पीएम मोदी के दौरे से कितने सुधरेंगे मणिपुर के हालात?
मणिपुर में मैतेई और कुकी समुदाय के बीच जातीय हिंसा शुरू होने के करीब ढाई साल बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अगले सप्ताह पहली बार राज्य के दौरे पर जाने वाले हैं। लेकिन क्या इससे राज्य की जमीनी हालत में कोई सुधार आएगा?
प्रभाकर मणि तिवारी
मई, 2023 से ही मणिपुर जातीय हिंसा की आग में झुलस रहा है। इस हिंसा ने अब तक सरकारी आंकड़ों के मुताबिक 260 लोगों की बलि ले ली है। लेकिन गैर-सरकारी आंकड़ा इससे कहीं ज्यादा है। इसके अलावा 50 हजार से ज्यादा लोग हिंसा शुरू होने के बाद से ही विस्थापित होकर राहत शिविरों में रह रहे हैं। राज्य में जातीय हिंसा की लपटों पर काबू पाने में मुख्यमंत्री एन। बीरेन सिंह के नाकाम रहने और उनके खिलाफ नाराजगी बढ़ने के बाद केंद्र ने इस साल फरवरी में वीरेन सिंह से इस्तीफा लेकर राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू कर दिया था। इसे पिछले महीने और बढ़ा दिया गया है।
दोनों समुदायों के बीच शुरू हुई जातीय हिंसा के बाद राज्य के मैदानी और पर्वतीय इलाके पूरी तरह अलग-थलग पड़ गए हैं। न तो इधर से कोई उधर जा सकता है और न ही उधर से कोई इधर आ सकता है। आम लोगों तो दूर विधायकों तक में इतना साहस नहीं नजर आया है।
हिंसा शुरू होने के बाद से ही प्रधानमंत्री के दौरे की मांग उठती रही है और वो लगातार विपक्ष के निशाने पर रहे हैं। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने हिंसा की शुरुआत में राज्य का दौरा जरूर किया था। लेकिन प्रधानमंत्री वहां नहीं गए। अब 13 सितंबर को वो मिजोरम को असम से जोड़ने वाली रेलवे लाइन के उद्घाटन के मौके पर आइजोल पहुंचेंगे। इससे एक दिन पहले 12 सितंबर को उनके मणिपुर दौरे की तैयारियां चल रही हैं। यह हिंसा शुरू होने के बाद उनका पहला दौरा होगा।
प्रधानमंत्री के दौरे से पहले केंद्र सरकार ने कुकी उग्रवादी गुटों के साथ दिल्ली में एक समझौते पर हस्ताक्षर कर इसे राज्य में शांति की बहाली दिशा में एक अहम कदम बताया है। लेकिन उसके ठीक बाद दोनों समुदायों के बीच शांति वार्ता में शामिल एक आदिवासी नेता की कुकी उग्रवादियों की हत्या ने सरकार के इस दावे पर सवाल खड़ा कर दिया है। इसके साथ ही सवाल पूछा जा रहा है कि क्या प्रधानमंत्री के दौरे से राज्य में हालात सामान्य होंगे?
क्या है ताजा समझौता?
