लंबे अंतराल के बाद उत्तर कोरिया फिर से अंतरराष्ट्रीय समुदाय के सब्र को परख रहा है और बैलेस्टिक मिसाइलों का परीक्षण कर रहा है। लेकिन इससे उत्तर कोरिया क्या हासिल करना चाहता है। उत्तर कोरिया दुनिया के सबसे अलग थलग देशों में है। वहां से जानकारी बहुत छन-छनकर आती है। लेकिन जब बात परमाणु हथियारों और बैलेस्टिक मिसाइलें विकसित करने की हो, तो उसके इरादे बहुत स्पष्ट नजर आते हैं।
दक्षिण कोरिया की राजधानी सियोल में एशियन इंस्टीट्यूट फॉर पॉलिसी रिसर्च के सीनियर फेलो गो म्योंग ह्युन कहते हैं कि उत्तर कोरिया ने अपने भावी परमाणु विकास कार्यक्रम का नक्शा तैयार कर लिया है। वे काफी समय से कह रहे हैं और अपनी परेडों में इसे दिखा भी रहे हैं। पिछली पार्टी कांग्रेस में भी इस पर चर्चा हुई थी।
जनवरी में उत्तर कोरिया की सत्ताधारी वर्कर्स पार्टी की आठवीं कांग्रेस हुई जिसमें देशभर से आए हजारों प्रतिनिधि राजधानी प्योंगयांग में जुटे। इस आयोजन का समापन एक परेड से हुआ जिसमें आधुनिक मिसाइलों और सैन्य टेक्नोलॉजी का प्रदर्शन किया गया। यह परेड अमेरिका और दक्षिण कोरिया के व्यापाक सैन्य अभ्यासों के खिलाफ चेतावनी भी थी।
उत्तर कोरिया के नेता किम जोंग उन ने 2018 में तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप से सिंगापुर में मुलाकात की थी। उस वक्त अमेरिका और दक्षिण कोरिया के सैन्य अभ्यासों को रोकने पर सहमति बनी थी। इसके बदले में किम भी उत्तर कोरिया की लंबी दूरी की मिसाइलों या परमाणु परीक्षणों पर रोक के लिए राजी हुए थे।
इसके बाद अमेरिका और दक्षिण कोरिया ने व्यापक सैन्य अभ्यासों से परहेज किया। लेकिन जब दक्षिण कोरिया और अमेरिका ने मार्च में 10 दिन का कमांड पोस्ट सिमुलेटिड वॉर गेम अभ्यास किया, तो उत्तर कोरिया इससे भड़क गया। किम जोंग उन की बहन किम यो जोंग ने कहा कि वॉर गेम और दुश्मनी संवाद और सहयोग के साथ साथ नहीं चल सकते। उन्होंने राष्ट्रपति बाइडन के प्रशासन को खुली चुनौती देते हुए कहा कि 'अगर अमेरिका को अगले चार साल तक चैन की नींद सोनी है तो बदबू फैलाने से बचे।
जो बाइडन का इम्तिहान
उत्तर कोरिया ने 21 मार्च को दो क्रूज मिसाइलें दागीं। इसके दो दिन बाद उसने छोटी दूरी की दो बैलेस्टिक मिसाइलें टेस्ट कीं, जो संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के प्रतिबंधों का उल्लंघन करती हैं। बहुत से कोरियाई पर्यवेक्षक मानते हैं कि उत्तर कोरिया अमेरिका में जो बाइडन के नए प्रशासन को संदेश देना चाहता है। हालांकि बाइडन प्रशासन ने इन्हें ज्यादा तवज्जो नहीं दी और कहा कि 'इसमें कुछ भी नया नहीं है'।
गो का कहना है कि जब अमेरिका ने क्रूज मिसाइल दागे जाने को अहमियत नहीं दी तो उत्तर कोरिया ने महसूस किया कि उसे खुराक बढ़ानी होगी। उत्तर कोरिया का यही तरीका है कि वह शुरुआत छोटी करता है और फिर तनाव को बढ़ाता चला जाता है और फिर एकदम झटका देता है।
हाल में जब अमेरिकी राष्ट्रपति बाइडन से उत्तर कोरिया को लेकर उनके रुख के बारे में पूछा गया तो उन्होंने कहा कि अगर वे तनाव को बढ़ाने का फैसला करते हैं तो हम उसी तरह से उन्हें जवाब देंगे। लेकिन मैं कुछ हद तक कूटनीति के लिए भी तैयार हूं, लेकिन इसके लिए शर्त अंततः परमाणु निरस्त्रीकरण होगी।
जर्मनी का एनजीओ फ्रीडरिष नॉयमन फाउंडेशन 18 साल से उत्तर कोरिया में काम कर रहा है। इसके कोरियाई ऑफिस के प्रमुख क्रिस्टियान टाक्स कहते हैं कि हालिया हथियार परीक्षणों का उद्देश्य स्पष्ट रूप से बाइडन प्रशासन को संदेश देना था। वह कहते हैं कि उत्तर कोरिया ने ठीक उस समय परीक्षण किए जब बाइडन प्रेस कांफ्रेंस कर रहे थे। बाइडन प्रशासन की तरफ से बातचीत के संकेतों का भी उत्तर कोरिया ने कोई जवाब नहीं दिया।
उत्तर कोरिया की क्षमताएं
उत्तर कोरिया अपने हथियारों की क्षमता को परखने के लिए भी मिसाइल टेस्ट करता है जिसमें अधिकारियों के मुताबिक 'नई तरह की' मिसाइलें भी शामिल हैं। टाक्स कहते हैं कि हमने हाल की परेडों में नई तरह की हथियार टेक्नोलॉजी देखी है, जबकि पिछले साल टेस्ट बहुत कम हुए। मुझे लगता है कि वे बातचीत की मेज पर जाने से पहले कुछ टेस्ट पूरे कर लेना चाहते हैं।
उत्तर कोरिया ने पहले भी ऐसे परीक्षण किए हैं, हालांकि उस बात को 11 महीने हो जुके हैं जब उसने पिछली बार छोटी दूरी की बैलेस्टिक मिसाइलों को टेस्ट किया था। लेकिन चीजें उस वक्त और जटिल हो जाती हैं जब ऐसी खुफिया रिपोर्टें मिलती हैं कि उत्तर कोरिया अपने परमाणु हथियारों का जखीरा भी बढ़ा रहा है। उत्तर कोरिया पर नजर रखने वाले विशेषज्ञ मानते हैं कि वह कभी परमाणु हथियार बनाने का अपना कार्यक्रम नहीं छोड़ेगा, कम से कम अमेरिका को संतुष्ट करने के लिए तो बिलकुल नहीं।
उधर अमेरिका में आने वाले नए राष्ट्रपति से हमेशा कोई न कोई समझौते करने की उम्मीद लगाई जाती है। अगर कोई समझौता होता है तो उत्तर कोरिया को उसका बहुत फायदा होगा। उस पर लगे प्रतिबंधों में ढील दी जा सकती है। गो भी मानते हैं कि हथियारों में कटौती की डील संभव है, लेकिन वह यह भी कहते हैं कि उत्तर कोरिया का परमाणु निरस्त्रीकरण जल्द संभव नहीं दिखता है, कम से कम एक अमेरिकी राष्ट्रपति के कार्यकाल में तो बिलकुल नहीं। इसमें बहुत समय लगेगा।