शनै: शनै: कड़ी - 8
आगामी सप्ताहांत गुजरात में समुद्र एवं पृथ्वी की विपरीत दिशाओं से दो दो तूफान आने वाले हैं। देखना होगा की कौन अधिक तबाही मचाता है - इस बारे में अभी तक कोई रायशुमारी तो नही हुई है, पर स्थिति कांग्रेस अध्यक्ष पद के चुनाव की तरह स्पष्ट है कि चुनाव का तूफान, प्रकृति के तूफान से अधिक विनाशकारी होगा। विशेषकर यदि आप टी वी या ट्विटर, व्हाट्स एप पर चुपके रहते हों तो इसके प्रभाव से नही बच सकते। हालांकि हिमपात तो हिमाचल में भी हुआ था पर दुर्भाग्य से मीडिया की दृष्टी में वह लाभकारी नही है। वैसे 18 दिसंबर को वहाँ भी कुर्सियाँ फिसलने की संभावनाएं बनी हुई हैं।
मुद्दों के आभाव में गुजरात के ऊपर एक कम दबाव के क्षेत्र का निर्माण हुआ था। जिसके कारण दिल्ली की ओर से समस्त मंत्री मण्डल को साथ घेरती हुई गर्म हवाएँ खिची चली आईं। और गत दो सप्ताह से वहीं पर मंडरा रही हैं। चूंकी देश की दिशा और दशा में मंत्री मण्डल की अनुपस्थिति से रत्ती भर भी परिवर्तन नही हुआ है, तो यह मान लेना गलत ना होगा की प्रधानमंत्री का प्रिय ‘मिनिमम गवर्नमेंट, मैक्सिमम गवर्नेंस मॉडल’, नोटबंदी की तरह ही सफल हो चुका है।
जिस तरह प्रधान मंत्री देश-विदेश में घूम घूम कर भारत के राज्यों में अपनी सरकार पर सरकार बनाते जा रहे हैं, उन्हे सुलभता से ‘चक्रवर्ती’ और ‘चक्रवाती’ दोनों ही उपाधियों से सुशोभित किया जा सकता है। फिलहाल एक और विजय की आस लिए हुए चक्रवर्ती चक्रवात पूरी शक्ति से गुजरात के क्षितिज पर डटा हुआ है।
इधर, अभी तक अनारक्षित पटीदारों की महा रैलियों में जमा भीड़ के पदचाप से उड़ती धूल, आंधी का रूप ले चुकी है। इन आंधियों में कतिपय शयन कक्षों से उड़ कर गोल गोल चमकीली सीडी भी घूमती हुई दिखाई पड़ी हैं। प्राय: अवसरवादी इस सीडी से सफलता की सीढ़ी बनाने का असफल प्रयास भी कर रहे हैं। कुछ सीडी को वाट्स एप पर दिखाकर और कुछ इसके तथाकथित नायक से हाथ मिलाकर!
ईश्वर ही जाने दोनों ही क्या सिद्ध करना चाहते हैं। पर वातावरण तो प्रदूषित हो गया है। धूल छटे तो दिखाई पड़े, कौन धूल चाटता है और किस किसके चेहरे पर धूल है। मीडिया प्रतिदिन नित नया आकलन कर धूल में लट्ठ मारती दिखाई दे रही है और जनता है कि सदा की भांति धूल ही फांक रही है।
इसी गहमागहमी में कालीदास रचित अभिज्ञान शकुंतलम का रीमेक भी तैयार हो गया। राजकुमार को एक संदूकची में अपना खोया हुआ जनेऊ मिला। उसे देखते ही राजकुमार के मस्तिष्क में एक बिजली कौंधी और उन्हें राजा दुष्यंत की भांति अपना धर्म और कर्तव्य दोनों ही स्मरण हो उठे। उन्हें याद आ गया कि वे हिन्दू हैं, अत: मंदिर मंदिर दर्शन करने निकल पड़े। यही नही, उन्हे अपने कर्तव्यों का भी भास हो गया और वर्षो से जिस अध्यक्ष पद को शकुंतला समझ कर ठुकरा रहे थे, उससे अपलक आलिंगन कर लिया।
इससे उनके तीव्र गति से सिकुडते हुए राज्य में उल्लास की लहरें उठने लगीं हैं। पर समय ही सिद्ध करेगा कि कहीं यह बासी कढ़ी मे उबाल तो नही? अब चूंकी उनकी स्मृतिलोप का सुधार हो चुका है, हम यह आशा कर सकते हैं कि अब आलू फेक्टरी में नही, खेतों में ही उगेंगे और जब उन्हें मशीन में डाला जाएगा तो चिप्स ही निकलेंगी, सोना नही। ईश्वर उनकी राजगद्दी बनाए रखे। पर गुजरात में मौसम बिगड़ता जा रहा है, सर मुंडाते ही ओले पड़ने की प्रबल संभावनाएं हैं। उधर, मौसम विभाग की चेतावनी को देखते हुए कुछ नौसीखिए नाविकों भंवर में ना जाने का निर्णय लिया है। अत: वे अब दिल्ली में ही लंगर डालकर दूर दीर्घा में खड़े खड़े कृंदन करेंगे। कुछ ही समय पूर्व यही नौसीखिए नाविक चक्रवर्ती होने का दावा करते थे।
तूफान थमते ही वोटों की बारिश होगी। कुछ तर जाएँगे, कुछ डूब जाएंगे। मीडिया इन लहरों पर सवार हो कर चांदी बटोरेगी। कोऊ होए नृप, हमे तो लाभ ही लाभ के सिद्धांतों का अनुसरण कर मीडियावाले अपनी टी आर पी पर नजर गढ़ाए हुए हैं। हम आशावान हैं कि कुछ दिनों पश्चात जब बिना छेड़छाड़ की हुई वीवीपेट मशीने खुलेंगी और असमंजस के काले बादल छटेंगे तो आशा की किरण दिखाई देगी। इसी उम्मीद के साथ, मिलते हैं एक छोटे से ब्रेक के बाद!
(लेखक मैक्स सुपर स्पेशियलिटी हॉस्पिटल, साकेत, नई दिल्ली में श्वास रोग विभाग में वरिष्ठ विशेषज्ञ हैं)