Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
मंगलवार, 15 अक्टूबर 2024
webdunia
Advertiesment

कोविड 19 से पुरुषों की मौत ज्यादा क्यों?

हमें फॉलो करें कोविड 19 से पुरुषों की मौत ज्यादा क्यों?

DW

, शनिवार, 19 दिसंबर 2020 (15:59 IST)
रिपोर्ट अलेक्जांडर फ्रॉएंड
 
आदमी, औरत और बच्चे, सारे लोग एक समान रूप से कोरोनावायरस की चपेट में आए। हालांकि पुरुषों में यह संक्रमण ज्यादा गंभीर हुआ और मरने वालों की संख्या भी ज्यादा रही। डीडब्ल्यू ने इसकी वजहें ढूंढने की कोशिश की है।
 
महामारी की शुरुआत से ही इस बात के कई संभावित कारण बताए गए कि क्यों संक्रमित होने के बाद पुरुष इस बीमारी से ज्यादा परेशान हो रहे हैं। पुरुषों का अपनी सेहत पर ज्यादा ध्यान ना देना, ज्यादा सिगरेट पीना या फिर पोषण से भरपूर खाना नहीं खाना, इन सिद्धांतों के मुताबिक खासतौर से बुजुर्गों की जीवनशैली ज्यादा नुकसानदेह बताई गई। इसके साथ ही पुरुष डॉक्टर को दिखाने के लिए ज्यादा लंबा इंतजार करते हैं।
 
9 दिसंबर को नेचर कम्युनिकेशंस जर्नल में छपी एक नई स्टडी में पहले हुई इन खोजों की पुष्टि हुई है। इससे पहले जून में ग्लोबल हेल्थ 50/50 नाम की एक रिसर्च के तहत 20 देशों से जुटाए गए आंकड़े जून में ही यह साबित कर चुके हैं कि वायरस पुरुष और महिलाओं को एक समान रूप से संक्रमित करता है। हालांकि पुरुषों में इसके गंभीर होने और संक्रमण से मौत होने के ज्यादा आसार हैं।
 
लैंगिक आधार पर देखें तो यह अनुपात दो तिहाई और एक तिहाई का है। यानी हर तीन मौतों में दो पुरुष और एक महिला है। इसमें एक कारण तो निश्चित रूप से पुरुषों की पहले से मौजूद बीमारी की स्थिति है। उदाहरण के लिए पुरुष हृदय रोगों की चपेट में ज्यादा आते हैं और ऐसी बीमारियों से उनकी मौत भी महिलाओं की तुलना में ज्यादा होती है।
 
इसके अलावा एक दूसरा निर्णायक कारण है उम्र की संरचना। जर्मनी के रॉबर्ट कॉख इंस्टीट्यूट आरकेआई के मुताबिक 70-79 साल की उम्र तक के सभी उम्र के समूहों में महिलाओं की तुलना में पुरुषों की मौत दोगुनी ज्यादा हुई। यहां तक कि आरकेआई भी इस लैंगिक अंतर की वजह बता पाने में नाकाम रहा।
 
एसीई2 रिसेप्टर
 
एसीई2 रिसेप्टर शायद इसमें अहम भूमिका निभा रहा है, क्योंकि यह कोविड-19, सार्स और एमईआरएस सबके लिए एक तरह से रास्ते का काम करता है। ये सारी बीमारियां कोरोनावायरस के कारण होती हैं। म्यूनिख की एलएमयू मेडिकल कॉलेज में एनेस्थीसिया विभाग के निदेशक बैर्नहार्ड स्विसलर ने इस साल जून में कहा था कि एमईआरएस की चपेट में भी पुरुष ही ज्यादा आए। यूनिवर्सिटी मेडकल सेंटर ग्रोनिंगन की एक स्टडी के मुताबिक एसीई2 रिसेप्टर की पुरुषों में ज्यादा मात्रा होती है।
 
