-आरिफा एविस
होली विभिन्न रंगों का त्योहार है। राजनीतिक होली में लफंगी रंग, हुड़दंगी रंग, चेला-चपाटी रंग, जुमलेबाजी रंग, घोटालेबाजी रंग, देशभक्ति रंग, मन की बात का रंग भी खूब लगाया जाता है, क्योंकि 'बुरा न मानो होली है'। इसके अलावा कोई बुरा भी मान जाए तो दूसरा कर भी क्या सकता है?
खैर, किसी विषय को राजनीतिक मुद्दा बनाना हो तो उसमें राजनीतिक रंग डाल दो, फिर देखो रंगों के कमाल! जुमलेबाजी रंग, आरोप-प्रत्यारोपी रंग, घोटाली रंग खूब निखरकर आता है, साथ ही देखने वाले को मजा भी खूब दिलाता है।
यूं तो राजनीति में कुछ ही रंगों की भरमार है। ऐसा लगता है, जैसे बाकी रंग राजनीति करने से कतराते हैं। वक्त-बेवक्त इन रंगों पर दूसरे रंग चढ़ जाते हैं, मानो रंग न हो, रंगरेज की दुकान हो। वैसे तो दिखावट में एक रंग, दूसरे का विरोधी होता है। मजाल कि दोनों रंग आपस में मिल जाएं, पर राजनीति में रंगों का घालमेल चलता है।
राजनीतिक होली में किसी पंचांग की जरूरत नहीं होती, जब चाहो होली-दिवाली मना लो। नीली, पीली, लाल, भगवा, हरा, गुलाबी, सफेद सब अपने आप में अलग तो हैं, पर एक-दूसरे से जुड़े भी हैं। यूं तो यह पर्व पारंपरिक रूप से दो दिन मनाया जाता है लेकिन अब इसकी कोई निश्चितता नहीं। जिसे देखो वो अपने हिसाब से मना ले और जब चाहे मना ले, बस बहाना चाहिए। अरे हां, इस होली के भी तो बहुतेरे नाम हैं।
एक बात और इन राजनीतिक पार्टियों की ईद-ए-गुलाबीया, धुलेंडी, धुरड्डी, धुरखेल या धूलिवंदन मनाने का कोई हिसाब-किताब नहीं है कि कब तक और किस दिन मनाना है। इनकी तो अपने मन की गंगा, अपने मन की जमुना बहती रहती है।
कहने को होली वसंत ऋतु में मनाया जाने वाला भारतीय लोगों का त्योहार है लेकिन खूनी होली देश से लेकर विदेशों में आए दिन खेली ही जाती है जिसके लिए किसी खास मौसम की जरूरत नहीं। अपने यहां पीकर मासूमों को रौंद देने भर से, भूख के लिए चोरी करने पर मार देने से, सांप्रदायिक पिचकारी से खूब खूनी होली खेली जा रही है।
सीरिया, म्यांमार जैसे देश भी इस खूनी होली से बचे नहीं हैं। अब इसे मनाने के लिए किसी होलिका को जलाने की जरूरत नहीं, जिंदा इंसानों का जला देने से ही काम चल जाता है। हां, कभी-कभी इसका रंग-रूप बदल जरूर जाता है, मसलन जातिगत खूनी होली, धार्मिक सौहार्द व दंगे-फसाद की होली, स्थानीय विशेष की होली, लव जिहादी होली, लोगों के उजाड़न की होली। ऐसी होली किसी धर्मविशेष से नहीं जुड़ी होती, इसके लिए राजनीतिक धर्म ही सर्वोपरि है।
राजनीतिक हुड़दंगी आपस में आरोप-प्रत्यारोप के गुब्बारे आए दिन फेंकते रहते हैं। संसद, रैलियों में जुबानी गुलाल-अबीर की बौछार भी करते रहते हैं। इन हुड़दंगों की एक खास पहचान है कि रंगीन होते हुए भी ये सभी रंगों को मिलकर काला रंग बनाते हैं और 'सफेदपोश' कहलाते हैं, क्योंकि 'बुरा ना मानो होली है' का लेबल जो लगाते हैं।