म्यांमार से लगे मिजोरम की दिक्कतें बढ़ीं
पूर्वोत्तर में मिजोरम से सटे म्यांमार के चिन इलाके में नए सिरे से भड़की हिंसा के बाद पूर्वोत्तर राज्य मिजोरम में छह हजार से ज्यादा अवैध प्रवासी पहुंचे हैं। इससे इस पर्वतीय राज्य का आधारभूत ढांचा चरमराने लगा है।
प्रभाकर मणि तिवारी
मिजोरम के सीमावर्ती इलाकों में पहले से ही म्यांमार और बांग्लादेश के करीब 40 हजार शरणार्थी लंबे समय से रह रहे हैं। इसके अलावा पड़ोसी मणिपुर की जातीय हिंसा के कारण राज्य से विस्थापित कूकी-जो तबके के पांच हजार से ज्यादा शरणार्थी भी वर्ष 2023 से ही यहां रह रहे हैं। इनका बायोमिट्रिक पंजीकरण भी शुरू हो गया है।
राज्य सरकार के एक अधिकारी बताते हैं कि इन शरणार्थियों पर होने वाले खर्च के मद में केंद्र या किसी दूसरे संगठन की ओर से कोई मदद नहीं मिली है। इसलिए राज्य के आर्थिक संसाधनों पर बोझ बढ़ लग रहा है। लेकिन सरकार कई बार कह चुकी है कि वह मानवता के नाते इन शरणार्थियों को वापस नहीं भेज सकती। इसी सप्ताह मुख्यमंत्री लालदूहोमा के राजनीतिक सलाहकार लालमुआनपुइया पुंते ने भी सीमावर्ती इलाकों का दौरा किया था।
शरणार्थी नहीं अवैध प्रवासी का दर्जा
यहां इस बात का जिक्र जरूरी है कि वर्ष 1951 के शरमार्ती सम्मेलन के प्रस्ताव पर भारत के हस्ताक्षर नहीं करने की वजह से सीमा पार से आने वालों को 'शरणार्थी' की बजाय 'अवैध प्रवासी' का दर्जा हासिल है।
मिजोरम के सीमावर्ती चंफई जिले में एक सरकारी अधिकारी ने नाम नहीं छापने की शर्त पर डीडब्ल्यू को बताया, "नए सिरे से हिंसा के बाद हजारों की तादाद में शरणार्थी तियाऊ नदी पर बने ब्रिज को पार कर सीमा से लगे जोखावथार कस्बे में पहुंच रहे हैं। यह नदी ही भारत-म्यांमार की सीमा है। फिलहाल यह लोग अपने रिश्तेदारों के घरों के अलावा कम्युनिटी हॉल और स्कूलों में रह रहे हैं।"
सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, मिजोरम में सीमा पार से करीब 35 हजार शरणार्थी वर्ष 2021 में सैन्य तख्तापलट के बाद से ही रह रहे हैं। लेकिन इन शरणार्थियों की मदद करने वाले सामाजिक संगठनों का दावा है कि यह संख्या इससे कहीं बहुत ज्यादा है।
सीमा पर तैनात सेना के एक अधिकारी ने बताया, "मिजोरम सीमा से लगे म्यांमार के इलाके में व्यापार मार्ग पर कब्जे के लिए चिन नेशनल डिफेंस फोर्स (सीएनडीएफ) औऱ चिनलैंड डिफेंस फोर्स-हुलंगोराम (सीडीएप-एच) के बीच बड़े पैमाने पर सशस्त्र संघर्ष जारी है। यह दोनों संगठन म्यांमार के सैन्य शासन के खिलाफ संघर्ष कर रहे पीपुल्स डिफेंस फोर्स का हिस्सा हैं।"
मदद की कोशिशें
सरकारी अधिकारियों का कहना है कि सीमा पार की स्थिति को देखते हुए शरणार्थियों को वापस जाने को नहीं कहा गया है। गांव के लोग और यंग मिजो एसोसिएशन (वाईएमए) जैसे गैर-सरकारी संगठन उनकी मदद कर रहे हैं।
मिजोरम ने म्यांमार में होने वाले सशस्त्र संघर्ष के बारे में केंद्र को भी सूचित कर दिया है। मिजोरम के मुख्यमंत्री लालदूहोमा इस मुद्दे पर केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह और सुरक्षा एजेंसियों के अधिकारियों से मुलाकात की है। दोनों गुटों के बीच जारी हिंसा का असर अब मिजोरम के सीमावर्ती शहर जोखावथार पर भी पड़ने लगा है।इसी वजह से वहां से बड़े पैमाने पर लोगों का पलायन शुरू हो गया है।
