एक पाती प्रिय बापू गांधी बाबा के नाम

ऋतुपर्ण दवे
Mahatma Gandhi
प्रिय बापू, 
 
'इंडिया दैट इज भारत' से मेरा राम-राम। बापू तू सोच रहा होगा कि जब लुटियंस की जगह इंडियन्स की दिल्ली हो सकती है और फिरंगियों की डिजाइंड  संसद में गुलामी की बू आती है इसलिए नई बन सकती है तो फिर तेरे प्यारे देश का नाम अब तक इंडिया क्यों...? 
 
सच कहूं बापू तब तो मैं दुनिया में आया नहीं था पर अब तो कोशिशें हो सकती हैं। जितना अपुन को पता है देश का नाम इंडिया हो या भारत? बहस बहुत पुरानी है। संविधान सभा तक में ऐतराज हुआ। हरिविष्णु कामथ ने भारत किए जाने पर खूब वजनदारी से अपनी बात भी रखी, लेकिन नाम भारत नहीं हो पाया। कइयों को आर्टिकल-1 की भाषा बेजा लगी जिसमें इंडिया दैट इज भारत लिखा गया।

नए नाम जैसे हिन्दुस्तान, हिंद, भारतभूमि, भारतवर्ष सुझाए पर सब बेकार। संविधान सभा के सदस्य शिब्बनलाल सक्सेना, कमलापति त्रिपाठी, हरगोबिंद पंत, मौलाना हसरत मोहानी की भारत नाम करने की कोशिशें बेनतीजा रहीं। कमलापति त्रिपाठी और अंबेडकर के बीच नोकझोंक भी हुई। लेकिन बापू हुआ वही जो बहुमत ने चाहा, कामथ के संशोधन प्रस्ताव पर वोटिंग हुई 38 सदस्यों ने समर्थन तो 51 ने विरोध किया और तेरे प्यारे देश का नाम इंडिया दैट इज भारत हो गया।
 
सच कहूं बापू इसकी जगह 'भारत जिसे बाहर विदेशों में इंडिया भी कहा जाता है' भी तो हो सकता था? अरे हां! नाम के चक्कर में तो मैं बताना भूल गया कि संविधान से इंडिया शब्द हटाकर सिर्फ भारत रखे जाने वाली याचिका पर इसी बरस जून में सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई से मना कर कह दिया कि सरकार को दरख्वास्त दी जाए वही सुन सकती है। मामला संसद का जो ठहरा। सही है बापू किसानों पर इसी महीने नया कानून संसद ने बना दिया। राम जाने देश का अंग्रेजी नाम कब बदलेगा?
 
खैर बापू आगे की तो सुन, वो पड़ोसी जलनखोर हाथी सी छोटी सी आंख और भारी भरकम शरीर वाला अजगर चीन तू तो उस ड्रैगन की नस-नस जानता है। व्यापार की खातिर अपना मुलुक तो ठीक पूरी दुनिया में तबाही मचा दी, किसी को नहीं बख्शा, सबको नानी याद दिला दी। बापू तू दुःखी मत होना उसी की करतूत है जो अब भारत क्या पूरी दुनिया की सरकारें छुआछूत को बढ़ावा देने लगी हैं। सही बापू उसी छुआछूत जिसका तू विरोध करता था न जाने कितने पंगे लिए। अब तो सरकार कहती है कि दो गज की दूरी बहुत जरूरी। 
 
पता है उसी मुआ अजगर ने चमगादड़, कुत्ता, बिल्ली और न जाने क्या-क्या खा-पीकर ऐसा वायरस बनाया और फैलाया कि दुनिया तो दुनिया अपने देश में भी पूरे 6 महीने हो गए कोहराम मचा रखा है। बहुत ही महीन वायरस जिसको कोरोना कहते हैं, बड़ी धमा-चौकड़ी कर रखी है। न कोई दवा न कोई इलाज। लेकिन दहशत ऐसी कि पूछो मत। पूरे 71 दिन देश ने पहली बार सख्त तालाबंदी देखी। एकदम से एक झटके में स्कूल, कॉलेज, दफ्तर, रेल, बस, टैक्सी, दुकान, होटल, रेस्टॉरेंट, शादी-बारात सब बंद। लेकिन तालाबंदी हटते ही ऐसी बेफिक्री कि सवालों पर सवाल उठने लगे। मैं तो समझ गया कि यही राजनीति है लेकिन लोग समझें तब न!
 
