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टैक्स चोरी रोकने के लिए सारे टैक्स हटाना होंगे : अनिल बोकील

हमें फॉलो करें टैक्स चोरी रोकने के लिए सारे टैक्स हटाना होंगे : अनिल बोकील
, सोमवार, 8 मई 2017 (23:30 IST)
इंदौर। देश के प्रसिद्ध अर्थशास्त्री अनिल बोकील ने कहा है कि यदि हमें अपने देश में टैक्स चोरी को रोकना है तो उसके लिए सबसे बेहतर तरीका यही है कि देश से सारे टैक्स हटा दिए जाएं और उसके स्थान पर बैंक से ट्रांजेक्शन पर टैक्स लगाने की नई व्यवस्था को लागू कर दिया जाए।
 
बोकिल आज यहां अभ्यास मंडल की ग्रीष्मकालीन व्याख्यानमाला में जाल सभागार में 'विकासशील भारत वर्तमान व भावी आर्थिक परिदृश्य' विषय पर अपने विचार व्यक्त कर रहे थे। उन्होंने कहा कि पूरे विश्व में भारत ही एकमात्र ऐसा देश है, जहां बैंकों में पैसा कम जमा है और नकद लेनदेन ज्यादा है। विश्व के शेष सभी देशों में मुद्रा जमा स्थिति में ज्यादा है और नकद लेनदेन में कम है। 
 
उन्होंने कहा कि हमारे देश में अर्थव्यवस्था के समक्ष सबसे बड़ी चुनौती टैक्स चोरी, काला धन और भ्रष्टाचार के कारण पैदा हो रही है। उन्होंने कहा कि पिछले वर्ष 1000 और 500 के नोट बंद करने का सरकार ने फैसला लिया। इसके लिए हम पिछले 20 वर्षों से संघर्ष कर रहे थे। इस अवधि में जो भी सरकार बनी और जो भी व्यक्ति प्रधानमंत्री बना, उसके समक्ष इस बात को रखा गया है। 
 
जब सरकार ने नोटबंदी का फैसला ले लिया तो एक बड़ी बहस शुरू हुई थी। क्या सरकार यह फैसला ले सकती है? क्या इस बारे में संसद को भरोसे में नहीं लिया जाना चाहिए था लेकिन इस सारी बहस का कोई मतलब नहीं है क्योंकि हमारे देश का 1978 का जो कानून है, वह कानून इस बात की इजाजत देता है कि सरकार इस तरह के फैसले ले।
 
उन्होंने कहा कि 1992 से हमारे देश में बाजारवाद का दौर शुरू हो गया है। इस दौर में बाजार को उपभोक्ता चाहिए। ग्राहक चाहिए भिखारी नहीं। जिसकी खरीदने की क्षमता है, वही ग्राहक है और उसी के लिए बाजार है। यह हमारे देश की विडंबना है की खाद्यान्नों से गोदाम भरा लेकिन फिर भी किसान आत्महत्या कर रहा है और लाखों लोग भूखे रह रहे हैं। पूरे देश में भ्रष्टाचार के खिलाफ आक्रोश है। 
 
अर्थशास्त्री बोकिल के अनुसार सरकार ने 2000 का जो नया नोट जारी किया है, उसे छापने में सरकार को मात्र तीन रुपए 60 पैसे का खर्च आता है। हमारे देश में सभी माफियाओं का काम बड़े नोटों से चल रहा है। यही कारण है कि जब हजार के नोट को बंद किए गए तो पूरे देश में चर्चा हुई। इसके ठीक विपरीत स्थिति अमेरिका में है। वहां सबसे बड़ा डॉलर शो का है लेकिन जनता उस डॉलर का उपयोग नहीं करती है, बल्कि अमेरिका की सरकार उस डॉलर का उपयोग अन्य देशों से माल लेने में करती है।
 
बोकिल ने कहा कि हमारा देश एक बहुत बड़ा बाजार है। यह प्रतिस्पर्धा बहुत ज्यादा है, यही कारण है कि खरीदी करने के लिए लोन तो काफी लिए जाते हैं और लोन देना भी आसान है लेकिन लोन की राशि की वसूली करना मुश्किल काम है। डूबत लोन के कारण ही बैंकिंग व्यवस्था की हालत खराब है। इसी से बैंकों में एनपीए बढ़ रहे हैं। हमारे देश में गरीबों पर टैक्स लगाना सबसे गलत काम है।
 
देश में संगठित मजदूरों की संख्या केवल चार करोड़ है जबकि देश की आबादी 130 करोड़। इसके बाद भी गरीबों से अघोषित रूप से सरकार द्वारा पेट्रोल सहित सभी वस्तुओं पर टैक्स लिया जाता है। उन्होंने कहा कि किसी भी नीति और नियम की आलोचना करना हम भारत देश के नागरिकों को सबसे ज्यादा अच्छा लगता है। हम व्यवस्था पर सवाल उठाते हैं लेकिन उसका समाधान क्या हो इस बारे में सोचते भी नहीं है।
 
उन्होंने कहा कि पैसा बचाने की चीज नहीं है, उपयोग करने की चीज है। इसका उपयोग किया जाना चाहिए। हमारे देश में नागरिक असुरक्षा की भावना से ग्रसित हो कर इसका संग्रहण करते हैं और इसे बचा कर रखते हैं। देश में यह व्यवस्था होना चाहिए कि हर नागरिक को एक निश्चित उम्र के बाद सरकार की ओर से जीवन यापन करने योग्य राशि पेंशन के रुप में मिले। हर नागरिक के लिए सरकार पिता तुल्य है, इसलिए उसे पिता का धर्म निभाते हुए यह पेंशन देना चाहिए।
 
उन्होंने कहा कि देश को टैक्स चोरी की समस्या से निजात दिलाने के लिए सरकार को चाहिए कि वह सारे टेक्स्ट हटा दें और केवल बैंक से ट्रांजेक्शन पर टैक्स लगा दे। यह टेक्स भी इस तरह लगना चाहिए कि इस लेन-देन में लेने वाले व्यक्ति पर टैक्स लगना चाहिए। अपनी बात को समाप्त करते हुए उन्होंने कहा कि अन्य देशों की तुलना में हमारा देश आज भी चरित्रवान है और यही हमारी सबसे बड़ी पूंजी है। आज अमेरिका को चरित्र की जरूरत है और हमें तकनीक की जरूरत है। 
 
कार्यक्रम के प्रारंभ मैं स्वागत नूर मोहम्मद कुरेशी, पराग जेटली, सुशीला सेन एवं साकेत बड़ोदिया ने किया। कार्यक्रम का संचालन सुरेश उपाध्याय ने किया। आभार प्रदर्शन अजीत सिंह नारंग ने किया जबकि अतिथि को स्मृति चिन्ह सुनील त्रिवेदी ने दिया।

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