सीमा के एकदम करीबी इलाके में इस हिंसा से चंफई और जोखावथार के लोगों में भी आतंक है। यंग मिजो एसोसिअएशन (वाईएमए) के केंद्रीय महासचिव मालस्वामलियाना डीडब्ल्यू से कहते हैं, "सीमा पार होने वाले सशस्त्र संघर्ष के दौरान जोखावथार में भी कई गोलियां गिरी हैं। लेकिन यहां कोई नुकसान नहीं हुआ है। फिर भी लोगों में डर बना हुआ है। हम शरणार्थियों के लिए खाने-पीने और जरूरत के दूसरे सामान वहां भेज रहे हैं।"
म्यांमार से आने वाले शरणार्थियों की देख-रेख के लिए बनी चंफई जिला समिति के मुखिया रॉबर्ट जोरमलुआगा डीडब्ल्यू को बताते हैं, "नए शरणार्थियों को अस्थाई तौर पर अलग-अलग जगह रखा जा रहा है।"
2023 में भी हुआ था बड़े पैमाने पर पलायन
इससे पहले अक्तूबर, 2023 में पीपुल्स डिफेंस फोर्स के शिविरों पर म्यांमार की सेना के हवाई हमलों के बाद भी इसी पैमाने पर पलायन शुरू हुआ था। उस समय सेना के कई बम जोखावथार में कुछ घरों पर भी गिरे थे। मिजोरम के जोखावथार शहर के दूसरी ओर म्यांमार का फालम जिला है। वहां सरकार विरोधी विद्रोहियों का कब्जा है।
इस बीच, वाईएमए ने सीमा पार से आने वाले इन शरणार्थियों से अपनी स्थानीय भाषा की बजाय मिजो भाषा में बात करने को कहा है। यहां इस बात का जिक्र प्रासंगिक है। सीमावर्ती इलाकों में रहने वाले लोग एक ही समुदाय के हैं और उनकी भाषा मिजो है। लेकिन म्यांमार में रहने वाले इस समुदाय के लोगों ने स्थानीय संस्कृति और बोली के लिहाज से अपनी भाषा में कुछ बदलाव कर लिया है।
वाईएमए की जोखावथार शाखा के उपाध्यक्ष वानलालगुरछुआना ने डीडब्ल्यू से कहा, "इस निर्देश को मकसद सीमा के दोनों ओर रहने वाले मिजो लोगो को एकसूत्र में बांधना है। शरणार्थियों के मिजो भाषा बोलने की स्थिति में स्थानीय लोगों के साथ कोई गलतफहमी नहीं पैदा होगी।"
दूसरी ओर, सुरक्षा एजेंसियों ने बड़े पैमाने पर शरणार्थियों की आवक पर चिंता जताते हुए कहा है कि आने वाले समय में यह आंतरिक सुरक्षा के लिए बड़ा खतरा साबित हो सकता है। केंद्र सरकार ने म्यांमार से लगी सीमा पर कंटीले तारों की बाड़ लगाने का काम जरूर शुरू किया है। लेकिन अधिकारियों का कहना है कि इस परियोजना को पूरी होने में कई साल लग सकते हैं।
राज्य में तैनात केंद्रीय खुफिया विभाग के एक अधिकारी ने नाम नहीं छापने की शर्त पर डीडब्ल्यू को बताया, "केंद्र सरकार इस मामले पर करीबी निगाह रख रही है। सीमा पार दो गुटों के बीच होने वाला सशस्त्र संघर्ष हमारी आंतरिक सुरक्षा से जुड़ा है।"
इसी वजह से इस सप्ताह सीमावर्ती इलाकों में सुरक्षा बलों के अतिरिक्त जवानों को तैनात कर निगरानी बढ़ा दी गई है। केंद्रीय एजेंसियां इस मुद्दे पर लगातार मिजोरम सरकार के संपर्क में है। खुफिया विभाग के वह अधिकारी बताते हैं कि फिलहाल केंद्र सरकार के समक्ष इस इलाके में सीमा पार से उग्रवादी तत्वों की घुसपैठ रोकना और भारी तादाद में आने वाले शरणार्थियों के प्रबंधन की दोहरी चुनौती है। इन मुद्दों का असर पूर्वोत्तर इलाके की स्थिति पर पड़ने का अंदेशा है।