दिल्ली पुलिस पर आरोप लग रहे हैं कि वह जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में हुए उपद्रव के समय मूकदर्शक बनकर खड़ी रही और अभी भी उसकी जांच-पड़ताल की गति धीमी है।
दिल्ली के जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में रविवार 5 जनवरी को जो तोड़-फोड़ और मारपीट हुई, उसके पीछे दिल्ली पुलिस की भूमिका पर सवाल उठ रहे हैं। उन 3-4 घंटे जब विश्वविद्यालय के परिसर में नकाबपोश हमलावरों का उपद्रव चलता रहा, तब पुलिस विश्वविद्यालय के बाहर ही खड़ी रही और उसने हस्तक्षेप नहीं किया।
जेएनयू छात्रसंघ के सदस्यों ने दावा किया है कि उन्होंने कई बार पुलिस को फोन किया लेकिन पुलिस ने हस्तक्षेप नहीं किया। छात्रसंघ के अध्यक्ष ओइशी घोष ने कहा कि उन्होंने दिल्ली पुलिस के एक वरिष्ठ अधिकारी के मोबाइल पर संदेश भी भेजा था, लेकिन उसके बाद भी कोई कार्रवाई नहीं हुई।
कुछ ही दिन पहले दिल्ली पुलिस पर एक और विश्वविद्यालय में हुई हिंसा के सिलसिले में विपरीत आरोप लगे थे। आरोप था कि 15 दिसंबर को नागरिकता कानून के खिलाफ चल रहे विरोध प्रदर्शन को रोकने के लिए दिल्ली पुलिस जामिया मिल्लिया इस्लामिया विश्वविद्यालय के परिसर के अंदर घुस गई और छात्रों को अंधाधुंध तरीके से दौड़ा-दौड़ा कर लाइब्रेरी और शौचालय जैसी जगहों तक में घुसकर पीटा। जामिया प्रकरण के ठीक विपरीत जेएनयू के मामले में पुलिस पर कार्रवाई करने की जगह निष्क्रियता का आरोप है।
हमले में घायल हुए छात्रों ने यह भी आरोप लगाया है कि नकाबपोश हमलावरों में से कई बाहरी लोग थे और उन्हें अवैध ढंग से परिसर में घुसने और उपद्रव मचाकर चले जाने से न विश्वविद्यालय के सुरक्षाकर्मियों ने रोका और न पुलिस ने।
इसके अलावा सोशल मीडिया पर ऐसी तस्वीरें भी देखी गई हैं जिनमें परिसर के अंदर हाथ में डंडे लिए कुछ लड़कों को खड़े देखा जा सकता है। इनमें से कुछ के पास पुलिस की लाठी तक दिखाई दे रही है। दिल्ली पुलिस के वकील राहुल मेहरा ने ट्विटर पर लिखा कि जेएनयू में जो कुछ भी हुआ, उससे उनका सिर शर्म से झुक गया है। उन्होंने दिल्ली के पुलिस आयुक्त से पूछा कि ऐसे समय में दिल्ली पुलिस है कहां?
हमले के 2 दिन बाद और घटनास्थल पर पुलिसकर्मियों के मौजूद होने की बावजूद पुलिस न अभी तक किसी को हिरासत में ले पाई है और न ही हमलावरों की शिनाख्त ही कर पाई है, उल्टे पुलिस ने बुरी तरह से घायल हुई घोष के खिलाफ ही मामला दर्ज कर लिया है।
घोष और 19 अन्य लोगों के खिलाफ एफआईआर में पुलिस ने आरोप लगाया है कि उन्होंने इस हमले से 1 दिन पहले शनिवार, 4 जनवरी को विश्वविद्यालय के सुरक्षाकर्मियों को मारा-पीटा और सर्वर कक्ष में तोड़-फोड़ की। दिल्ली पुलिस का कहना है कि वो अभी 5 जनवरी के मामले की जांच-पड़ताल कर रही है। पुलिस के वरिष्ठ अधिकारी देवेन्द्र आर्य ने पत्रकारों से कहा कि पड़ताल के दौरान सोशल मीडिया और सीसीटीवी फुटेज को भी देखा जाएगा।