रिपोर्ट : राहुल मिश्र
मालाबार संयुक्त सैन्य अभ्यास में इस बार एक बार फिर भारत, अमेरिका, जापान, और ऑस्ट्रेलिया, चारों क्वाड देश शिरकत कर रहे हैं। चारों ओर से घिरा चीन बेशक इस पर खुश नहीं है लेकिन आखिर क्वाड देशों के लिए इसके क्या मायने हैं?
इस युद्धाभ्यास के 2 चरण होंगे। पहला चरण होगा 21 से 24 अगस्त के बीच बंदरगाह चरण जबकि दूसरा चरण समुद्री चरण होगा जिसके तहत 25 से 29 अगस्त के बीच भागीदार नौसेनाएं समुद्री मोर्चे अपनी तैयारियों का प्रदर्शन करेंगी और परंपरागत या गैर परंपरागत युद्ध की स्थिति में अपने सहयोग की क्षमता को परखेंगी। इसके दौरान क्वाड के चारों देश इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में नियमबद्ध आचरण व्यवस्था को चुस्त-दुरुस्त रखने के लिए जरूरी कदमों का भी अभ्यास करेंगे।
भारत की तरफ से समुद्री युद्ध और सुरक्षा चुनौतियों से निपटने के लिए खासतौर पर बनाई गई मरीन कमांडो फोर्स की भी शिरकत होगी। पिछले कुछ सालों में भारत ने संयुक्त सैन्य अभ्यास के मोर्चे पर क्वाड के अन्य तीनों देशों के साथ द्विपक्षीय और बहुपक्षीय दोनों मोर्चों पर न सिर्फ सहयोग बढ़ाया है बल्कि सेनाओं के बीच इंटरऑपरेबिलिटी बढ़ाने पर भी काफी जोर दिया है। पिछले एक दशक में भारत ने समुद्री सुरक्षा और सैन्य सहयोग के मामले में कई देशों के साथ सहयोग बढ़ाया है।
भारत की रक्षा नीति में मालाबार अभ्यासों का योगदान
इस लिहाज से मालाबार युद्धाभ्यासों का भारत की सुरक्षा कूटनीति और रक्षा सहयोगों में महत्वपूर्ण योगदान रहा है। साल 1992 को वैसे तो भारत की 'लुक ईस्ट' नीति की शुरुआत के लिए जाना जाता है लेकिन यह साल अमेरिका के साथ सैन्य सहयोग के लिए भी महत्वपूर्ण है। इसी साल मालाबार संयुक्त अभ्यासों की भी शुरुआत हुई जिसके बाद भारत और अमेरिका की नौसेनाओं के बीच सहयोग तेजी से बढ़ा।
2007 में इसका दायरा बढ़ाकर जापान, सिंगापुर और ऑस्ट्रेलिया को भी इस संयुक्त अभ्यास में जोड़ा गया लेकिन चीनी विरोध के चलते बात ज्यादा आगे बढ़ नहीं पाई। चीन ने इन देशों के राजदूतों को डीमार्श जारी कर अपना कड़ा विरोध जताया। उस समय चीन से कोई पंगा नहीं लेना चाहता था लेकिन 1 दशक बाद स्थिति बदल गई थी। आखिरकार 2015 में जापान इसका हिस्सा बना और 2020 में ऑस्ट्रेलिया भी वापस जुड़ा।
क्वाड के अलावा कई अन्य सैन्य अभ्यास
आने वाले हफ्तों में भारतीय नौसेना कई महत्वपूर्ण द्विपक्षीय अभ्यास करेगी जिसमें ऑस्ट्रेलिया के साथ आस-इंडेक्स, इंडोनेशिया के साथ समुद्र-शक्ति, और सिंगापुर के साथ सिम्बेक्स अभ्यास उल्लेखनीय है। इंडो पेसिफिक में अमेरिका और पश्चिमी देशों की बढ़ती दिलचस्पी और दक्षिण चीन सागर में चीन के दबदबे के कारण चीन अंतरराष्ट्रीय आलोचना के केंद्र में। साथ ही भारत के साथ बढ़ते तनातनी के कारण भारत भी प्रशांत क्षेत्र को अपनी सुरक्षा के लिए महत्वपूर्ण मान रहा है।
