चार दिन की जिंदगी... लेकिन ये गलत कि दो दिन खुशी दो दिन गम... गम है तो जाने का नाम ना ले... खुशी है तो दामन ना छोड़े। आज के दौर में जो खुशी विरासत में (भ्रष्टाचार की कृपा से) मिली है, वो दामन नहीं छोड़ती।
जिन्हें ऐसी खुशी नसीब नहीं, वो किस्मत को, सरकार को और भ्रष्टाचार को कोसते हैं और गमजदा रहते हैं। अपनी भड़ास निकालने के माध्यम तलाशते हैं, सहारे ढूंढते हैं। मेरे जैसे लेख लिखते हैं, भाषण करते हैं, किंतु देश की हालत वही-की-वही। नेताओं के भाषण तो चुनावी और स्वार्थी होते हैं, लेकिन ज्ञानी-ध्यानी व विद्वानों के प्रवचनों से लगता है कि जनता सुधर जाएगी, मगर पांडाल छोड़ते ही काल सिर पर चढ़ जाता है।
बस केवल भड़ास निकालिए। देश में बोफोर्स, राफेल, विजय माल्या जैसे अनेक घोटाले हुए हैं। इन घोटालों की लिस्ट में लगभग 150-200 घोटाले तो बड़े-बड़े होंगे ही, छोटे-मोटों की तो गिनती ही नहीं लगा सकते। इनके आंकड़े यानी रकम देखकर तो लगता है कि अंग्रेज बेचारे क्या ले गए होंगे हिन्दुस्तान से जबकि कहा जाता है कि अंग्रेज हिन्दुस्तान को लूटकर ले गए।
आज जो देश को भरपल्ले लूट रहे हैं, उनके खिलाफ आप आवाज ही उठा सकते हैं (कभी वो भी नहीं)। भड़ास निकालने पर कार्रवाई का न होना आसमान से गिरे खजूर में अटके जैसा है। अनेक सरकारी योजनाओं में भ्रष्टाचार है और जिन्हें सही रूप में लाभ मिलना चाहिए, उनके बजाए साधन-संपन्नों को इनका लाभ मिल रहा है। (बहुत कम हितग्राही ऐसे होंगे केवल दिखावे के लिए जिन्हें आगे खड़ा कर बताया जाए कि ये गरीबी रेखा से नीचे का है। इसे सरकारी योजना का लाभ मिल रहा)।
अब रेखा पर भी भड़ास निकाले तो कैसे? गरीबी रेखा के नीचे रहने वाले... गरीबी रेखा का तो मापदंड ही समझ से परे। वार्षिक आय तो गरीबी रेखा के नीचे से भी नीचे है, तो गरीबी रेखा के बीपीएल कार्ड कैसे बन गए? बीपीएल कार्ड भी बने हैं, तो उनके जो दिखावटी गरीब हैं, तो कैसे भड़ास निकालोगे?
पत्रकारिता बनाम मीडिया जनता की आवाज बुलंद करने का सशक्त माध्यम है। यदि आप कहें तो यहां मैं? मार्क लगा लूं, क्योंकि कल के जो पत्रकार जनता की आवाज बुलंद करते थे, भ्रष्टाचार वगैरह पर कलम घिसते थे, अपनी चप्पल घिसकर सिधार गए, मगर कुछ नहीं हुआ।
आज चंद दिनों में ही मीडिया वाले सड़क से घूमते-घूमते कार में घूमने लगे हैं। लीजिए-दीजिए और अखबार-टीवी पर आइए। पेड न्यूज छपवाइए। भ्रष्टाचारी हैं तो ले-देकर खबर रुक जाएगी। ऐसे में भड़ास निकालना भी मुसीबतजदा है।
नेता बरसों से भ्रष्टाचार करते आ रहे हैं, अधिकारी भ्रष्टाचार करते आ रहे हैं और जनता रो रही है, क्योंकि जनता खुद भ्रष्टाचार कर रही है। अब भड़ास कैसे और किस पर निकाले? जनता का भ्रष्टाचार दिखता नहीं है। राशन की लाइन में दलाल को कुछ ले-देकर बिना लाइन के ही राशन मिल जाए तो हुआ न परोक्ष भ्रष्टाचार! अब लाइन में लगे चिल्लाते रहें। भड़ास निकालते रहें।
ऊपर जैसा कहा कि चार दिन की जिंदगी है, ऐसे में ऊपर वाले ने किसी को भ्रष्टाचार की कृपा से साधन-संपन्न बना दिया है और वह अगर धड़ल्ले से भ्रष्टाचार कर रहा है और माल कमा रहा है, बना रहा है तो भगवान नामक कोई चीज उसके द्वारा पीड़ित के कहने पर उसे दंडस्वरूप नुकसान नहीं पहुंचाएगी। आजकल जिसके लिए गड्ढा खोदा जाता है, गड्ढे में भी उसे ही गिरना पड़ता है। खोदने वाला नहीं गिरता। अगर खोदने वाला गिरता तो इस देश में लोकतंत्र नहीं सततंत्र होता, सतयुग जैसा।
देश की गरीबी अभी भी नहीं गई। गरीबों के लिए हर 5 साल में अनेक दावेदार पार्टियां उनकी गरीबी मिटाने के लिए आ जाती हैं। बड़े-बड़े दावे किए जाते हैं। जो जीत जाते हैं, वे सरकारी योजनाओं का लाभ अपने व अपने नाते-रिश्तेदारों के लिए करते हैं। ऐसे में आम जनता भड़ास निकालती रहे तो निकाले।
अब हम भी ये लेख लिखकर अपनी भड़ास निकाल रहे हैं। छापने वाले भी छाप देंगे। (हो सकता है मन में हमें गाली भी बक दें)।
(इस लेख में व्यक्त विचार/विश्लेषण लेखक के निजी हैं। इसमें शामिल तथ्य तथा विचार/विश्लेषण वेबदुनिया के नहीं हैं और वेबदुनिया इसकी कोई ज़िम्मेदारी नहीं लेती है)