दिल्ली की कुर्सी बचाने के लिए भाजपा इस बार दिल्ली की सत्ता का रास्ता जिस उत्तर प्रदेश से होकर गुजरता है वहां बड़े पैमाने पर सांसदों के टिकट काटने जा रही है। केंद्र में एक बार फिर मोदी सरकार बनाने के लिए भाजपा में रणनीतियों पर मंथन तेज हो गया है। पार्टी की चिंता अपने सबसे बड़े गढ़ उत्तर प्रदेश को बचाने के लिए है। 2014 के लोकसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश में भाजपा ने ऐतिहासिक प्रदर्शन करते हुए कुल 80 सीटों में से 71 सीटों पर कब्जा किया था वहीं विधानसभा चुनाव में भी भाजपा ने एक तरफा जीत हासिल करते हुए सूबे की सत्ता पर भी अपना कब्जा कर लिया था। इसके बाद उत्तर प्रदेश में सियासी समीकरण तेजी से बदले।
देश के इस सबसे बड़े सूबे में भाजपा के विजयी रथ को रोकने के लिए सूबे की राजनीति के धुर विरोधी सपा और बसपा एक मंच पर आ गए। इन दो विरोधी दलों के साथ आने से जो जातीय समीकरण बना उसके बल पर उत्तर प्रदेश में लोकसभा के लिए उपचुनाव में भाजपा को मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के गढ़ गोरखपुर लोकसभा सीट पर हार का सामना करना करना पड़ा। इसके बाद सूबे में सियासत की तस्वीर बदलने लगी। उपचुनाव में कई सीटों भाजपा को हार का सामना करना पड़ा। वहीं पार्टी के वर्तमान सांसदों के कामकाज और उनकी क्षेत्र में सक्रियता पर सवाल उठने लगा।
ऐसे में पार्टी इस बार लोकसभा चुनाव में अपने प्रदर्शन को दोहराने के लिए 20 से अधिक मौजूदा सांसदों के टिकट काटने की तैयारी में है, जिससे पार्टी मिशन मोदी अगेन के लक्ष्य को पूरा कर सके। लोकसभा चुनाव की तारीखों के ऐलान के साथ ही पार्टी के मौजूदा सांसदों को अब साफ संकेत भी मिलने लगे है कि पार्टी इस बार उनको मौका नहीं देने जा रही है। इनमें से कुछ नाम ऐसे भी हैं जो पार्टी छोड़ चुके हैं।
लखनऊ से सटे उन्नाव लोकसभा सीट से सांसद साक्षी महाराज का टिकट को लेकर पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष महेंद्रनाथ पांडे को जिस तरह धमकी भरा कथित पत्र वायरल हुआ, उससे साफ संकेत है कि पार्टी में अब टिकट पर निर्णय अंतिम चरण में है और पार्टी जल्द ही उत्तर प्रदेश में अपने की पहली सूची जारी कर देगी।
परफॉर्मेंस पर तय होगा टिकट - टिकट बंटवारे पर उत्तर प्रदेश भाजपा के नेता और पार्टी प्रवक्ता राकेश त्रिपाठी कहते हैं कि पार्टी लोकसभा चुनाव सिर्फ जीताऊ कैंडिडेट को ही मैदान में उतारेगी। वेबदुनिया से बातचीत में राकेश त्रिपाठी कहते है कि भाजपा एक कैडर पर आधरित संगठन है जो सतत काम करता रहता है। पार्टी चुनाव में परफॉर्मेंस और आंतरिक सर्वे के आधार टिकट तय करती है। इसके साथ पार्टी जनता के मूड और पार्टी संगठन से जुड़ाव के आधार पर ही टिकट पर कोई अंतिम फैसला लेती है। राकेश त्रिपाठी कहते हैं किसे टिकट मिलेगा या नहीं मिलेगा इसका अंतिम निर्णय पार्टी संसदीय बोर्ड की बैठक में होगा और उन्हें पूरा भरोसा है कि पार्टी लोक आंकाक्षाओं के अनुरूप ही टिकट का फैसला करेगी।
भाजपा में टिकट बंटवारा गले की फांस - उत्तर प्रदेश में भाजपा के लिए टिकट बंटवारा करना इस वक्त सबसे बड़ी चुनौती साबित हो रहा है। खासकर उस पूर्वी उत्तर प्रदेश में जो बीजेपी का गढ़ रहा है। प्रियंका गांधी को पूर्वी उत्तर प्रदेश का प्रभारी बनाए जाने और सपा - बसपा के गठबंधन के बाद इस इलाके में बीजेपी के लिए टिकट बंटवारे में जातीय सुंतलन साधना आसान नहीं होगा। पूर्वी उत्तर प्रदेश से आने वाले वरिष्ठ पत्रकार मनोज कुमार सिंह कहते है कि भाजपा में इस बार लोकसभा चुनाव में टिकट बंटवारा गले की फांसी बन गया है।
सपा- बसपा गठबंधन के बाद भाजपा इस जातीय समीकरण बैठाने में बुरी तरह उलझती दिखाई दे रही है। वेबदुनिया से बातचीत में मनोज कुमार सिंह कहते है कि पिछली बार मोदी लहर में भाजपा ने जिन 71 सीटों पर जीत हासिल की थी उसमें 50 से अधिक सांसद पहली बार चुन कर आए थे। चुनाव के समय भाजपा ने जो सर्वे कराया है कि उसमें अधिकांश सांसदों की रिपोर्ट निगेटिव आई है। इसके साथ ही मनोज कहते हैं कि भाजपा में सीटिंग सांसदों के टिकट काटकर लोगों का केंद्र और प्रदेश सरकार के खिलाफ उपजी नाराजगी खत्म करने की कोशिश में है। पार्टी की रणनीति है कि अगर चुनाव में लोगों के सामने नया चेहरा होगा तो लोग उसको वोट करेंगे। इसके साथ मनोज कुमार सिंह कहते हैं कि पूर्वी उत्तर प्रदेश की करीब दो दर्जन सीटों पर भाजपा इस बार अपना चेहरा बदलने की तैयारी में है।
किन सांसदों के टिकट पर संकट...
उन्नाव - साक्षी महाराज
संत कबीर नगर - शरद त्रिपाठी
इलाहाबाद (प्रयागराज) - श्यामा चरण गुप्ता
देवरिया - कलराज मिश्र
धौरहरा - रेखा वर्मा
बलिया - भरत सिंह
बस्ती - हरीश द्विवेदी
बहराइच - सावित्री बाई फुले
डुमरियागंज - जगदंबिका पाल
अंबेडकर नगर - हरिओम पांडे
श्रावस्ती - दद्दन मिश्रा
अकबरपुर - देवेंद्र सिंह
इटावा - अशोक कुमार दोहरे
मछलीशहर - राम चरित्र निषाद
संभल - सत्यपाल सिंह
जौनपुर - कृष्णा प्रताप
फतेहपुर सीकरी - बाबूलाल
रामपुर - नेपाल सिंह
गोंडा - कीर्तिवर्धन सिंह