यही वजह है कि द्विपक्षीय सैन्य अभ्यासों के अलावा बहुपक्षीय युद्धाभ्यासों के मामले में भारतीय सेना की भागीदारी बढ़ रही है। ऑस्ट्रेलिया चाहता है कि 2023 में उसकी मेजबानी में होने वाले तलिस्मान साबर में भारत भी भाग ले। कुल मिलाकर तैयारियां काफी बड़े स्तर पर हो रही हैं और इशारा साफतौर पर चीन की ओर है। शुरुआती हिचकिचाहट के बाद अब इन देशों को अब कोई हिचक भी नहीं रह गई है।
अमेरिकी प्रशासन का चीन की ओर ध्यान
जो बाइडन के अमेरिका में सत्ता संभालने के बाद से ही अमेरिकी सरकार का जोर क्वाड के चतुर्देशीय सहयोग को बढ़ावा देने पर रहा है। यह महज इत्तेफाक नहीं है कि राष्ट्रपति बनने के बाद जो बाइडन ने जिस पहली शिखरवार्ता में शिरकत की वह इसी साल मार्च में हुई क्वाड देशों की ही वर्चुअल शिखरवार्ता थी। राजनयिक सूत्रों के अनुसार अक्टूबर 2021 में क्वाड की शिखर वार्ता हो सकती है जिसमें चारों सदस्य देशों के नेता आमने-सामने बैठ कर बातचीत करें।
जहां तक चीन का सवाल है तो फिलहाल तो उसने कोई सीधी प्रतिक्रिया नहीं दी है लेकिन माना जा सकता है कि अपने युद्धपोत हिन्द महासागर क्षेत्र में तैनात करने, क्वाड देशों की घुमा-फिराकर आलोचना करने और अमेरिका को इंडो-पैसिफिक के देशों को भड़काने का जिम्मेदार बताने के अलावा वह शायद ही कुछ करे। 10 साल पहले हालात एकदम अलग थे जब चीन ने भारत, अमेरिका, जापान, और ऑस्ट्रेलिया को चीन-विरोधी खेमा बनाने की कोशिश करने का आरोप लगाकर लताड़ा था। आज चीन अमेरिका के साथ थका देने वाले व्यापार युद्ध में उलझा है।
इलाके के देशों से चीन के बिगड़ते रिश्ते
जापान और भारत के साथ सीमा विवाद और आक्रामक रवैये से चीन के इन दोनों देशों के साथ संबंध अच्छे नहीं रह गए हैं। जापान और भारत की चीन से नाराजगी इस बात में भी दिखती है कि वे अमेरिका के करीब जा रहे हैं। वहीं ऑस्ट्रेलिया, जिसके नीति- निर्धारक आज से 1 दशक पहले अमेरिका और चीन में से किसी एक को न चुनने की दलील देते थे, आज चीन को ऑस्ट्रेलिया और चीन के संबंधों में आई कड़वाहट का जिम्मेदार बताते हैं।
दिलचस्प है कि यह ऑस्ट्रेलिया ही था जिसने 1 दशक पहले मालाबार संयुक्त युद्धाभ्यास से यह कहकर अपने हाथ खींच लिए थे कि वह चीन के साथ अच्छे संबंधों का इच्छुक है और ऐसी किसी गतिविधि में भाग नहीं लेगा जिससे चीन से उसके संबंध खराब हों। लेकिन समय ने ऐसी कठोर करवट ली है कि वही ऑस्ट्रेलिया आज चीन के लगातार व्यापार हमलों से बेबस और बेचैन है और अब चीन के खिलाफ खड़े होने का कोई मौका नहीं छोड़ रहा।
(राहुल मिश्र मलाया विश्वविद्यालय के एशिया-यूरोप संस्थान में अंतरराष्ट्रीय राजनीति के वरिष्ठ प्राध्यापक हैं।)