रिसर्चरों ने एसीई2 रिसेप्टर और हार्ट फेल होने के बीच संभावित संबंध ढूंढने की प्रक्रिया में इस लैंगिक अंतर का पता लगाया। स्विसलर के मुताबिक रिसर्चर फिलहाल इस बात की जांच कर रहे हैं कि क्या एसीई को नियंत्रित करने वाली एंटीहाइपरटेंसिव दवा जैसी चीजों से कोशिकाओं में एसीई2 रिसेप्टर का बनना बढ़ जाता है और लोग संक्रमित हो जाते हैं। स्विसलर का कहना है कि निश्चित रूप से यह बात सोची जा सकती है लेकिन अब तक कुछ भी साबित नहीं हुआ है।
 
एसीई2 रिसेप्टर वो कोशिकाएं हैं जो कोरोनावायरस या फिर सार्स और दूसरे कुछ वायरसों के लिए मेजबान का काम करती हैं। वायरस इन्हीं कोशिकाओं के रास्ते शरीर में प्रवेश करते हैं।
 
एस्ट्रोजेन और मजबूत इम्यून सिस्टम
 
महिलाओं का प्रतिरक्षा तंत्र यानी इम्यून सिस्टम भी पुरुषों की तुलना में ज्यादा सहनशील होता है। इसकी मुख्य वजह है मादा सेक्स हार्मोन एस्ट्रोजेन। यह इम्यून सिस्टम को उत्प्रेरित करता है ताकि यह तेजी से काम करे और पैथोजेन के खिलाफ ज्यादा आक्रामक रवैया अपनाए। दूसरी तरफ नर हार्मोन टेस्टोस्टेरॉन शरीर के अपने सुरक्षा तंत्र की राह में बाधा खड़ी करता है।
 
वायरोलॉजिस्टों का कहना है कि औरतों के इम्यून सिस्टम का वायरस के संक्रमण के खिलाफ मजबूती से मुकबला करना आमतौर पर दूसरे वायरसों के मामले में भी नजर आता है। इनमें इनफ्लुएंजा या सामान्य सर्दी खांसी भी शामिल है। दूसरी महिलाएं अकसर अपने इम्यून सिस्टम के ज्यादा सक्रिय होने की वजह से भी बीमार होती हैं। इन मामलों में इम्यून सिस्टम अपनी ही कोशिकाओं पर हमला कर देता है। यह कोविड -19 के लिए भी चीजों को मुश्किल बनाती है।
 
महिलाओं के पक्ष में कुछ 'जेनेटिक कारण' भी हैं। मॉल्यूक्यूलर वायरोलॉजिस्ट थॉमस पीचमन ने डीडब्ल्यू को बताया, 'पैथोजेन की पहचान के लिए जिम्मेदार जीन जैसे इम्यून से जुड़े कुछ जीन एक्स क्रोमोसोम के कोड में होते हैं। महिलाओं में दो एक्स क्रोमोसोम होते हैं जबकि पुरुषों में सिर्फ एक, इसलिए भी औरतों को यहां फायदा होता है।
 
भारत में महिलाओं की मौत ज्यादा क्यों
 
आश्चर्यजनक रूप से भारत में की गई रिसर्च दिखाती है कि यहां कोविड-19 के कारण पुरुषों की तुलना में महिलाओं की मौत का ज्यादा खतरा है। रिसर्च ने दिखाया है कि संक्रमित लोगों में महिलाओं के लिए मौत की दर 3.3 फीसदी है जबकि पुरुषों के लिए 2।9 फीसदी। 40 से 49 आयु समूह के लोगों में 3.2 फीसदी संक्रमित औरतों की मौत हुई और 2.1 फीसदी पुरुषों की। इसी तरह 5-19 साल के आयु समूह में तो केवल लड़कियों और औरतों की ही मौत हुई।
 
भारत इस मामले में क्यों अपवाद है इसकी बारीकी से छानबीन की जा रही है। अनुमान है कि ऐसा इसलिए हो रहा है, क्योंकि भारत में पुरुषों की तुलना में बुजुर्ग महिलाओं की संख्या ज्यादा है। रिसर्च से यह भी पता चला है कि भारत में महिलाओं के स्वास्थ्य पर पुरुषों की तुलना में कम ध्यान दिया जाता है। महिलाएं डॉक्टरों के पास कम जाती हैं और अकसर खुद से ही दवा लेकर काम चलाती हैं। तुलनात्मक रूप से उनका टेस्ट या इलाज देर से शुरू होता है।
 