सच बापू पूरी दुनिया में बस नुकसान ही नुकसान। कहीं जान माल का तो कहीं रोजी-रोजगार का। अपुन पर भी खूब असर पड़ा। लॉकडाउन में घर पर लॉक। कभी दाल तो कभी तो साग तो कभी सूखा भात, नमक-रोटी खाकर दिन काटा बापू। रोजी, रोजगार सब बंद। बाहर निकलो तो आधा भरा पेट ऊपर से पुलिस की लाठी। मत पूछ बापू तू दुःखी हो जाएगा। देखते ही देखते ऐसी बेरोजगारी आई कि कोई कहता लाखों लोगों की, तो कोई बताता करोड़ों की नौकरियां चली गई।

देश में ऐसी भगदड़ मची जैसी बंटवारे के समय की फिल्मों में हमने देखी। पैदल ही निकल पड़े लोग सैकड़ों मील के सफर पर। कोई सिर पर पोटली बांधे तो कोई बैग पर सुलाए बच्चे को लुढ़काते तो कोई बेटी अपने बापू को साइकल पर लेकर डेढ़ हजार किलोमीटर ले आई। सच बताऊं बापू कई तो ऐसे भागम भाग पैदल चल पड़े कि रात में थके हारे रेल पटरी किनारे ये सोच सुस्ताने लगे कि ट्रेन बंद है। बेफिक्री में धोखा खा गए और नींद क्या लगी लॉकडाउन बीच माल ढ़ोने (अरे वो बॉलीवुड वाला नहीं) की आड़ में नोट कमा रहे रेलवे की मालगाड़ी ने एक झटके में कितनों को ऊपर पहुंचा दिया जिनका कोई डेटा नहीं। 
 
देश का बहुत बुरा हाल है बापू। जीडीपी माइनस हां -23।9 नीचे चली गई। तू बहुत दुःखी होगा। तू भले ही वहां है पर तेरा दिल तो भारत में ही बसता है। बापू डाटा, डेटा और आपदा में अवसर ढ़ूंढ़ अंबानी जी के सहारे ड्रैगन को मात देकर स्वदेशी तकनीक से 4जी से 5जी नेटवर्क में जंप मारने को तैयार इंडिया दैट इज भारत की संसद तक को नहीं पता कि कोरोना ने कितने डॉक्टर और हेल्थ वर्कर लील लिए? अब बाकी का हिसाब किससे मांगें? तू खुश होगा बापू अब तो पढ़ाई भी पूरी तरह ऑनलाइन हो गई है। मास्टर और बच्चे अपने-अपने घर से हाथों में मोबाइल पर ऐसे पढ़ा और पढ़ रहे हैं कि पूरा देश सुशिक्षित हो कृत-कृत हो रहा। लेकिन बापू ऑनलाइन और मोबाइल के चक्कर में गलत बातों की भी चर्चा खूब सुनाई दे रही है।

हर रोज लाखों बच्चों की तस्वीरें सरकारों से प्रमोटेड ऐप पर डाउनलोड हो रही हैं। तू सोच रहा होगा कि ऐप है कि ऐब? पर सुनता कौन है। गली-मोहल्ले में बच्चों को दूर-दूर करते मास्टर घूम मुहल्ला क्लास ले रहे हैं। नई तरह की शिक्षा है बापू जिन हाथों में मोबाइल देने से मां-बाप घबराते थे, मजबूरन रो-धोकर दे रहे हैं और साथ में लॉकडाउन के बावजूद पैसा खर्च कर डेटा भी। अरे बापू तू आटा नहीं समझ ये डेटा है जिससे इंटरनेट चलता है। इसका डिटेल फिर बताउंगा।
 
खैर बापू तुझे पता है कितने नामी हीरो-हीरोइन सुट्टा के चक्कर में घनचक्कर बने हुए हैं। सीबीआई, एनसीबी, पुलिस और न जाने कितनी एजेंसियां हर रोज नया खुलासा कर रही हैं। बस बापू इतना जान लें कि एक पूरी प्याज है और उसकी परत उतारते रहो। उसी माफिक धड़ाधड़ एैक्ट्रेस बेनकाब हो रही हैं। हां बापू, एैक्ट्रेस ज्यादा एक्टर कम। नशा भी क्या? ड्रग्स बोले तो चरस, हशीश, हीरोइन, कोकीन और न जाने क्या-क्या। लेकिन बापू ठेठ देशी गांजा ने पूरे बॉलीवुड यानी फिल्म इंडस्ट्री को लपेट लिया। अब कौन बताए कि गांजा के सुट्टा ने कितनों को लगा दिया बट्टा।

