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9/11 का गुबार आज भी अमेरिकियों को मार रहा है

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, मंगलवार, 10 सितम्बर 2019 (11:00 IST)
वर्ल्ड ट्रेड सेंटर के धराशायी होने से जो धूल का गुबार उठा, वो विषैले तत्वों से भरा था। उसकी चपेट में आए लोग आज गंभीर बीमारियों से जूझ रहे हैं। 11 सितंबर 2001 को न्यूयॉर्क के मैनहट्टन में जब वर्ल्ड ट्रेड सेंटर के दोनों टावर गिरे तो धूल का बड़ा गुबार छा गया। यह गुबार कई हफ्तों तक मौजूद रहा। जिन लोगों ने इस गुबार में सांस ली, वे आज कैंसर और अन्य खतरनाक बीमारियों से जूझ रहे हैं।
 
 
उस घटना के समय 26 साल की जैक्लिन फेब्रिलेट न्यूयॉर्क में वर्ल्ड ट्रेड सेंटर के पास ही थीं। जैक्लिन का दफ्तर वर्ल्ड ट्रेड सेंटर से दो ब्लॉक पीछे था। जिस वक्त आतंकवादियों ने दोनों पैसेंजर विमानों को टावरों से भिड़ाया, उस वक्त जैक्लिन दफ्तर में काम कर रहीं थीं। जैक्लिन की जिंदगी उस हमले की यादों के साथ आगे बढ़ती रही। वक्त गुजरने के साथ जैक्लिन तीन बच्चों की मां भी बन गईं। 2016 में जैक्लिन को पता चला कि उन्हें मेटास्टैटिक कैंसर है। ऐसा कैंसर जो शायद 9/11 के हमले के बाद एक महीने तक रहे धूल के गुबार से हुआ। जैक्लिन कहती हैं, "9/11 के दिन मैं वहीं थी। उसके कई साल बाद भी मैं वहीं काम करती रही। हमसे किसी ने नहीं कहा कि ऐसा भी हो सकता है।"
 
 
आतंकी हमलों के वक्त 19 साल का रिचर्ड फारर घटनास्थल के आस पास मौजूद नहीं था। लेकिन हमलों के बाद 2001 से 2003 के बीच रिचर्ड ने नियमित रूप से दक्षिणी मैनहट्टन के उस इलाके का सर्वे किया जहां ट्विन टावर गिरे थे। डेढ़ साल पहले रिचर्ड को भी आक्रामक कोलोन कैंसर का पता चला। 37 के रिचर्ड अब दो बच्चों के पिता हैं। शुरुआत में उन्हें समझ ही नहीं आया कि आम तौर पर बुढ़ापे में होने वाले इस कैंसर की जद में वह कैसे आए। उनके परिवार में भी किसी को कैंसर नहीं था। रिचर्ड फारर के कैंसर के तार भी वर्ल्ड ट्रेड सेंटर की विषैली धूल से जुड़े हैं।
 
 
वर्ल्ड ट्रेंड सेंटर के दो टावरों पर हुए हमले में करीब 3,000 लोगों की मौत हुई। लेकिन जैक्लिन और रिचर्ड उन लोगों में नहीं थे, जिन्होंने राहत और बचाव का काम किया हो या मलबा हटाया हो। हमले की 18वीं बरसी के मौके पर न्यूयॉर्क शहर उन लोगों की बढ़ती संख्या भी देख रहा है जो कैंसर या दूसरे किस्म की गंभीर बीमारियों का शिकार हुए हैं। ये सब धूल के उस गुबार की चपेट में आए जो कई हफ्तों तक मैनहैट्टन के ऊपर छाया रहा।
 
 
भरभरा कर ढहते ट्विन टावरों ने हवा में भारी मात्रा में डायोक्सीन, एस्बेस्टस और कैरासिनोजेनिक जैसे विषाक्त तत्व छोड़े। दमकल कर्मी और राहत और बचाव कार्य में लगे स्वयंसेवी इन विषैले तत्वों का सबसे पहला शिकार बने। महीनों तक चले साफ सफाई के काम में जुटे लोगों को कैंसर और दिल संबंधी बीमारियां बहुत ज्यादा हुईं। वर्ल्ड ट्रेड हेल्थ प्रोग्राम के तहत हुई जांचों में हजारों लोगों में कैंसर का पता चला। जून 2019 तक इस प्रोग्राम में हिस्सा लेने वालों की संख्या 21,000 हो गई। इनमें से 4,000 को कैंसर है। ज्यादातर मामलों में प्रोस्टेट, ब्रेस्ट और स्किन कैंसर।
 
 
जैक्लिन और रिचर्ड को लगता है कि प्रशासन ने कैंसर के प्रति लोगों को जागरुक करने के लिए या उन्हें इस बीमारी से बचाने के लिए बहुत ज्यादा काम नहीं किया। रिचर्ड कहते हैं, "मेरी पत्नी पूछती है क्या आतंकवादी तुम्हारे कैंसर के लिए जिम्मेदार हैं। मैं 100 फीसदी नहीं कह सकता, लेकिन मैं यह जरूर कह सकता हूं कि त्रासदी वाले इलाके में जाने वाले स्वस्थ्य व्यस्कों के जोखिम को कम करने के लिए बेहतर प्रयास किए जा सकते थे।"
 
 
स्वास्थ्य विशेषज्ञों के मुताबिक कैंसर के लिए किसी एक कारक को जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता है। लेकिन यह बात तय है कि विषैले मलबे के संपर्क में आए लोगों और कैंसर की दर में साफ संबंध है। न्यूयॉर्क फायर डिपार्टमेंट के चीफ मेडिकल अफसर डेविड प्रजैंट कहते के मुताबिक कई शोधों में यह साबित हो गया है कि धूल के गुबार की चपेट में आए लोगों में कैंसर की संभावना "10 से 30 फीसदी ज्यादा" पाई गई। जैसे जैस लोग उम्रदराज होंगे वैसे वैसे कैंसर का जोखिम और बढ़ेगा। प्रजैंट कहते हैं कि फेफड़ों के कैंसर को पनपने में 20 से 30 साल का समय लगता है।
 
 
जुलाई 2019 में अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप ने ऐसे पीड़ितों के लिए मुआवजे का दावा करने के लिए समयसीमा दिसंबर 2020 से बढ़ाकर 2090 कर दी। मुआवजा फंड का प्रारंभिक बजट 7.3 अरब डॉलर है, इसके खत्म होते ही फंड में और रकम डाली जाएगी। हर पीड़ित के लिए औसत मुआवजा 2,40,000 डॉलर है। मृतक के परिवार को 6,82,000 डॉलर का हर्जाना दिए जाने का प्रावधान है।
 
 
ओएसजे/आरपी (एएफपी)
 

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