इस साल गर्मियों में दर्जनों अफगान बच्चों को सेना ने तालिबान के चंगुल से छुड़ाया है। इन्हें तालिबान चरमपंथी बनने की ट्रेनिंग दी जा रही थी। गरीबी का दानव इन मासूमों को तालिबान के चंगुल में फंसने पर मजबूर कर देता है।
अफगान सुरक्षा बलों ने करीब 40 बच्चों को पाकिस्तान सीमा के पास छापा मार कर छुड़ाया। अधिकारियों का कहना है कि तालिबान के साथ काम कर रहे तस्करों ने इन बच्चों की भर्ती की है। इन बच्चों में से कुछ की उम्र तो महज चार साल की है। गरीब परिवारों के लोग इन्हें धार्मिक शिक्षा देने के नाम पर इन लोगों के हवाले कर देते हैं।
अधिकारियों के मुताबिक, सच्चाई ये है कि इन्हें कट्टरपंथी मौलाना धार्मिक उन्माद से भर देते हैं और फिर इन्हें जंग से जूझते अफगानिस्तान में हमला करने के लिए सैन्य ट्रेनिंग दी जाती है। पुलिस के जरिये छुड़ाये जाने के बाद नौ साल के शैफुल्लाह ने समाचार एजेंसी एएफपी से कहा, "हमारे मां बाप हमेशा चाहते थे कि हम इस्लाम की पढ़ाई करें लेकिन हमें नहीं पता था कि हमें बेवकूफ बनाया जाएगा और आत्मघाती हमलावर बनने के लिए मानसिक रूप से तैयार किया जायेगा।" अफगानिस्तान की लड़ाई में बच्चों का इस्तेमाल दोनों पक्ष करते आये हैं। यहां तक कि सरकार समर्थक सेनायें भी। यहां बच्चाबाजी की कुप्रथा भी है जिसमें बच्चों का इस्तेमाल यौन दास के रूप में होता है।
हालांकि इस साल गर्मियों में दक्षिण पूर्वी गजनी प्रांत में हुई घटनाओं ने उस सच्चाई को सामने ला दिया है, जिसका जिक्र अफगान सरकार और नागरिक अधिकार संगठन लंबे समय से करते आ रहे थे। तालिबान बच्चों को अपहरण कर उन्हें पाकिस्तान और अफगानिस्तान के मदरसों में चरमपंथी बनने के लिए मानसिक और सैन्य रूप से तैयार करते हैं।
हाल ही में अफगानिस्तान नीति के बारे में बोलते हुए अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप ने दूसरे उपायों के साथ ही तालिबान के लिए सैन्य लड़ाकों की नियुक्ति को रोकने की शपथ ली थी। हालांकि जानकार बताते हैं कि गरीबी इस मामले में ज्यादा बड़ी भूमिका निभा रही है, क्योंकि मां बाप अपने बच्चों को सुविधाएं देने में नाकाम रहने पर उन्हें शोषण करने वालों या फिर चरमपंथियों के हवाले कर देते हैं।
समाचार एजेंसी एएफपी ने हाल ही में गजनी प्रांत से छुड़ाये गये बच्चों से बात की। इन्हें फिलहाल एक अनाथालाय में रखा गया है। नौ साल के नबीउल्लाह ने उस वक्त को याद करते हुए रोते रोते कहा, "उन्होंने मेरे पिता से बात की और उन्हें कोई आपत्ति नहीं थी।" आठ साल के एक दूसरे बच्चे ने कहा, "दो तालिबान आये और कहा कि वो हमें क्वेटा के मदरसे में ले जाना चाहते हैं। हम और कुछ नहीं जानते थे जब तक कि उन्हें गिरफ्तार नहीं कर लिया गया।"
