केप टाउन के छात्रों ने पेशाब से बनाई ईंट

Webdunia
शनिवार, 27 अक्टूबर 2018 (12:22 IST)
दक्षिण अफ्रीका के केप टाउन विश्वविद्यालय के कुछ छात्रों ने पर्यावरण को ध्यान में रखते हुए एक नया प्रयोग किया है, इन छात्रों ने ईंट बनाने के लिए इंसान के पेशाब का इस्तेमाल किया है। इन छात्रों ने इंसानी पेशाब के साथ रेत और बैक्टीरिया को मिलाया जिससे वे सामान्य तापमान में भी मज़बूत ईंट बना सकें।
 
 
केप टाउन विश्वविद्यालय में इन छात्रों के निरीक्षक डायलन रैंडल ने बीबीसी को बताया कि ईंट बनाने की यह प्रक्रिया ठीक वैसी ही है जैसे समुद्र में कोरल (मूंगा) बनता है। सामान्य ईंटों को भट्ठियों में उच्च तापमान में पकाया जाता है, जिसकी वजह से काफ़ी मात्रा में कार्बन-डाईऑक्साइड बनती है और पर्यावरण को नुकसान पहुंचाती है।
 
 
'चूना पत्थर की तरह है ठोस'
ईंट बनाने की प्रक्रिया में सबसे पहले केप टाउन विश्वविद्यालय (यूसीटी) के इंजीनियरिंग के छात्रों ने पुरुष शौचायल से पेशाब इकट्ठा किया।
 
एक ईंट बनाने में कितना पेशाब लगता है?
 
*औसतन एक व्यक्ति एक बार में 200 से 300 मिलीलीटर पेशाब करता है।
*एक बायो-ब्रिक बनाने के लिए 25-30 लीटर पेशाब की ज़रूरत होती है। यह मात्रा थोड़ी ज़्यादा लग सकती है लेकिन एक किलो खाद बनाने के लिए भी लगभग इतना ही पेशाब लगता है।
*तो कहा जा सकता है कि एक ईंट बनाने के लिए आपको 100 बार पेशाब करने जाना होगा।
 
(ये तमाम आंकड़ें बायो-ब्रिक और पेशाब से खाद बनाने वाले प्रोजेक्ट के ज़रिए एक अनुमान के तहत लिखे गए हैं।)
 
 
पेशाब से ईंट बनाने की इस प्रक्रिया को माइक्रोबायल कार्बोनेट प्रीसिपिटेशन कहा जाता है। इस प्रक्रिया में शामिल बैक्टीरिया एक एंज़ाइम पैदा करता है जो पेशाब में यूरिया को अलग करता है। ये कैल्शियम कार्बोनेट बनाता है, जो रेत को ठोस सिलेटी ईंटों का रूप देता है।
 
 
बायो-ब्रिक्स (जैव-ईंटों) के आकार और क्षमता को आवश्यकतानुसार बदला जा सकता है। डॉक्टर रैंडल ने बीबीसी के न्यूज़डे कार्यक्रम को बताया, "जब पिछले साल हमने इस प्रक्रिया को शुरू किया तो जो ईंट हमने बनाई वह आम चूना पत्थर से बनने वाली ईंट के लगभग 40 प्रतिशत तक मज़बूत थी।"
 
 
कुछ महीनों बाद हमने इस क्षमता को दोगुना कर दिया और कमरे में ज़ीरो तापमान के साथ उसमें बैक्टीरिया को शामिल किया ताकि सीमेंट के कण लंबे समय तक रहें। केप टाउन विश्वविद्यालय के अनुसार, सामान्य ईंट को 1400 डिग्री सेल्सियस के आसपास भट्ठी में रखा जाता है। लेकिन डॉक्टर रैंडल मानते हैं कि इसकी प्रक्रिया बहुत ही बदबूदार होती है।
 
 
वह कहते हैं, "ये वैसा ही है जैसे आपका पालतू जानवर एक कोने में पेशाब कर रहा है और उसकी गंदी बदबू फैली हो, उसमें से अमोनिया निकल रहा हो। ये प्रक्रिया अमोनिया का गौण उपज पैदा करती है। और इसे नाइट्रोजन खाद में बदल दिया जाता है।"
 
 
''लेकिन 48 घंटों के बाद ईंटों से अमोनिया की गंद पूरी तरह ख़त्म हो जाती है और इनसे स्वास्थ्य को कोई नुकसान भी नहीं पहुंचता। प्रक्रिया के पहले चरण में ही ख़तरनाक बैक्टीरिया को बेहद उच्च पीएच के ज़रिए ख़त्म कर दिया जाता है।''
 
 
यूसीटी के अनुसार, यूरिया के ज़रिए ईंट बनाने का काम कुछ साल पहले अमरीका में भी शुरू हुआ था। उस समय सिंथेटिक यूरिया का इस्तेमाल किया गया था। लेकिन डॉक्टर रैंडल और उनके छात्र सुज़ैन लैम्बर्ट और वुखेता मखरी ने पहली बार इंसान के असली पेशाब का इस्तेमाल ईंट बनाने के लिए किया है। इससे मानव मल के दोबारा प्रयोग की संभावनाएं बढ़ जाती हैं।
 

सम्बंधित जानकारी

Operation Sindoor के बाद Pakistan ने दी थी न्यूक्लियर अटैक की धमकी, पार्लियामेंटरी स्टैंडिंग कमेटी में क्या बोले Vikram Misri, शशि थरूर का भी आया बयान

भारत कोई धर्मशाला नहीं, 140 करोड़ लोगों के साथ पहले से ही संघर्ष कर रहा है, सुप्रीम कोर्ट की सख्त टिप्पणी

Manipur Violence : नृशंस हत्या और लूटपाट में शामिल उग्रवादी केरल से गिरफ्तार, एनआईए कोर्ट ने भेजा ट्रांजिट रिमांड पर

ISI एजेंट से अंतरंग संबंध, पाकिस्तान में पार्टी, क्या हवाला में भी शामिल थी गद्दार Jyoti Malhotra, लैपटॉप और मोबाइल से चौंकाने वाले खुलासे

संभल जामा मस्जिद मामले में मुस्लिम पक्ष को तगड़ा झटका

itel A90 : 7000 रुपए से भी कम कीमत में लॉन्च हुआ iPhone जैसा दिखने वाला स्मार्टफोन

सिर्फ एक फोटो से हैक हो सकता है बैंक अकाउंट, जानिए क्या है ये नया व्हाट्सएप इमेज स्कैम

Motorola Edge 60 Pro : 6000mAh बैटरी वाला तगड़ा 5G फोन, जानिए भारत में क्या है कीमत

50MP कैमरे और 5000 mAh बैटरी वाला सस्ता स्मार्टफोन, मचा देगा तूफान

Oppo K13 5G : 7000mAh बैटरी वाला सस्ता 5G फोन, फीचर्स मचा देंगे तहलका

अगला लेख