सच कहूं बापू, वो अपने बिहार का सुशांत क्या चला गया तमाम न्यूज चैनलों को रात दिखा न दिन चौबीसों घंटे इंसाफ दिलाने लगे। 135 करोड़ आबादी के बीच महीनों से बस एक ही मसला। लेकिन न तो ये भोंपू सुशांत को न्याय दिला सके, न सच तक पहुंच पाए। उल्टा गुप्तेश्वर पांडे जी नौकरी छोड़ नेता जरूर बन गए। अरे हां नेतागिरी से याद आया बिहार में चुनाव और दूसरी जगह उपचुनाव डिक्लेयर हो गए। तू भी सोच रहा होगा सुशांत, बिहार, इलेक्शन और कोरोना बीच चुनाव? लेकिन लोकतंत्र को भी तो बचाना है, बिन चुनाव के कैसे बचेगा। एक-एक वोट से लोकतंत्र की मजबूती के लिए चुनाव वैसा ही जरूरी है जैसे 21वीं सदी की सबसे बड़ी महामारी कोरोना से बिना दवाई की जंग में एक मास्क और दो गज की दूरी।
 
है ना गजब का फॉर्मूला। जिसने भी निकाला बहुत खूब, हर्रा लगे न फिटकरी और कोरोना से बन गई दूरी। खैर बापू तू सोच रहा होगा कि मेरी राम-राम की बेरा में यह कहां से आ गया महाभारत का संजय बनकर मुझे भारत की कहानी सुनाने। तो सुन बापू तू भी खुश हो जाएगा। सच्ची तू बहुत खुश होगा बापू। अपुन तो सबसे बड़ी खुशखबरी देना भूलिच गया था। अरे बापू जब तू प्राण त्याग रहा था न तब तेरे मुख से हे राम निकला था। अपुन बहुत दिनों तक सोचता रह गया कि राम ही क्यों निकला? 
 
आज तक समझ नहीं पाया। लेकिन बापू पिछले 9 नवंबर को तेरे देश की बड़ी अदालत ने एक बड़ा फैसला सुनाकर राम को टेंट से आजाद कर वहां मंदिर बनाने पर फैसला दे दिया और 5 अगस्त को तेरे देश के प्रधानमंत्री ने नींव भी रख दी। शायद 2024 तक भव्य विशाल मंदिर होगा। अरे हां, बापू जवाबी चिट्ठी में बताना कि पहले तेरे मुख से निकला हे राम, उसके बाद पूरे देश में सुनाई देने लगा जय श्री राम और अब जय-जय सियाराम। ये भी कि सारा कुछ राम के इर्द गिर्द ही क्यों चलता है। अरे हां, पूछना भूल गया था कि तू वहां क्रिकेट खेलता है या नहीं?

यहां लोगों को तेरी बॉलिंग और बैटिंग खूब याद है। इस पर किताब भी छप गई महात्मा ऑन द पिच में खूब लिखा है। बॉलर, बैट्समैन के बावजूद तेरी कितनी गजब एंपायरिंग थी। बापू मेरी तरफ से बधाई और केक। तेरी बकरी कभी सूखा कभी बाढ़ में परेशान जरूर रहती है, पर खाने को चारा मिल जाता है। लालू जी जेल में हैं उनके बिना बिहार चुनाव अधूरा रहेगा। खैर तू भी सोच रहा होगा, कि कहां आज मेरा हैप्पी बर्थ डे और ये सुबह-सुबह घनचक्करों से क्या-क्या बक रहा हूं, सो बापू राम-राम।
 
(इसे व्यंग्य के रूप में ही लिया जाए, किसी की भावनाओं को आहत करने का उद्देश्य नहीं है)

(इस आलेख में व्‍यक्‍त‍ विचार लेखक की नि‍जी अनुभूति है, वेबदुनिया से इसका कोई संबंध नहीं है।)

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