दुनिया में बाघों की अब भी छह उपजातियां बची हुई हैं, वैज्ञानिकों ने इसकी पुष्टि कर दी है। उन्हें उम्मीद है कि इस खोज के बाद लुप्त हो रहे बाघों को बचाने के काम में तेजी आएगी।
दुनिया में अब चार हजार से कम ही बाघ बचे हैं। इनमें बंगाल टाइगर, अमूर टाइगर, साउथ चाइना टाइगर, सुमात्रन टाइगर, इंडोनिश टाइगर और मलायन टाइगर नाम की छह उपजातियां शामिल हैं। विज्ञान पत्रिका करेंट बायोलॉजी में छपी एक नई रिपोर्ट बताती है कि जिंदा बाघों में ये सभी छह उपजातियों के बाघ शामिल हैं। कैस्पियन, जावन और बाली टाइगर्स नाम की बाघों की तीन उपजातियां पूरी तरह से अब लुप्त हो चुकी हैं।
बाघों के मरने के पीछे सबसे बड़ी वजह है उनके आवास और शिकार का खत्म होना। इंसान की निगरानी रहने वालों के साथ ही मुक्त बाघों को कैसे बचाया जाए और उनकी संख्या बढ़ाई जाए यह वैज्ञानिकों के लिए हमेशा बहस का मुद्दा रहता है। इसके पीछे एक वजह तो यह भी रही है कि इस बात पर काफी विवाद है कि कितनी उपजातियां मौजूद हैं। कुछ वैज्ञानिक मानते हैं कि केवल दो ही उपजातियां हैं जबकि बाकि लोग मानते हैं कि 5-6 उपजातियां हैं।
जर्नल में छपी रिपोर्ट के लेखक बीजिंग के पेकिंग यूनिवर्सिटी के शु जिन लुओ कहते हैं, "बाघ की उपजातियों की संख्या पर आम सहमति नहीं होने का लुप्त होने की कगार पर पहुंच चुके इन जीवों को बचाने की वैश्विक कोशिशों पर काफी असर पड़ा है।" रिसर्चरों ने बाघों के संपूर्ण जीनोम के 32 नमूनों का विश्लेषण किया ताकि वो इस बात की पुष्टि कर सकें कि जीन के आधार पर ये छह अलग अलग उपजातियों के बाघ हैं।
माना जाता है कि बाघ पृथ्वी पर 20 से 30 लाख साल पहले आए लेकिन वर्तमान में जो बाघ मौजूद हैं उनकी उत्पत्ति के निशान करीब 1,10,000 साल पुराने हैं।
रिसर्चरों को बाघ की अलग अलग प्रजातियों के बीच प्रजनन के सबूत नहीं के बराबर मिले हैं। आनुवांशिक विविधता की इस कमी से यह संकेत मिलता है कि हर उपजाति के क्रमिक विकास का अपना अलग इतिहास है। यह वजह इन्हें बड़ी बिल्लियों के परिवार के दूसरे सदस्यों मसलन जागुआर से अलग करती है।
लुओ कहते हैं, "सारे बाघ एक जैसे नहीं हैं। रूस के बाघ क्रमिक विकास के आधार पर भारत के बाघों से बिल्कुल अलग हैं। यहां तक कि मलेशिया और इंडोनेशिया के बाघ भी अलग हैं।" लुओ ने बताया कि प्रमुख रूप से उनके आकार और रंग में फर्क है।
रिपोर्ट में कहा गया है कि बाघों को लुप्त होने से बचाने के लिए उनकी आनुवांशिक विविधता, क्रमिक विकास की विशिष्टता और पैंथेरा टिगरिस प्रजाति (सारे बाघ इसी प्रजाति के अंदर हैं) के सामर्थ्य को बचाने पर ध्यान देना होगा।