भोपाल। मध्यप्रदेश में 37 दिन तक चले विधानसभा चुनाव में जहां भाजपा और कांग्रेस के दिग्गजों ने अपनी पूरी ताकत झोंक दी वहीं दूसरी ओर इस बार विधानसभा चुनाव में स्थानीय मुद्दों का बोलबाला रहा। भाजपा और कांग्रेस दोनों ही स्थानीय मुद्दों पर एक दूसरे को घेरती नजर आई। प्रदेश में पूरे चुनाव प्रचार के दौरान कोई ऐसा राष्ट्रीय मुद्दा नहीं दिखाई दिया जो चुनाव पर अपना असर डाले। हलांकि चुनाव प्रचार के दौरान सनातन से लेकर राममंदिर तक के मुद्दें की चर्चा जरूर हुई लेकिन यह वोटर्स पर कोई खासा असर नहीं डाल पाया।
मध्यप्रदेश में 18 साल से सत्ता में काबिज भाजपा ने चुनाव में लाड़ली बहना योजना सहित लाभार्थी कार्ड जमकर खेला। 18 साल से सत्ता में रहने की एंटी इनकंबेंसी की काट के लिए भाजपा ने लाड़ली बहना सहित केंद्र और राज्य सरकार के लाभार्थी वर्ग पर खासा फोकस किया। मुख्यमंत्री जहां अपनी हर सभा में लाड़ली बहनों को अपनी सरकार की तरफ से 1250 रुपए दिए जाने का जिक्र करते हुए उसे 3 हजार रूपए तक करने का भरोसा दिलाया। वहीं प्रदेश के किसानों को हर साल मिलने वाले 12 हजार के साथ प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत मिलने वाले पक्के मकान और मुफ्त राशन को भाजपा ने भुनाने की पुरजोर कोशिश की है।
इसके साथ भाजपा नेताओं की ओर से जनता को दिग्विजय सिंह के शासनकाल की याद दिलाते हुए बंटाधार और कमलनाथ को करप्शननाथ बताने के जुमले का खूब उपयोग कर भाजपा को वोट करने की अपील की। वहीं दूसरी ओर कांग्रेस ने भष्टाचार के मुद्दें पर भाजपा सरकार को घेरने के साथ महंगाई, बेरोजगारी के साथ जातिगत जनगणना के दांव को बाखूबी चला। इसके साथ कांग्रेस ने अपने चुनावी वचन को जनता के बीच मुद्दा बनाने की पुरजोर कोशिश की। कांग्रेस ने चुनाव के दौरान भाजपा सरकार में हुए घोटालों के साथ पटवारी भर्ती परीक्षा में हुई धांधली को भी मुद्दा बनाया।
बहराहल अब देखना दिलचस्प होगा कि लोकतंत्र के चुनावी उत्सव में जनता किन मुद्दों को तरजीह देकर अपना फैसला सुनाती है और आने वाली 3 दिसंबर को कौन से दल सरकार बनाकर सत्ता में काबिज होता है।