विजयशंकर चतुर्वेदी उस युवा हस्ताक्षर का नाम है जिसकी कलम से सहज, भोली और आत्मीय रचनाएँ इस तरह झरी हैं कि पढ़कर मन का बचपन लौट-लौट आता है। गाँव की अमराइयों से छनकर आती सौंधी बयार जैसा सुखद अहसास देती कविताओं में एक अव्यक्त दर्द भरी टीस भी है और उल्लासमयी बचपन की यादें भी। विजयशंकर रिश्तों की डोर को रेशमी अहसास मानते हैं और यह छुअन कविता पढ़ते हुए पाठक को सहज महसूस होती है। 'पृ्थ्वी के लिए तो रूको' विजयशंकर का ऐसा कविता संग्रह है जो पुस्तक के रूप में आने से पूर्व इंटरनेट संस्करण के रूप में सुहानी दस्तक दे रहा है। उनका यह संग्रह वेबदुनिया के माध्यम से प्रस्तुत किया जा रहा है।बेटी हमारी मन ही मन हमने फोड़े थे पटाखेबेटी, दुनिया में तुम्हारे स्वागत के लिए.पर जीवन था घनघोरउस पर दांपत्य जीवन कठोरफिर एक दिन भीड़ में खो गईं तुमले गया तुम्हें कोई लकड़बग्घाया उठा ले गये भेड़िएलेकिन तुम हमारी जाई होकौन कहता है कि तुम पराई होजब कभी मैं खाता हूँ अच्छा खानातो हलक से नहीं उतरता कौरकिसी बच्चे को देता हूँ चाकलेटतो कलेजा मुँह को आता है,तुमने किससे माँगे होंगे गुब्बारेकिससे की होगी जिदअपनी पसंदीदा चीजों के लिएकिसकी पीठ पर बैठकर हँसी होगी तुम?तुम्हें हँसते हुए देखे हो गए कई बरसतुम्हारा वह पहली बार 'जणमणतण' गानापहली बार पैरों पर खड़ा हो जानाजब किसी को भेंट करता हूं रंगबिरंगे कपड़ेतुम्हारे झबलों की याद आती हैजिनमें लगे होते थे चूँचूँ करते खिलौनेअब कौन झारता होगा तुम्हारी नज़रजो अक्सर ही लग जाती थीबाद में पता नहीं किसकी लगी ऐसी नज़रकि पत्थर तक चटक गयाअब तो बदल गयी होगी तुम्हारी आँख भीहो सकता है तुम्हें मैं न पहचान पाऊँ तुम्हारी बोली सेलेकिन मैं पहचान जाऊँगा तुम्हारी आँख के तिल सेजो तुम्हें मिला है तुम्हारी माँ सेजब भी कभी मिलूँगा इस दुनिया मेंमैं पहचान लूँगा तुम्हारे हाथों सेवे तुम्हें मैंने दिए हैं। परिचय
मध्यप्रदेश के सतना जिले की नागौद तहसील के ग्राम आमा में 15 जून 70 में जन्में विजयशंकर चतुर्वेदी ने अभिव्यक्ति के सभी आयामों को कुशलता से स्पर्श किया है। विविध समाचार-पत्रों, पत्रिकाओं, टीवी, रेडियो, उपन्यास, कहानी, कविता सभी माध्यमों एवं विधाओं में विजयशंकर प्रखरता से व्यक्त हुए हैं। वर्तमान में रिलायंस इंडिया मोबाइल की कंटेंट टीम में सेवाएँ दे रहे हैं।