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उधमपुर-डोडा में भाजपा के लिए मुसीबत बढ़ा रहा है 'लाल'

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सुरेश डुग्गर

जम्मू। उधमपुर-डोडा सीट को बरकरार रखने के लिए भाजपा जहां पूरा जोर लगा रही है, वहीं कांग्रेस फिर से इस सीट पर अपना कब्जा करने के लिए हरसंभव प्रयास कर रही है। दोनों ही राजनीतिक दलों का जोर इस सीट पर मतदाताओं के लिहाज से सबसे बड़े जिले कठुआ पर है। जबकि उनकी जीत के रथ को आगे बढ़ने से लालसिंह पूरी जोरआजमाइश में जुटे हैं जो अभी तक भाजपा के थे पर अब वे रुख बदल देने की कुव्वत रखते हैं क्योंकि दो बार वे इस क्षेत्र से सांसद रह चुके हैं।

भाजपा भी कठुआ जिले में अपने जनाधार को कम नहीं होने देना चाहती। इसीलिए एक ओर जहां प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की रैली हो रही है। वहीं इसी जिले में केंद्रीय मंत्री पीयूष गोयल, क्रिकेटर से नेता बने गौतम गंभीर, पार्टी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष अविनाश राय खन्ना प्रचार कर चुके हैं। वहीं पार्टी के महासचिव राम माधव भी प्रचार करने आ रहे हैं।

वर्ष 2014 में भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कठुआ जिले के हीरानगर में रैली कर पूरे माहौल को ही बदल दिया था। इस बार भी पार्टी का यही प्रयास था रविवार की प्रधानमंत्री की रैली में। कठुआ में भाजपा के हाथ बुरी तरह से चित हुई कांग्रेस ने इस बार पिछली हार से सबक लिया है। हालांकि पार्टी के कुछ नेता इस दौरान कांग्रेस को जरूर छोड़ चुके हैं, मगर इस बार कांग्रेस ने अपना फोकस इस जिले पर रखा है। पार्टी के कई दिग्गज इस जिले में प्रचार करने आ रहे हैं।

अंतिम दिनों में पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव ज्योतिरादित्य सिंधिया, पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह, पूर्व मुख्यमंत्री गुलाम नबी आजाद प्रचार करने आ रहे हैं। वहीं पार्टी के वरिष्ठ नेता डॉ. कर्णसिंह भी इस जिले में प्रचार कर चुके हैं। कांग्रेस का प्रयास है कि अगर वह इस जिले में भाजपा के वोट बैंक में सेंध लगाने में सफल होती है तो कुछ भी हो सकता है।

उधमपुर-डोडा संसदीय क्षेत्र छह जिलों उधमपुर, डोडा, कठुआ, रामबन, रियासी और किश्तवाड़ में फैला हुआ है। लेकिन इस सीट पर उम्मीदवारों की हार-जीत में कठुआ जिला हर बार निर्णायक भूमिका निभाता है। इस सीट पर कुल 16 लाख 85 हजार 779 मतदाता हैं। इनमें सबसे अधिक 4 लाख 91 हजार 900 मतदाता कठुआ जिले में हैं। इसके बाद ऊधमपुर जिले में 3 लाख 43 हजार 612 मतदाता हैं।

पिछली बार साल 2014 के लोकसभा चुनाव में भाजपा की जीत का श्रेय कठुआ जिले को ही जाता है। जब इस जिले की मतगणना शुरू हुई तो कांग्रेस के दिग्गज नेता गुलाम नबी आजाद लगातार पिछड़ते गए। वह अन्य जिलों से मिलने वाले वोटों से भी हार को टाल नहीं पाए। हार के बाद आजाद ने यह स्वीकार किया था कि उनकी हार का कारण कठुआ जिले से वोट नहीं मिलना था।

इसी सीट पर कठुआ जिले के रहने वाले और भाजपा के पूर्व नेता चौधरी लालसिंह भी इस बार डोगरा स्वाभिमान संगठन से चुनाव लड़ रहे हैं। उनकी भी कठुआ जिले में पैठ है। अब सभी की निगाहें उन पर टिकी हुई हैं कि वे जिले से कितना वोट हासिल करते हैं। लालसिंह को कठुआ मामले के बाद से ही भाजपा ने नजरअंदाज करना शुरू कर दिया था। कुछ दिन पहले ही उन्हें पार्टी से निष्कासित किया है।

वर्ष 2014 के विधानसभा चुनाव में कठुआ जिले की सभी पांचों सीटों बिलावर, बनी, हीरानगर, बसोहली और कठुआ पर भाजपा ने कब्जा किया था। उसके बाद से भाजपा ने पूरा प्रयास किया था कि जिले में उसका वर्चस्व कायम रहे। लेकिन पिछले पांच साल में समीकरण बदले हैं। भाजपा के बसोहली से विधायक लालसिंह ने पार्टी छोड़ दी है और अपने नए बनाए डोगरा स्वाभिमान ट्रस्ट से चुनाव लड़ रहे हैं। वहीं निर्दलीय विधायक चरणजीत सिंह भाजपा में शामिल हुए हैं।

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