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हाथ में एक थैला लिया और जॉगिंग के लिए निकल पड़े। इस दौरान जहां कूड़ा दिखा उसे उठाते हुए आगे बढ़ते गए। स्वीडन के बाद अब दूसरे देशों में भी प्रकृति और खुद को फिट रखने का यह ट्रेंड जोर पकड़ रहा है।
पैर में स्पोर्ट्स शूज, हाथ में दस्ताने और हाथ में एक थैला। स्वीडन में कूड़ा उड़ाते हुए जॉगिंग करने के इस ट्रेंड को प्लॉगिंग नाम दिया गया। स्वीडिश भाषा में "प्लॉके" शब्द का अर्थ है, इकट्ठा करना। स्वीडन में दो साल पहले पर्यावरण एक्टिविस्ट एरिक आहलस्टॉर्म ने प्लॉगिंग की शुरूआत की। वह टहलते या दौड़ते समय जहां भी कूड़ा दिखता उसे थैले में डालकर आगे बढ़ते। उनकी इस पहल को लोगों को सराहा और धीरे धीरे एक ट्रेंड बन गया। अब स्वीडन में ज्यादातर लोग ऐसा करने लगे हैं।
इस दौरान शरीर की कसरत भी हो जाती है और पर्यावरण की भी सफाई हो जाती है। स्पोर्ट्स साइंटिस्ट प्लॉगिंग को जॉगिंग से ज्यादा फायदेमंद करार देते है। उनके मुताबिक टहलने या दौड़ते वक्त सिर्फ पैरों की मांसपेशियां इस्तेमाल होती हैं, लेकिन प्लॉगिंग के वक्त कमर और हाथ का इस्तेमाल भी होता है। झुककर कुछ उठाने पर शरीर के संतुलन और जोड़ों का भी अभ्यास होता है।
जर्मनी समेत कुछ और देशों में भी अब प्लॉगिंग कल्चर जोर पकड़ रहा है। सोशल मीडिया पर प्लॉगिंग की खबरें और वीडियो वायरल हो रहे हैं। चिली, अमेरिका और रूस में भी शहरों के लोग प्लॉगिंग के लिए एक साथ जमा हो रहे हैं।
फरवरी 2018 में जर्मन शहर कोलोन में प्लॉगिंग कोलोन नाम का एक ग्रुप बना। शुरूआत में इसमें सिर्फ दो ही लोग थे, एक पत्रकार अनीता हॉर्न और दूसरी खिलाड़ी कारो कोएलर। अब ग्रुप में 350 से ज्यादा सदस्य हैं, जिनमें पर्यावरणविद, महिलाएं, बच्चे, छात्र और पेंशनभोगी भी शामिल हैं। पार्क या जंगल में जॉगिंग करते हुए ये लोग कचरा साफ कर देते हैं।
कोएलर के मुताबिक हर दिन उन्हें थैला भरने में ज्यादा देर नहीं लगती। बोतलों के ढक्कन, टिश्यू पेपर, डॉगी बैग और प्लास्टिक पैकेजिंग जैसी चीजें बिखरी हुई मिल ही जाती हैं। प्लॉगिंग कोलोन की सदस्य कहती हैं कि कॉफी कप, कैंडी रैपर या पुराने अखबार ही नहीं मिलते बल्कि डायपर, फ्राइंग पैन, जूते, साइकिलों के टुकड़े और ऑफिस की कुर्सियां भी मिलती हैं। ग्रुप कूड़ा उड़ाने वाली स्थानीय वेस्ट कंपनियों के साथ मिलकर काम कर रहा है।
कोएलर के मुताबिक जब लोग उन्हें कूड़ा उठाते हुए दिखते हैं तो उनकी प्रतिक्रिया बड़ी मिश्रित होती है। कुछ हैरान होते हैं तो कुछ सराहना करते हैं। एक बार तो बैडमिंटन खेल रहे एक जोड़े ने पूछा कि क्या अगली बार हम भी आपके साथ शरीक हो सकते हैं।