केरल का सबरीमाला तो लंबे समय से सुर्खियां बटोर रहा है लेकिन राज्य में और भी ऐसी कई जगह हैं जहां महिलाओं का प्रवेश वर्जित है। माना जाता है कि अगस्त्यरकूडम पहाड़ पर अगर कोई महिला गई तो दुनिया तबाह हो जाएगी।
सुबह के पांच बजे हैं। सूरज अभी भी नहीं उगा है। तिरुअनंतपुरम में सात महिलाएं इस अंधेरी सुबह में एक वैन में सवार होती हैं। इनमें कोई टीचर है, कोई वकील, तो कोई सेल्स मैनेजर। उम्र 30 से 56 साल तक। सब एक दूसरे से अलग हैं लेकिन एक जज्बा है जो इन्हें एक-दूसरे से जोड़ता है। ये सब मिलकर इतिहास रचने जा रही हैं।
इन्हें साथ लाने का श्रेय जाता है दिव्या दिवाकरण को। 38 साल की दिव्या केरल के एक हाईस्कूल में पढ़ाती हैं। तीन साल पहले उन्होंने एक सरकारी नोटिस में पढ़ा कि बच्चों और महिलाओं का अगस्थ्यरकूडम नाम के पहाड़ पर जाना मना है। वे इस पहाड़ की लगभग 1900 मीटर ऊंची चोटी को नहीं छू सकते। दिव्या को यह ठीक नहीं लगा। वह बताती हैं, मैंने फौरन फेसबुक पर शेयर किया और मीडिया को भी सतर्क किया। महिलाओं को किसी भी जगह पर जाने की आजादी होनी चाहिए।
दिव्या ने कुछ लोगों के साथ मिलकर वन मंत्रालय को चुनौती दी। इस पहाड़ पर चढ़ने के लिए वन मंत्रालय से अनुमति लेना जरूरी है। 2016 में उन्होंने ये लड़ाई शुरू की और लगभग एक साल के संघर्ष के बाद उन्हें अनुमति मिल गई। दिव्या और उनके साथी अपनी जीत का जश्न मना पाते उससे पहले ही हाईकोर्ट का आदेश आ गया कि महिलाएं सिर्फ बेस कैंप तक ही जा सकती हैं, जो चोटी से छह किलोमीटर की दूरी पर स्थित है।
इन्हें स्थानीय कनी समुदाय के विरोध का भी सामना करना पड़ा। इस समुदाय का मानना है कि यह पहाड़ हिंदू ऋषि अगस्त्य का विश्राम स्थल है। अगस्त्य ऋषि ब्रह्मचारी थे, इसलिए किसी भी महिला को उनके या उनके निवास के करीब जाने की अनुमति नहीं है। यहां माना जाता है कि अगर कोई महिला पहाड़ की चोटी पर पहुंच गई, तो यह दुनिया के अंत की शुरुआत होगी। ऋषि के प्रकोप के कारण पेड़ पौधों से सभी फूल पत्ते झड़ जाएंगे।
केरल की ट्राइबल जनरल असेंबली के अध्यक्ष मोहनन त्रिवेणी ने डॉयचे से बातचीत में कहा, हमारे समुदाय की महिलाएं भी कभी वहां नहीं जाती हैं। मैं महिला और पुरुष के बीच समानता का समर्थन करता हूं लेकिन हर मंदिर, हर समुदाय के अपने कुछ रीति-रिवाज होते हैं, उपासना के अपने अलग तरीके होते हैं।
नवंबर 2018 में केरल हाईकोर्ट के फैसले के साथ बहस खत्म हो गई। औरतों ने अपने हक की लड़ाई जीत ली थी। फैसले के तुरंत बाद 4300 लोगों ने पहाड़ पर चढ़ने के लिए अर्जी डाल दी। शाइनी राजकुमार आज पहाड़ पर चढ़ने की तैयारी के साथ यहां आई हैं। वे बताती हैं, मेरे कुछ दोस्तों ने मुझसे कहा कि मैं ना जाऊं क्योंकि ये बहुत जोखिमभरा है। उन्होंने तो ये भी कहा कि चढ़ाई के दौरान एक जगह ऐसी आएगी जहां मेरे घुटने मेरी नाक को छू रहे होंगे।
शाइनी हंसते हुए कहती हैं कि उन्होंने किसी की बात नहीं मानी, मुझे जोखिम उठाना अच्छा लगता है और मैं चाहती हूं कि बाकी महिलाएं भी मेरी मिसाल लें और खुद को सशक्त महसूस करें। शाइनी के 16 साल के बेटे लेनिन को भी उन पर नाज है। डॉयचेवेले से बातचीत में उसने कहा, हमारे राज्य केरल में अकसर लोग परंपराओं में बंध जाते हैं। मेरी मां को पहले भी काफी भला-बुरा सुनना पड़ा है क्योंकि उन्हें बाइकिंग का शौक है, लेकिन वो डटी रहीं।
पिछले एक साल से केरल सबरीमाला मंदिर को लेकर विवादों में घिरा है जहां लड़कियों और महिलाओं को प्रवेश की अनुमति नहीं थी। अदालत के फैसले के बाद भी यह विवाद ठंडा नहीं पड़ा है। जहां एक तरफ मंदिर में प्रवेश को उत्सुक महिलाएं हैं, वहीं दूसरी ओर लाखों महिलाओं के एकजुट होकर मंदिर के इर्दगिर्द दीवार बनाने को भी नजरअंदाज नहीं किया जा सकता।
रिपोर्ट : निमिषा जायसवाल/आईबी