भोपाल। लोकसभा चुनाव की तारीखों के ऐलान के साथ ही अब पार्टियों व उम्मीदवारों के नामों को लेकर मंथन तेज हो गया है। कांग्रेस और समाजवादी पार्टी ने चुनाव की तारीखों के ऐलान से पहले ही अपने उम्मीदवारों के नामों का ऐलान कर अपनी चुनावी तैयारी को दिखा दिया है, तो भाजपा फौरी तौर पर अभी टिकट के बंटवारे में पिछड़ती हुई दिखाई दे रही है। भाजपा में टिकट को लेकर मंथन तेज हो गया है। पिछले हफ्ते पार्टी संसदीय बोर्ड की बैठक में इस मुद्दे पर चर्चा हुई। सत्तारूढ़ पार्टी को टिकट बंटवारे में इस बार तीन बड़ी चुनौतियों का सामना करना पड़ेगा।
वर्तमान सांसदों के टिकट पर फंसा पेंच : लोकसभा चुनाव के लिए टिकट बंटवारे में भाजपा के सामने जो सबसे बड़ी चुनौती है, वो है वर्तमान सांसदों के टिकट पर फैसला करना। 'मिशन मोदी अगेन' को पूरा करने के लिए भाजपा कई वर्तमान सांसदों के टिकट काटने की तैयारी में है। पार्टी के कई वर्तमान सांसदों के टिकट पर तलवार लटक रही है। पार्टी उत्तरप्रदेश, बिहार, मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ में अपने कई ऐसे वर्तमान सांसदों के टिकट काटने जा रही है जिनकी परफॉर्मेंस रिपोर्ट सहीं नहीं है।
पिछले हफ्ते प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की अध्यक्षता में हुई संसदीय बोर्ड की बैठक इस मुद्दे पर चर्चा हुई। सूत्र बताते हैं कि बैठक में कई सीटिंग सांसदों के टिकट काटकर उनकी जगह नए चेहरों को चुनाव लड़ाने को मंजूरी दे दी गई, वहीं पिछले दिनों ग्वालियर में हुई संघ की बैठक में भाजपा अध्यक्ष अमित शाह के सामने संघ ने उत्तरप्रदेश और मध्यप्रदेश में अपने स्तर पर कराए गए सांसदों की सर्वे रिपोर्ट रखी जिसमें कई वर्तमान सांसदों की रिपोर्ट निगेटिव आई थी।
दूसरी ओर पार्टी अध्यक्ष अमित शाह ने लोकसभा चुनाव के लिए अपने स्तर जो सर्वे कराया है, उसमें भी कई सांसदों की रिपोर्ट ठीक नहीं है। ऐसे में पार्टी के सामने टिकट बंटवारे में वर्तमान सांसदों का टिकट काटकर नए उम्मीदवारों को टिकट देना किसी चुनौती से कम नहीं होगा।
75 पार को पार पाना बड़ी चुनौती : वहीं भाजपा में इस बार लोकसभा चुनाव में टिकट बंटवारे पर 75 पार के नेताओं के टिकट पर फैसला करना भी बड़ी चुनौती है। पिछले दिनों संसदीय बोर्ड की बैठक में इन मुद्दों पर भी चर्चा हुई जिसके बाद पार्टी ने 75 पार के सीनियर सांसदों के चुनाव लड़ने या नहीं लड़ने का फैसला खुद उन पर छोड़ दिया है।
वर्तमान लोकसभा में भाजपा के करीब एक दर्जन से अधिक सांसद हैं, जो इस कैटेगरी में आते हैं। पार्टी से सबसे सीनियर नेता लालकृष्ण आडवाणी वर्तमान में गुजरात की गांधीनगर सीट से सांसद हैं। अगर आडवाणी फिर चुनावी मैदान में उतरते हैं, तो 91 साल की उम्र में वे सांसद का चुनाव लड़ेंगे।
पार्टी के दूसरे बड़े नेता और कानपुर से सांसद मुरली मनोहर जोशी (85 वर्ष), केंद्रीय मंत्री और उत्तरप्रदेश के देवरिया से सांसद कलराज मिश्रा (77 वर्ष), लोकसभा अध्यक्ष और इंदौर सांसद सुमित्रा महाजन (75 वर्ष), हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा से सांसद शांताकुमार (84 वर्ष) समेत कई ऐसे नेता हैं, जो एक बार फिर चुनाव मैदान में उतरने के लिए तैयार दिख रहे हैं।
मध्यप्रदेश में भोपाल लोकसभा सीट से 88 वर्ष की उम्र में टिकट की दावेदारी करने वाले पूर्व मुख्यमंत्री बाबूलाल गौर कहते हैं कि पार्टी ने उनके लिए 75 पार के फॉर्मूले को हटाया है, वहीं लोकसभा अध्यक्ष और इंदौर से सांसद सुमित्रा महाजन पहले ही कह चुकी हैं कि किसी योग्य व्यक्ति के मिलने पर ही वे इंदौर की चाबी उसको सौंपेंगी। इस बयान से ताई ने एक तरह से फिर टिकट के लिए अपनी दावेदारी कर दी है।
जातीय समीकरण साधना बड़ी चुनौती : भाजपा में टिकट तय करने में जातीय समीकरण साधना बड़ी चुनौती है। उत्तरप्रदेश में सपा और बसपा के गठबंधन के बाद भाजपा को अगर जीत हासिल करनी है, तो उसे जातीय समीकरण को साधना होगा।
बसपा और सपा के गठबंधन ने आंकड़ों में जातीय समीकरण को इनकी तरफ मोड़ दिया है। 2014 के चुनाव में उत्तरप्रदेश में बड़ी जीत हासिल करने वाली भाजपा पर इस बार अपने प्रदर्शन को दोहराना बड़ी चुनौती है। पूर्वी उत्तरप्रदेश में कई सीटों पर भाजपा के इस बार जातीय समीकरण बिगड़ रहे हैं।
बहराइच सुरक्षित सीट से भाजपा की सीटिंग सांसद सावित्रीबाई फुले के कांग्रेस में शामिल हो जाने से भाजपा की रणनीति को तगड़ा झटका लगा है। ऐसे ही मध्यप्रदेश में कांग्रेस सरकार के ओबीसी को 24 फीसदी रिजर्वेशन देने के फैसले के बाद भाजपा जातीय समीकरण को साधने की अपनी व्यूहरचना पर फिर से समीक्षा कर रही है।