उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर धामी ने घोषणा की है कि उनकी सरकार अगले हफ्ते 'समान नागरिक संहिता' पर एक विधेयक विधानसभा में लाएगी और उसे पारित करवा कर लागू भी कर देगी। इसके लिए पांच फरवरी को विधानसभा का सत्र बुलाया गया है।
धामी ने एक बयान में कहा कि संहिता का मसौदा बनाने के लिए जिस विशेष समिति का गठन किया गया था; उसने अपना काम पूरा कर लिया है। समिति दो फरवरी को अपना मसौदा प्रदेश सरकार को सौंप देगी। उसके बाद रिपोर्ट को विधेयक में बदला जाएगा और विधान सभा से पारित करा लिया जाएगा।
क्या है समान नागरिक संहिता?
यूं तो साल-दर-साल बीजेपी के चुनावी घोषणापत्रों में अलग-अलग वादों और मुद्दों का जिक्र रहा है, लेकिन तीन ऐसे मुद्दे हैं जो दशकों से स्थायी तौर पर पार्टी के चुनावी घोषणापत्रों में ही नहीं बल्कि भाषणों, नारों और पार्टी की विचारधारा को समझाने वाले हर संचार माध्यम का हिस्सा रहे हैं।
ये मुद्दे हैं - राम मंदिर का निर्माण, जम्मू-कश्मीर से धारा 370 हटाना और समान नागरिक संहिता या यूनिफॉर्म सिविल कोड (यूसीसी) को लागू करना। माना जाता है कि इन तीनों को सबसे पहले 1989 में बीजेपी ने अपने घोषणापत्र में शामिल किया था।
समान नागरिक संहिता मूल रूप से एक ऐसी परिकल्पना है, जिसके तहत अलग-अलग समुदायों की मान्यताओं के अनुरूप बनाए गए पर्सनल लॉ या फैमिली लॉ को हटा दिया जाएगा और सबको एक ही कानून का पालन करना होगा। ये पर्सनल लॉ विवाह, तलाक, उत्तराधिकार जैसे जटिल विषयों पर बनाए गए थे, ताकि समुदायों को उनके धर्म और मान्यताओं के आधार पर इन क्षेत्रों में झगड़ों के समाधान का अधिकार रहे।
हिंदू, मुसलमान, ईसाई, सिख, पारसी और यहूदी, सभी के अपने-अपने फैमिली लॉ हैं। बीजेपी का मानना है कि पर्सनल लॉ एक देश की भावना जगाने की राह में अवरोधक हैं। यूसीसी के आलोचकों का कहना है कि इतनी विविधताओं वाले देश में ऐसा कानून लाना अलोकतांत्रिक है।
विधि आयोग ने ठुकरा दिया था
जून 2023 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भोपाल में बीजेपी कार्यकर्ताओं को संबोधित करते हुए पर्सनल लॉ की आलोचना की थी। उन्होंने कहा था, "कल्पना कीजिए कि एक ही घर में साथ-साथ रहने वाले परिवार के एक सदस्य के लिए एक कानून हो और दूसरे सदस्य के लिए कोई और कानून। क्या ऐसा घर चल पाएगा?"
इसी भाषण के एक महीने बाद ही धामी ने घोषणा की थी कि उत्तराखंड में यूसीसी लाया जाएगा और लागू किया जाएगा। देखना होगा कि धामी इस पर विधेयक ला पाते हैं या नहीं, लेकिन बीजेपी के समर्थकों में काफी उत्साह है। वो देखना चाहते हैं कि उनकी पार्टी से जुड़ी एक पुरानी परिकल्पना जब साक्षात रूप लेगी, तो वह कैसी नजर आएगी और उसका क्या असर होगा।
2018 में 21वें विधि आयोग ने यूसीसी के प्रस्ताव का निरीक्षण किया था और कहा था कि "इस समय यह देश के लिए ना तो जरूरी है और ना वांछनीय।" हालांकि विधि आयोग एक बार फिर यूसीसी के प्रस्ताव पर काम कर रहा है। पिछले साल ही आयोग ने लोगों से राय मांगी थी और अब वह उसे भेजी गई लाखों प्रतिक्रियाओं का अध्ययन कर रहा है।