कोलकाता। भाजपा 2019 का आम चुनाव भले ही केन्द्र में दूसरी बार सरकार बनाने के लक्ष्य से लड़ रही है लेकिन पश्चिम बंगाल में पार्टी के लिए लोकसभा चुनाव 2021 विधानसभा चुनाव में मजबूत प्रतिद्वंद्वी ममता बनर्जी से मुकाबला करने के पहले ‘सेमीफाइनल मैच’ की तरह है।
विडम्बना यह है कि भारतीय जन संघ के संस्थापक श्यामा प्रसाद मुखर्जी की भूमि होने के बावजूद पार्टी 2014 के लोकसभा चुनाव से पहले राज्य में मजबूत ताकत नहीं थी। 2014 के चुनाव में पार्टी को 17 प्रतिशत वोट और दो सीटें मिली थीं।
भाजपा ने पिछले साल के पंचायत चुनाव में कांग्रेस और वाम मोर्चा को पीछे छोड़ दिया था। भाजपा को उम्मीद है कि उसे राज्य में सत्ता विरोधी लहर का फायदा मिलेगा। उसने पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री पर तुष्टिकरण की राजनीति का आरोप लगाया है।
ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस ने माकपा की अगुवाई वाले वाम मोर्चा को 34 साल तक सत्ता में बने रहने के बाद 2011 में उखाड़ फेंका था। कांग्रेस और माकपा में गुटबाजी ने भाजपा को राज्य में एक आक्रामक विपक्षी दल के रूप में उभरने में मदद की। भाजपा नेताओं के मुताबिक, इस समय पश्चिम बंगाल में पार्टी के 40 लाख सदस्य हैं।
भाजपा का कहना है कि उसका अब कूचबिहार, अलीपुरद्वार, रायगंज, बलूरघाट, दक्षिण मालदा और मुर्शीदाबाद, कृष्णानगर, राणाघाट, बसीरहाट, बैरकपुर, आसनसोल, पुरूलिया, झारग्राम, बांकुरा और मिदनापुर जैसी संसदीय सीटों पर तृणमूल के साथ सीधा मुकाबला है।
राज्य भाजपा प्रमुख दिलीप घोष ने कहा कि भाजपा के मुख्य विकल्प के रूप में उभरने का महत्वपूर्ण कारण सीमावर्ती क्षेत्रों की तेजी से बदलती जनसांख्यिकी और घुसपैठ के कारण राज्य के विभिन्न हिस्सों में लगातार सांप्रदायिक दंगे होना है। तृणमूल भूल गई है कि बहुसंख्यक हिन्दू समुदाय इससे खुश नहीं है। हालांकि तृणमूल महासचिव पार्थ चटर्जी ने भाजपा को किसी प्रकार की बढ़त मिलने की संभावना को खारिज कर दिया। (भाषा)