थोक मूल्य सूचकांक में भारी उछाल के बावजूद भारतीय रिजर्व बैंक के महंगाई मापने का पैमाना अभी रेड लाइन के भीतर है। लेकिन खुदरा और थोक महंगाई दर के बीच असंतुलन से अर्थशास्त्री भी पसोपेश में हैं।
भारत में थोक महंगाई दर (डब्ल्यूपीआई इंडेक्स) 2011-12 सीरीज के अपने अधिकतम स्तर पर पहुंच चुकी है। केंद्रीय वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय ने 14 दिसंबर को थोक महंगाई दर से जुड़े ताजा आंकड़े जारी किए। इसके मुताबिक, नवंबर 2021 में यह दर 14.23 प्रतिशत पर पहुंच गई।
एक साल पहले नवंबर 2020 में थोक महंगाई दर का आंकड़ा 2.29 फीसदी था। महंगाई दर में हुई इस वृद्धि की सबसे बड़ी वजह खाद्य पदार्थों खासतौर पर सब्जियों के दाम में हुआ इजाफा है। इसके अलावा खनिज संसाधन और पेट्रोलियम पदार्थों की कीमतों में हुई वृद्धि भी इसके मुख्य कारणों में हैं।
डब्ल्यूपीआई का मतलब क्या?
होलसेल प्राइस इंडेक्स, यानी थोक मूल्य सूचकांक थोक बाजार में सामान की औसत कीमतों में हुए बदलाव को मापता है। थोक बाजार का मतलब है, बड़ी मात्रा में सामान की खरीदारी, जो कारोबारी, खुदरा व्यापारी या कंपनियां करती हैं। इस सूचकांक का मकसद बाजार में उत्पादों की गतिशीलता पर नजर रखना है, ताकि मांग और आपूर्ति की स्थिति का पता चल सके।
साथ ही, इससे निर्माण इंडस्ट्री और उत्पादन से जुड़ी स्थितियां भी मालूम चलती हैं। इस सूचकांक में सर्विस सेक्टर की कीमतें शामिल नहीं होतीं, ना ही यह बाजार के उपभोक्ता मूल्य की स्थिति ही दिखाता है। पहले डब्ल्यूपीआई मापने का बेस ईयर 2004-2005 था। लेकिन अप्रैल 2017 में सरकार ने इसे बदलकर 2011-12 कर दिया। अगर पुराने बेस ईयर के हिसाब से देखें, तो डब्ल्यूपीआई अप्रैल 2005 से लेकर अब तक के अपने उच्चतम स्तर पर है।
सूचकांक की श्रेणियां
डब्ल्यूपीआई में सामग्रियों की तीन श्रेणियां होती हैं- प्राइमरी आर्टिकल्स, ईंधन और उत्पादित सामग्रियां। प्राइमरी आर्टिकल्स की भी दो उप-श्रेणियां हैं। पहली खाद्य उत्पाद। दूसरी गैर खाद्य उत्पाद। खाद्य उत्पादों में अनाज, धान, गेहूं, दालें, सब्जियां, फल, दूध, अंडा, मांस और मछली जैसी चीजें शामिल हैं। गैर खाद्य उत्पाद में तेल के बीज, खनिज संसाधन और कच्चा पेट्रोलियम शामिल है।
डब्ल्यूपीआई की दूसरी श्रेणी है ईंधन। इसमें पेट्रोल, डीजल और एलपीजी की कीमतें देखी जाती हैं। तीसरी और सबसे बड़ी श्रेणी है, मैन्युफैक्चर्ड गुड्स, यानी उत्पादित सामग्रियां। इनमें कपड़ा, बने-बनाए कपड़े, रसायन, प्लास्टिक, सीमेंट और धातु जैसी चीजों के अलावा चीनी, तंबाकू उत्पाद, वसा उत्पाद जैसे मैन्युफैक्चर्ड खाद्य पदार्थ भी शामिल हैं।
उपभोक्ता मूल्य सूचकांक से कितना अलग है यह?
एक ग्राहक के तौर पर आप और हम थोक खरीदारी का हिस्सा नहीं होते। हम खुदरा बाजार से सामान खरीदते हैं। इससे जुड़ी कीमतों में हुए बदलाव को दिखाने का काम करता है कंज्यूमर प्राइस इंडेक्स (सीपीआई)। इसी को हिंदी में उपभोक्ता मूल्य सूचकांक कहते हैं।
घर-परिवार विभिन्न पदार्थों और सेवाओं के लिए जो औसत मूल्य चुकाते है, सीपीआई उसी को मापता है। भारत सरकार ने डब्ल्यूपीआई के साथ ही सीपीआई के ताजा आंकड़े भी जारी किए हैं। इसके मुताबिक, सीपीआई पर आधारित खुदरा महंगाई दर नवंबर 2021 में 4.91 प्रतिशत पर पहुंच गई है। यह दर तीन महीने में अधिकतम स्तर है।
क्या आम महंगाई दर्शाता है डब्ल्यूपीआई?
दुनिया की कई अर्थव्यवस्थाएं महंगाई मापने के लिए डब्ल्यूपीआई को मुख्य मानक मानती हैं। मगर भारत ऐसा नहीं करता। भारतीय रिजर्व बैंक मौद्रिक और क्रेडिट से जुड़ी नीतियां तय करने के लिए थोक मूल्यों को नहीं, बल्कि खुदरा महंगाई दर को मुख्य मानक मानता है। लेकिन अर्थव्यवस्था के स्वभाव में डब्ल्यूपीआई और सीपीआई एक-दूसरे पर असर डालते हैं। डब्ल्यूपीआई बढ़ेगा, तो सीपीआई भी बढ़ेगा।
लेकिन फिलहाल सीपीआई, रिजर्व बैंक की नियंत्रण रेखा के भीतर है। भारत में सीपीआई छह प्रतिशत के दायरे में हो, तो रिजर्व बैंक खुश रहता है। खुदरा मुद्रास्फीति की दर नवंबर 2021 में 4.91 प्रतिशत थी। यानी रिजर्व बैंक का महंगाई मापने का जो पैमाना है, वह रेड लाइन से भीतर ही है। लेकिन सीपीआई और डब्ल्यूपीआई के बीच के इस असंतुलन से अर्थशास्त्री भी पसोपेश में हैं।