एक नए अध्ययन में पता चला है कि यूरोप और अमेरिका में हवा के साफ हो जाने के कारण यानी प्रूदषण कम हो जाने के कारण अटलांटिक महासागर में चक्रवातीय तूफान बढ़ गए हैं।
अमेरिका के नेशनल ओशियानिक ऐंड ऐटमॉसफेरिक ऐडमिनिस्ट्रेशन (NOAA) द्वारा किए गए एक अध्ययन में ऐसे नतीजे सामने आए हैं कि क्षेत्रीय वायु प्रदूषण में वैश्विक स्तर पर हुए बदलावों के कारण तूफानों की गतिविधियां ऊपर-नीचे होती रहती हैं। इसी कारण यूरोप और अमेरिका की हवा में प्रदूषक तत्वों की 50 प्रतिशत कमी को पिछले लगभग दो दशकों में अटलांटिक में तूफानों में हुई वृद्धि से जोड़ा गया है।
बुधवार को साइंस अडवांसेज नाम एक पत्रिका में छपे इस अध्ययन में कहा गया कि अटलांटिक महासागर में तूफान बढ़ रहे हैं जबकि प्रशांत महासागर में, जहां प्रदूषण ज्यादा है, वहां तूफान कम हुए हैं। संस्था के लिए चक्रवातों का अध्ययन करने वाले वैज्ञानिक हीरोयुकी मुराकामी ने इस शोध के लिए दुनियाभर के अलग-अलग हिस्सों में तूफानों की कंप्यूटर सिमुलेशन के जरिए जांच-पड़ताल की। मुराकामी ने पाया कि तूफानों की गतिविधियों और उद्योगों व वाहनों से होने वाले एयरोसोल प्रदूषण, सल्फर के कणों और बूंदों में संबंध है, जिनके कारण हवा सांस लेने लायक नहीं रहती।
वैज्ञानिकों को यह जानकारी काफी समय से है कि एयरोसोल प्रदूषण के कारण हवा के तापमान में कमी आती है। कई बार तो इनके कारण ग्रीनहाउस गैसों को व्यापक दुष्प्रभाव भी कम होते हैं। लेकिन अब तक हुए अध्ययनों में कहा गया कि हवा के एयरोसोल के कारण ठंडे होने से संभवतया अटलांटिक में तूफान बढ़े हैं। लेकिन मुराकामी ने अपने अध्ययन में दुनियाभर में इसका असर पाया।
कैसे आते हैं चक्रवात?
चक्रवातों को गर्म पानी की जरूरत होती है। वह पानी, जो हवा के कारण गर्म हुआ हो। वही चक्रवातों का ईंधन बनता है और हवा के ऊपरी स्तर में बदलाव लाता है। मुराकामी कहते हैं कि अटलांटिक में साफ हवा और प्रशांत में भारत और चीन के प्रदूषण से आ रही गंदी हवा चक्रवातों को प्रभावित कर रही है।
1980 के दशक में अटलांटिक में एयरोसोल प्रदूषण अपने चरम पर था और तब से इसमें लगातार गिरावट हो रही है। इसका अर्थ है कि जो तत्व ग्रीनहाउस गैसों को प्रभाव कम करते थे और हवा को ठंडा रखते थे वे कम हो रहे हैं। मुराकामी कहते हैं कि इसलिए समुद्र की सतह का तापमान और बढ़ रहा है। और इसके ऊपर, एयरोसोल तत्वों के कम होने के कारण जेट स्ट्रीम यानी हवा की वो घुमावदार नदी जो मौसम को पश्चिम से पूर्व की ओर ले जाती है, और ज्यादा उत्तर की ओर धकेली जा रही है।
द क्लाइमेट सर्विस नामक संस्था में काम करने वाले चक्रवातीय वैज्ञानिक जिम कॉसिन कहते हैं, "यही कारण है कि 1990 के दशक के मध्य से अटलांकि महासागर पगला सा गया। और इसी कारण 1970 और 1980 के दशक में यह इतना शांत था।” कॉसिन खुद तो अध्ययन का हिस्सा नहीं थे लेकिन वह इसके नतीजों से सहमत दिखते हैं। वह कहते हैं कि एयरोसोल प्रदूषण के कारण 1970-80 में लोगों को तूफानों से कुछ राहत रही लेकिन उसका खामियाजा हम अब भुगत रहे हैं।
फिर भी प्रदूषण खतरनाक है
मुराकामी स्पष्ट् करते हैं कि ट्रॉपिकल तूफानों के आने के पीछे और भी कई वजह होती हैं जैसे कि ला निन्या और अल नीनो जैसी प्राकृतिक गतिविधियां, भूमध्य रेखा के आसपास तापमान में बदलाव और पूरी दुनिया के जलवायु में परिवर्तन आदि। वह कहते हैं कि इंसानी वजहों से होने वाले जलवायु परिवर्तन के कारण ग्रीनहाउस प्रभाव भी एक कारक है, जो एयरोसोल प्रदूषण कम होने से और बढ़ेगा।
ग्रीनहाउस गैसों के कारण होने वाले जलवायु परिवर्तन से तूफानों में मामूली कमी आने का अनुमान है लेकिन कॉसिन, मुराकामी और अन्य वैज्ञानिक कहते हैं कि अत्याधिक शक्तिशाली तूफानों की बारंबारता और शक्ति में और वृद्धि होगी, वे ज्यादा पानी लेकर आएंगे और ज्यादा विनाशक बाढ़ आएंगी।
मुराकामी ने अपने अध्ययन में यह भी पाया कि यूरोपीय और अमेरिकी हवा में एयरोसोल प्रदूषण कम होने से हवाओं का वैश्विक पैटर्न बदल गया है और ऑस्ट्रेलिया के इर्द-गिर्द दक्षिणी गोलार्ध में तूफानों में कमी आई है।
लेकिन वॉशिंगटन यूनिवर्सिटी में पब्लिक हेल्थ की प्रोफेसर क्रिस्टी एबी कहती हैं कि अटलांटिक में तूफानों का बढ़ना भले ही एक दिक्कत हो, फिर भी उनकी तुलना वायु प्रदूषण के कारण होने वाली सालाना 70 लाख मौतों से नहीं की जा सकती। एबी कहती हैं, "वायु प्रदूषण एक मुख्य हत्यारा है इसलिए उत्सर्जन घटाना जरूरी है, चाहे चक्रवातों में कैसा भी बदलाव हो।”