Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
मंगलवार, 15 अक्टूबर 2024
webdunia
Advertiesment

चप्पल और जूतों के बंटवारे में सैंडविच बनी सैंडिल

हमें फॉलो करें चप्पल और जूतों के बंटवारे में सैंडविच बनी सैंडिल
webdunia

गिरीश पांडेय

बेचारी सैंडिल! कभी इसका भी जलवा होता था। भोजपुरी के गायक बालेश्वर यादव जब स्टेज पर -चप्पल की ऊंचाई इसी तरह बढ़ती रही तो हर सैंडिल के नीचे डंडा लगा दिया जाएगा' गाते थे तो लोग वाह-वाह कर उठते थे। यकीन मानिए तब सैंडिल खुश होती थी और हाई हिल की सैंडिल पहनने वाले भी। पर, चप्पल और जूतों के बंटवारे में सैंडिल सैंडविच बन गई। कभी घर में चप्पल के विकल्प के रूप में पहने जाने वाली चट्टी और खड़ाऊ को बंटवारे में कोई हिस्सा ही नहीं मिला।
 
पीटी शू तो स्कूल से पीटी की घंटी खत्म होने के साथ ही खत्म हो गए। कभी उम्रदराज लोगों का नागरा जूता (बिना फीते का) भी कोने में सिमट गया। बंटवारे में सबसे लाभ में रही चप्पल। अपनी तमाम खूबियों के कारण चप्पल सर्वाधिक लाभ में रही। इसके हिस्से में घर, बाहर और बाथरूम आए।

अब तो इसका नाम हवाई जहाज के साथ भी जुड़ गया। फिलहाल अपने लाचीलेपन की वजह से चप्पल की धाक जमती गई। देखते-देखते यह लकड़ी की चट्टी का विकल्प बन गई। तुलनात्मक रूप से यह सस्ती तो है ही। पहनने में आसान और खाने में सहनीय भी। मेंटीनेंस सस्ता होना, सोने पर सुहागा है। अमूमन फीता ही टूटता है। इसे आसानी से बदला भी जा सकता है।

चप्पल को इसके तल्ले घिस जाने तक पहनिए। इस तरह की घिसी चप्पल का अहसास भी अलग होता है। पैर का कुछ हिस्सा चप्पल में रहता है और कुछ जमीन पर। लिहाजा जमीन से जुड़े होने का अहसास बना रहता है। घिसी चप्पल बहुत काम की होती है। किसी ऐसी जगह की यात्रा जहां जूते या चप्पल चोरी होने का खतरा रहता है, वहां घिसी चप्पल दोनों की पसंद होती है। चोरी करने वाले की और चोरी से डरने वालों की भी। ऐसी चप्पल अगर चोरी हो भी गई तो कोई खास फर्क नहीं पड़ता। अगर आप में धैर्य है।
 
कार्यक्रम खत्म होने के बाद कुछ देर तक जहां चप्पल उतार कर गए हैं। वहां इंतजार कर सकते हैं तो अमूमन चोरी के चप्पल के विकल्प के रूप में एक खूब घिसी हुई चप्पल आपका इंतजार कर रही होती। यह घर जाने तक आपके पैरों को नंगे होने का अहसास तो नहीं होने देगी। साथ ही सबक भी देगी।

कुछ अच्छा सुनने, देखने और पुण्य कमाने की कुछ तो कीमत चुकानी होती है। यूं ही नहीं 'चप्पल घिसना' एक प्रचलित मुहावरा है। हाल के कुछ वर्षों में माननीयों द्वारा चप्पल को हवाई जहाज से जोड़ने के कारण इसका स्टेटस भी बढ़ा है और रेंज भी। समानता और सामाजिक समरसता का बोध होने से यह खुश है। कुछ खास तरह की चप्पल तो डॉक्टरों के नुस्खे तक पहुंच चुकी हैं।
 
ऑफिस और ट्रैक तक सिमटा जूता : जूता भले रेंज में भरपूर हो पर इसका दायरा चप्पल जितना विस्तृत नहीं हो पाया। यह ऑफिस और ट्रैक तक ही सिमटकर रह गया। किचन, बाथरूम जैसे स्थान इसके लिए वर्जित क्षेत्र हैं। नागरा जूता उम्रदराज लोगों की पसंद हुआ करता था। हर काबिल लड़का अपने पिता के लिए साल में एक दो जोड़ी नागरा जूता जरूर लाता था। बरसाती जूता और चप्पल की कभी सीजन में खूब धूम रहती थी। अब नहीं। 
 
पनही बाबा और बैलों के साथ ही खत्म हो गई : पनही तो बाबा और बैलों के समय में ही थी। कभी इसका भी क्रेज हुआ करता था। तभी तो कभी गुस्सा जूते और चप्पल से नहीं पनही से ही उतारा जाता था। इस बाबत एक मुहावरा भी था, ईहे मुन्हवा पान खाला, ईहे मुंहवा पनही। सुनने में यह सीधा था, पर अर्थ काफी गूढ़ था। आप समझ सकते हैं कब किसके मुंह पर पनही मारी जाती और कब किसे पान की गिलौरी पेश की जाती थी।
 
जूता मारने वालों से अधिक महत्वपूर्ण होता है गिनने वाला : जूते की मार का क्या कहना। कभी फेंक कर मारने के कारण सुर्खियों में रहता है। तो कभी कम समय में रिकॉर्ड प्रहार के लिए। मारने वाले से गिनने वाले ज्यादा दक्ष होते हैं। कितनी देर में कितने जूते मारे गए तुरंत बता देते हैं।
 
जूते मारने का गणित भी अलग है : जूते मारने का गणित भी अलग है। इसे लेकर एक डायलॉग अब भी जेहन पर चस्पा है। मामला तीन दशक पुराना है। जगह इलाहाबाद का रामबाग स्टेशन। एक दरोगा जी से रिक्शेवाला गैरवाजिब भाड़ा मांग रहा था। दारोगा जी वर्दी में नहीं थे, पर ठसक तो थी ही। उन्होंने कहा दिमाग खराब हो गया है। निकालूंगा जूता। मारूंगा 100, गिनूंगा एक। रिक्शे वाले के साथ मैं भी सहम गया। यह सोचकर कि इस गिनती से अगर बेचारे को 5-10 भी मार दिए जाएं तो इसका तो काम तमाम हो जाएगा।
 

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi

अगला लेख

टैटू बनवाने का शौक बन सकता है कैंसर का कारण