अधिकारियों का कहना है कि उन्होंने अपहरणकर्ताओं के गैंग से कई बच्चों को छुड़ाया है जिनकी उम्र चार से 14 साल के बीच है। इन्हें पाकिस्तान ले जाया जा रहा था। प्रांतीय पुलिस प्रमुख मोहम्मद मुस्तफा मायर ने कहा कि बच्चों को, "अपहरणकर्ता ड्रग्स दे देते थे जिसके कारण बच्चे उनींदें और भ्रमित हो जाते थे।" मुस्तफा मायर ने यह भी बताया कि 13 बच्चों को कथित रूप से आत्मघाती हमलावर बनने की ट्रेनिंग दी गयी है। इन बच्चों को मीडिया के सामने लाया गया। इस दौरान कई बच्चे रो रहे थे।
अफगान लोग इस बात से इनकार करते हैं कि वे जानबूझ कर बच्चों को तालिबान के साथ जुड़ने के लिए भेजते हैं। पक्टिका प्रांत के एक कबायली अफगान बुजुर्ग हाजी मोहम्मद शरीफ ने कहा, "मैं मानता हूं कि बच्चों को पाकिस्तानी मदरसे में धार्मिक शिक्षा के लिए भेजा जा रहा है, लेकिन मुझे नहीं लगता कि उन्हें आत्मघाती हमलावर बनने की ट्रेनिंग दी जा रही है।" हालांकि अफगान अधिकारी नियमित रूप से बाल सैनिकों के बारे में खबर देते हैं।
मानवाधिकार संगठन ह्यूमन राइट्स वॉच ने भी इस बारे में पिछले साल कई रिपोर्टें जारी की हैं। इनमें कहा गया है कि इन बच्चों को मानसिक रूप से तैयार करने का काम छह साल की उम्र में ही शुरु हो जाता है। रिपोर्ट में कहा गया है, "तालिबान के जरिये नियुक्त किये गये बच्चों के मां बाप के मुताबिक 13 साल की उम्र तक आते आते बच्चे सैन्य कौशल में दक्ष हो जाते हैं। इनमें बंदूक चलाना, आईईडी बनाना और उन्हें इस्तेमाल करना शामिल है।
मिस्र की अल अजहर यूनिवर्सिटी में पाकिस्तानी मदरसों के एक जानकार बताते हैं, "कई गरीब परिवार पाकिस्तान के मदरसों में भेजने के लिए अनजान लोगों को भी अपने बच्चों को दे देते हैं क्योंकि वो खुद उनकी पढ़ाई का खर्च नहीं उठा सकते।" मानवाधिकार आयोग की रिपोर्ट बताती है कि यह चलन अफगानिस्तान के मदरसों में भी खूब दिखने लगा है, खासतौर से कुंदूज प्रांत में। रिपोर्ट में कहा गया है कि मां बाप को जब सच्चाई पता चलती है तो तालिबान उन्हें वापस लौटाने के लिए तैयार नहीं होते।
इसी साल जून में कुंदूज प्रांत के एक अधिकारी ने बताया कि उन्होंने 11 साल के एक बच्चे को पकड़ा था, जो मदरसे में पढ़ने के बाद पुलिस पर हमला करना चाहता था। उसे बताया गया था कि अफगान पुलिस और सेना उनके हमले के लिए सबसे उचित टारगेट हैं क्योंकि "या तो वे नास्तिक है या फिर नास्तिकों की सेवा कर रहे हैं। "
देश में पहले से ही मौजूद भयानक गरीबी और बढ़ती जा रही है। वर्ल्ड बैंक और अफगान सरकार ने इस साल मई में जारी एक रिपोर्ट में कहा था कि 39 फीसदी अफगान अपनी बुनियादी जरूरतों को पूरा कर पाने में नाकाम हैं।
एक गैर सरकारी संस्था का आकलन है कि पाकिस्तान के मदरसों से 10 हजार से 20 हजार अफगान बच्चे हर साल निकलते हैं। इन बच्चों को कट्टरपंथ का पाठ बढ़ाया जाना शुरू होने के बाद उन्हें उनके परिवारों से दूर कर दिया जाता है। मदरसों में जिंदगी बहुत कठिन होती है और उन्हें ठीक से खाना भी नहीं मिलता। धीरे धीरे वो अपने परिवार और मां बाप से भी नफरत करने लगते हैं।