पाकिस्तान के शहर पेशावर में प्रांतीय असेंबली के लिए पहली बार एक सिख चुनावी मैदान में उतरा है। धमकियों के बावजूद मैदान में डटे रादेश सिंह टोनी क्या चाहते हैं, पढ़िए।
खैबर पख्तून ख्वाह प्रांत की राजधानी पेशावर के साथ साथ बन्नू और मस्तूंग में हुए हमलों ने पाकिस्तान में चुनाव प्रचार को प्रभावित किया है, जिससे सरदार रादेश सिंह टोनी भी थोड़े से खौफजदा हैं। एक जनरल सीट से प्रांतीय असेंबली का चुनाव लड़ रहे टोनी का कहना है कि उन्हें धमकियां मिली हैं कि वह चुनावों में हिस्सा ना लें, लेकिन वह घर घर जाकर अपना चुनाव प्रचार जारी रखे हुए हैं।
वह बताते हैं कि खैबर पख्तून ख्वाह में अब तक कम से कम दस सिख आतंकवाद का शिकार बन चुके हैं। इसलिए उन्हें भी चुनाव प्रचार के लिए घर से निकलने में डर लगता है। "लेकिन मुझे अब इसकी कोई परवाह नहीं है। मैंने सरकारी सुरक्षा लेने से इसलिए इनकार दिया क्योंकि उनका खर्च उठाना मेरे बस की बात नहीं।"
टोनी पेशावर के एक सामाजिक कार्यकर्ता हैं, जो पाकिस्तान में सिखों समेत अन्य अल्पसंख्यकों और मुसलमानों की समस्याओं की बात करते हैं। उन्होंने स्थानीय निकाय के चुनाव में अपने प्रतिद्वंद्वी को भारी मतों से मात दी थी। लेकिन प्रांतीय असेंबली का चुनाव लड़ने के लिए उन्होंने पार्षद का पद छोड़ दिया।
डॉयचे वेले के साथ बातचीत में उन्होंने कहा, "धमकियां मेरा रास्ता नहीं रोक सकतीं। पाकिस्तान में अल्पसंख्यक समुदाय के लोग रिजर्व सीटों पर चुनाव लड़ कर रही असेंबली में पहुंच पाते हैं। जिस पार्टी के लोग उन्हें नामजद करते हैं, उन्हें उसी पार्टी के घोषणापत्र के मुताबिक चलना पड़ता है और इसीलिए वे लोग असेंबली में आवाज नहीं उठा पाते।"
पाकिस्तान की लगभग 20 करोड़ की आबादी में सिखों की तादाद छह हजार के आसपास है जबकि विभाजन से पहले वहां सिखों की बड़ी आबादी रहती थी। पाकिस्तान में जो सिख बचे हैं, उनकी स्थिति आज बहुत अच्छी नहीं है। उन्हें धार्मिक, सामाजिक और आर्थिक आधार पर कई तरह भेदभावों का सामना करना पड़ता है।
फिर भी यह छोटा सा समुदाय एक इस्लामी देश में अपनी पहचान बनाने में जुटा है। कोई सिख युवा टीवी एंकर बन कर सुर्खियां बटोरता है तो कोई पाकिस्तानी सेना में शामिल होकर। वहीं मोहिंदर पाल पाकिस्तान के पहले उभरते हुए सिख क्रिकेटर हैं और लाहौर की नेशनल क्रिकेट एकेडमी में क्रिकेट के गुर सीख रहे हैं।
टोनी कहते हैं कि उनका अपना अलग एजेंडा है और अगर वह चुनाव जीतते हैं तो स्वास्थ्य, शिक्षा और साफ पानी मुहैया कराने के साथ साथ अल्पसंख्यक समुदायों के अधिकारों की आवाज उठाएंगे। उनके मुताबिक चुनाव जीतने पर वह किसी सत्ताधारी पार्टी में तभी शामिल होंगे जब उस पार्टी का घोषणा पत्र उनके मुताबिक होगा।
रादेश सिंह जिस सीट से चुनाव लड़ रहे हैं, वहां से 16 और उम्मीदवार अपनी किस्मत आजमा रहे हैं। इन सभी उम्मीदवारों के मुकाबले रादेश सिंह की आर्थिक स्थिति काफी कमजोर है। इसीलिए वह खुद अपनी मोटरसाइकल पर सवार हो कर घर घर अपना घोषणा पहुंचा रहे हैं और लोगों का भरोसा हासिल करने की कोशिश कर रहे हैं।
रादेश सिंह टोनी बताते हैं कि उनके कई मुसलमान दोस्तों ने उनकी चुनावी मुहिम के लिए सामग्री मुहैया कराई है जबकि कुछ स्थानीय राजनीतिक पार्टियों ने भी उनसे समर्थन का वादा भी किया है। जिस सीट से वह चुनाव लड़ रहे हैं, वहां से 60 सिख वोटर रजिस्टर्ड हैं जबकि हिंदू वोटरों की तादाद 1250 है। बाकी सब मुसलमान वोटर हैं।
रिपोर्ट फरीदुल्लाह खान, पेशावर से