केंद्र, मणिपुर और कुकी-जो काउंसिल (केजेडसी) के बीच गुरुवार को दिल्ली में हुए त्रिपक्षीय समझौते की सबसे अहम बात हिंसा शुरू होने के बाद से ही बंद नेशनल हाइवे-2 को खोलने पर बनी सहमति है। इसे मणिपुर की जीवन रेखा माना जाता है। यह नागालैंड के व्यापारिक शहर दीमापुर को राजधानी इंफाल से जोड़ती है। राज्य को जरूरी वस्तुओं की सप्लाई में इसकी अहम भूमिका रही है। केंद्रीय गृह मंत्रालय ने बीते मार्च में ही इसे मुक्त आवाजाही के लिए खोलने का एलान किया था। लेकिन कुकी संगठनों ने इस पर लगी पाबंदी हटाने से इंकार कर दिया था।
समझौते में कुकी उग्रवादियों के खिलाफ एक साल तक सैन्य अभियान रोकने पर भी सहमति बनी है। पहले भी यह समझौता था। लेकिन हिंसा में उग्रवादी संगठनों की भूमिका को ध्यान में रखते हुए बीते साल फरवरी में इसे निलंबित कर दिया गया था। ताजा समझौता एक साल के लिए है। इसमें कुछ नई शर्तें भी जोड़ दी गई हैं। इस दौरान इसकी कड़ी निगरानी की जाएगी और उल्लंघन की स्थिति में इसकी समीक्षा की जाएगी।
इस समझौते के तहत कुकी उग्रवादियों ने संवेदनशील इलाकों में बने अपने सात शिविरों को हटाने और अपने हथियार सुरक्षा बलों को सौंपने पर भी सहमति जताई है। तीनों पक्ष मणिपुर में स्थायी शांति बहाल करने के लिए बातचीत की प्रक्रिया शुरू करने और इसके जरिए समस्या का समाधान करने पर भी सहमत हो गए हैं।
हालांकि कुकी-जो काउंसिल की ओर से जारी एक बयान में कहा गया है कि नेशनल हाइवे-2 को फिर से खोलने का सवाल ही नहीं उठता। उसका दावा है कि इस सड़क को कभी बंद ही नहीं किया गया था। इस परस्पर विरोधी दावे से असमंजस की स्थिति बनी है।
इस बीच, मैतेई और कुकी समुदाय के बीच शांति प्रक्रिया में शामिल एक आदिवासी नेता का शव बरामद होने से शांति बहाल करने की उनकी (कुकी उग्रवादियों की) मंशा पर भी सवाल उठ रहे हैं। नेखाम जोमाहो नामक उस आदिवासी नेता को बीते शनिवार को अपहरण कर लिया गया था। उनका शव असम के कार्बी आंग्लांग जिले में एक नदी से बरामद किया गया। इस हत्या से मैदानी इलाके के लोगों में भारी नाराजगी है। कार्बी आंग्लांग के वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक संजीव कुमार सैकिया ने डीडब्ल्यू को बताया, "इस मामले में पांच लोगों को गिरफ्तार किया गया है। मामले की जांच की जा रही है।"
उग्रवादी संगठन कुकी रिवोल्यूशनरी आर्मी (केआरए) ने इस हत्या की जिम्मेदारी स्वीकार करते हुए कहा है कि वह इस मामले की आंतरिक जांच करेगी।
केआरए के महासचिव एल।एस।गांग्ते ने एक बयान में कहा है, "संगठन के नेतृत्व ने इस हत्या की मंजूरी नहीं दी थी। लेकिन इसके लिए जिम्मेदार पांच कैडरों को संगठन से निलंबित कर दिया गया है।"
मोदी के दौरे की तैयारियां
राज्य प्रशासन प्रधानमंत्री के दौरे से पहले सुरक्षा व्यवस्था मजबूत करने में जुट गया है। इसके तहत मिजोरम से सटे कुकी बहुल इलाके को नो-फ्लाई जोन घोषित कर दिया गया है। खासकर कुकी-बहुल चूड़ाचांदपुर में सुरक्षा के अभूतपूर्व इंतजाम किए जा रहे हैं। फिलहाल प्रशासन सुरक्षा वजहों से प्रधानमंत्री के दौरे के कार्यक्रम का खुलासा करने को तैयार नहीं है। वह इस बात की भी पुष्टि नहीं कर रहा है कि मोदी राज्य में 12 सितंबर को आएंगे या 13 को। जानकार सूत्रों का कहना है कि वो दोनों समुदाय के लोगों से मुलाकात करने के साथ ही कुछ राहत शिविरों का भी दौरा कर सकते हैं।
मणिपुर हाईकोर्ट के एक फैसले के बाद राज्य में दोनों समुदायों के बीच अचानक हिंसा भड़क उठी थी। बहुसंख्यक मैतेई समुदाय लंबे समय से खुद को जनजाति का दर्जा देने की मांग कर रहा था। हाईकोर्ट ने सरकार से इस मांग पर विचार करने की सिफारिश कर दी। उसके बाद हिंसा शुरू हो गई। कुकी समुदाय की दलील है कि राज्य की 60 में से 40 विधानसभा सीटें पहले से ही मैतेई समुदाय के पास है। अब जनजाति का दर्जा मिलने के बाद वो कुकी इलाकों में अतिक्रमण करेंगे।
दरअसल, मौजूदा कानून के मुताबिक, मैतेई समुदाय का कोई व्यक्ति कुकी बहुल पर्वतीय इलाके में जमीन नहीं खरीद सकता। इसी वजह से मैतेई यह मांग कर रहे थे।
कैसे बहाल होगी मणिपुर में शांति?
