। चुनाव प्रचार के दौरान मुख्यमंत्री का समाज के कमजोर और आदिवासी के घर खाना खाने के साथ आदिवासियों के साथ पारंपरिक नृत्य भी किया। 
 
वहीं भाजपा प्रदेश अध्यक्ष वीडी शर्मा चुनावी रणनीति बनाने के साथ खंडवा लोकसभा और तीनों विधानसभा सीटों पर 21 जनसभाएं की। भाजपा की ओर से केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया, नरेंद्र सिंह तोमर, वीरेंद्र खटीक के साथ-साथ उत्तर प्रदेश के डिप्टी सीएम केशवप्रसाद मौर्य ने भी पृथ्वीपुर और सतना के रैंगाव में भाजपा उम्मीदवारों के लिए वोट मांगे। वहीं चुनाव प्रचार के अंतिम दौर में पूर्व मुख्यमंत्री उमा भारती और गृहमंत्री नरोत्तम मिश्रा ने पृथ्वीपुर और रैंगाव में मोर्चा संभालते हुए कई संभाएं की। इसके साथ ही सरकार के लगभग सभी मंत्रियों ने चुनावी क्षेत्रों में डेरा डाल कर चुनावी जनसंपर्क कर वोटरों को रिझाने की कोशिश की।
 
दूसरी ओर कांग्रेस की ओर से चुनाव प्रचार अभियान की कमान संभालने वाले कमलनाथ ने कुछ 13 सभाएं की वहीं पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह ने खंडवा लोकसभा और पृथ्वीपुर विधानसभा में चार सभा कर कांग्रेस उम्मीदवार के लिए वोट मांगे। चुनाव प्रचार के अंतिम दौर में राजस्थान के डिप्टी सीएम रह चुके सचिन पायलट ने खंडवा लोकसभा सीट पर  3 सभा कर गुर्जर वोटों को साधने की कोशिश की। इसके साथ कांग्रेस प्रभारी मुकुल वासनिक भी चार सभाएं की।
 
प्रदेश की खंडवा लोकसभा सीट और पृथ्वीपुर, रैंगाव और जोबट में 30 अक्टूबर को मतदान होगा। उपचुनाव के चुनाव परिणाम से प्रदेश की सत्ता समीकरणों पर वैसे तो कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा लेकिन 2023 के विधानसभा चुनाव से पहले इन चुनावों को सेमिफाइनल मुकाबले के तौर पर देखा जा रहा है। 
 

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