हार्वर्ड यूनिवर्सिटी में सार्वजनिक स्वास्थ्य की प्रोफेसर एसवी सुब्रह्मण्यम ने बीबीसी से बातचीत में कहा, 'इसमें कितने हिस्से की जिम्मेदारी जैविक कारणों को है और कितने हिस्से की सामाजिक कारणों को यह अभी साफ नहीं है। भारत के लिए लैंगिक कारण एक अहम कारक हो सकता है।' 1918 में जब स्पैनिश फ्लू का प्रकोप हुआ तब भी भारत में पुरुषों की तुलना में महिलाओं की ज्यादा मौत हुई। औरतों में संक्रमण इसलिए ज्यादा हुआ, क्योंकि वो कुपोषित थीं, उनमें से ज्यादातर गंदे और बंद घरों में रहती थी। ऐसे में पुरुषों की तुलना में उनके बीमार होने की आशंका ज्यादा थी।
 
बच्चों को कम खतरा
 
कोरोनावायरस के मामले में बच्चे समाज में सबसे कमजोर नहीं हैं। ज्यादातर बच्चों में इसकी वजह से मामूली परेशानी हई और अकसर बच्चों के संक्रमित होने पर भी उनमें कोई लक्षण नजर नहीं आए। जर्मनी में महामारी शुरू होने के बाद से इसकी चपेट में आकर 9,000 से ज्यादा लोगों की मौत हुई है लेकिन इसमें महज 3 लोग है जिनकी उम्र 18 साल से कम है।
 
इसका कारण भी अब तक पूरी तरह साफ नहीं है। डॉक्टरों का अनुमान है कि छोटे बच्चों में स्वाभाविक रूप से मां वाला इम्यून सिस्टम प्रभावी रहता है। पहले पैथोजेन्स से सुरक्षा के तौर पर मां अपना खास सुरक्षा तंत्र भ्रूण को देती है और फिर छोटे बच्चों को अपने दूध के जरिए।
 
यह प्रक्रिया तब तक चलती रहती है जब तक कि बच्चे के भीतर अपना प्रतिरक्षा तंत्र ना खड़ा हो जाए। यह काम बच्चों में 10 साल की उम्र तक पहुंचने तक होता है। उसके बाद भी उनका सुरक्षा तंत्र पूरी जिंदगी सीखने की प्रक्रिया के लिए तैयार रहता है खासतौर से नए पैथोजेन के आने पर।
 
बच्चों में नहीं फैल रहा है कोरोना
 
कोरोना इस मामले में दूसरी संक्रामक बीमारियों से अलग है कि यह बच्चों के जरिए उतनी तेजी से नहीं फैल रहा। आमतौर पर बच्चों के कारण संक्रामक बीमारियां बड़ी तेजी से पूरी आबादी में फैल जाती हैं। जर्मन राज्य बाडेन वुर्टेमबर्ग की ओर से कराए गए एक रिसर्च के मुताबिक कोरोनावायरस इस मामले में बिल्कुल अलग है। यह रिसर्च जर्मनी के डे केयर सेंटरों और स्कूलों में सामान्य स्थिति की तेजी से बहाली के लिए बड़ा आधार बना, हालांकि सुरक्षा के उपाय और सामाजिक दूरी के नियमों को भी जारी रखा गया।
 
यह अब भी साफ नहीं है कि क्या संक्रमित बच्चे भी संक्रमित वयस्कों की तरह ही नुकसानदेह हो सकते हैं। बर्लिन के एक अस्पताल की रिसर्च ने बताया कि बच्चों के गले में भी उतने ही वायरस थे जितने कि बड़ों के। दूसरी कई रिसर्चों का भी लगभग यही नतीजा था।
 
हालांकि श्वसन अंगों में वायरस की मजबूत मौजूदगी का यह मतलब नहीं है कि ये वायरस उसी तरह से फैलेंगे भी। बच्चों में लक्षण थोड़े कम दिख रहे हैं, जैसे कि खांसी। तो यह मुमकिन है कि वो खुद तो संक्रमित होंगे लेकिन दूसरों को उतना संक्रमित नहीं करेंगे।

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi

अगला लेख

गोवा को 451 साल की गुलामी से लोहिया ने कैसे दिलाई आज़ादी