प्रधानमंत्री के दौरे से पहले राज्य में सवाल पूछा जा रहा है कि इतने लंबे समय बाद प्रधानमंत्री के दौरे से क्या राज्य में हालात सामान्य होंगे और शांति बहाल करने में मदद मिलेगी? राज्य में सत्तारूढ़ बीजेपी का दावा है कि प्रधानमंत्री का दौरा शांति बहाली की दिशा में मील का पत्थर साबित हो सकता है। पार्टी के एक नेता युमनाम खेमचंद ने डीडब्ल्यू से कहा, "नेशनल हाइवे-2 को मुक्त आवाजाही के लिए खोलने का फैसला राज्य में सामान्य स्थिति बहाल करने की दिशा में एक मील का पत्थर साबित हो सकता है। इससे आम लोगों को काफी राहत मिलेगी। हिंसा शुरू होने के बाद यह पहला बड़ा सकारात्मक फैसला है।"
लेकिन कांग्रेस को इस दावे पर आशंका है। पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष अध्यक्ष कीशम मेघचंद्र डीडब्ल्यू से कहते हैं, "अभी बहुत ज्यादा उम्मीद करना ठीक नहीं होगा। मणिपुर की समस्या उतनी आसान नहीं है जितनी नजर आती है। इसका रातोंरात समाधान मुश्किल है। प्रधानमंत्री ने अगर यही काम हिंसा शुरू होने के तुरंत बाद किया होता तो हालात नहीं बिगड़ते।"
राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि केंद्र की उपेक्षा और चुप्पी की वजह से मणिपुर की समस्या बेहद उलझ गई है। सिर्फ एक समझौते से इस समस्या के पूरी तरह सुलझने की उम्मीद कम ही है। एक विश्लेषक के। सरोज सिंह डीडब्ल्यू से कहते हैं, "फिलहाल कुछ अनुमान लगाना उचित नहीं होगा। पहले समझौता जमीनी स्तर पर लागू हो। उसके बाद स्थिति साफ होगी।"
राज्य की एक महिला पत्रकार वाई।एस।देवी (बदला हुआ नाम) डीडब्ल्यू से कहती हैं, "प्रधानमंत्री ने बहुत देर कर दी। लेकिन देर आयद दुरुस्त आयद। केंद्र सरकार अगर अब भी मणिपुर की समस्या को गंभीरता से ले तो राज्य के लोगों का जीवन काफी आसान हो जाएगा। अब देखना यह है कि प्रधानमंत्री यहां शांति बहाली की किस योजना का एलान करते हैं। कुछ सवालों के जवाब उसके बाद ही मिल सकते हैं।"
राजनीतिक और सामाजिक हलकों में जातीय हिंसा के लंबे समय बाद प्रधानमंत्री के प्रस्तावित दौरे को बड़ी घटना माना जा रहा है। ऐसे में सबकी निगाहें और शांति बहाली की उम्मीदें उनके इस दौरे पर टिकी हैं।