अहमदी मुसलमानों को पाकिस्तान की सेना में भर्ती न किया जाए, नवाज शरीफ के दामाद ने यह मांग कर पाकिस्तान में बहस छेड़ दी है। आखिर अहमदी पाकिस्तान की आंख में क्यों चुभते हैं?
"ये लोग (अहमदी) देश के लिए, उसके संविधान के लिए और उसकी विचारधारा के लिए खतरा हैं।" बिल्कुल इन्हीं शब्दों में पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री नवाज शरीफ के दामाद कैप्टन (रिटायर्ड) मुहम्मद सफदर ने अहमदी समुदाय की आलोचना की। पाकिस्तान की संसद में उन्होंने अहमदी समुदाय पर पाकिस्तान के खिलाफ षड़यंत्र रचने का आरोप लगया और उन पर सख्त कार्रवाई करने की मांग की।
सफदर ने कहा कि वह नेशनल असेंबली में एक प्रस्ताव लाना चाहते हैं। प्रस्ताव के जरिये सैन्य सेवाओं में अहमदियों की भर्ती पर प्रतिबंध लगाने की मंशा है। सफदर ने कहा, "यह एक गलत धर्म है जिसमें अल्लाह के लिये जिहाद करने का कोई जिक्र नहीं है।"
पाकिस्तान के उदारपंथियों के मुताबिक सफदर अपने खिलाफ लगे भ्रष्टाचार के आरोपों से बचने के लिए अहमदियों को ढाल बना रहे हैं। आलोचकों के मुताबिक, सफदर पाकिस्तानी सेना के भीतर मौजूद दक्षिणपंथी ताकतों को खुश करने की कोशिश कर रहे हैं।
कुछ का कहना है कि हाफिज सईद की पार्टी मिल्ली मुस्लिम लीग के बढ़ते समर्थन से नवाज शरीफ की पार्टी पाकिस्तान मुस्लिम लीग घबरा गयी है। यही वजह है कि अहमदियों को निशाना बनाया जा रहा है। कारण चाहे कुछ भी हो, लेकिन एक बात तो साफ है कि सफदर की टिप्पणी नवाज शरीफ और उनकी पार्टी की छुपी विचारधारा को सामने लाती है।
पाकिस्तान की मशहूर मानवाधिकार कार्यकर्ता आसमां जहांगीर कहती हैं, "पूरी दुनिया में कोई भी अल्पसंख्यक समाज के खिलाफ इस तरह नहीं बोलता। अगर हम इसके विरोध में अपनी आवाज नहीं उठाएंगे तो इस तरह के लोग बहुसंख्यक हो जाएंगे।" जहांगीर के मुताबिक नवाज शरीफ को अपने दामाद के बयान पर गौर करना चाहिए।
उदारवादी तबके के मुखर विरोध के बाद पाकिस्तान के आंतरिक मामलों के मंत्री अहसन इकबाल ने सफदर के बयान पर प्रतिक्रिया दी। नवाज शरीफ के करीबी माने जाने वाले इकबाल ने कहा, "नेशनल असेंबली में अल्पसंख्यकों के खिलाफ घृणा भरा भाषण दुखद है। हम एक संयुक्त पाकिस्तान पर भरोसा करते हैं। ऐसा पाकिस्तान जो सभी अल्पसंख्यकों का सम्मान करता है।"
कौन हैं अहमदी
अहमदी समुदाय का मानना है कि इस्लाम के आखिरी पैंगबर, मोहम्मद के बाद मसीहा गुलाम अहमद आए। अहमदी खुद को मुसलमान कहते हैं। लेकिन पाकिस्तान उन्हें मुसलमान नहीं मानता। 1974 में तत्कालीन प्रधानमंत्री जुल्फिकार अली भुट्टो ने अहमदियों को गैर मुस्लिम करार दिया। यह समुदाय इस्लामिक देश पाकिस्तान में कानूनी और सामाजिक भेदभाव का सामना करता है। हाल के दशकों में देश भर में अहमदियों और उनकी संपत्तियों पर हमले बढ़े हैं।
राजनीतिक विश्लेषकों के मुताबिक पाकिस्तान का इस्लामिकरण 1970 के दशक में जुल्फिकार अली भुट्टो के कार्यकाल में शुरू हुआ। 1980 के दशक में सैन्य तानाशाह जिया उल हक की हुकूमत में देश को पूरी तरह इस्लामिक मुल्क बना दिया। जिया के कार्यकाल में पाकिस्तान में सरकारी मदद से अहमदियों के उपासना स्थल बंद या ढहा दिए गए।
बीते दशकों में पाकिस्तान में इस्लामिक कट्टरपंथ काफी तेजी से फैला है। तालिबान जैसे इस्लामिक गुटों ने देश में अल्पसंख्यकों को कई बार निशाना बनाया। देश के कुछ इलाकों में इस्लामिक कानून शरिया लागू करने की कोशिश की।
मानवाधिकार कार्यकर्ता बशीर नवीद के मुताबिक पाकिस्तान में अब सरकारी तंत्र की मदद से अहमदियों को निशाना बनाया जा रहा है। डीडब्ल्यू से बातचीत में नवीद ने कहा, "सरकार मुस्लिम रुढ़िवादियों और दक्षिणपंथी पार्टियों को खुश करना चाहती है। हम देख रहे हैं कि पाकिस्तान सरकार धार्मिक अल्पसंख्यकों के प्रति घृणा की अपनी नीति जारी रखना चाहती है, इससे रुढ़िवादियों को प्रोत्साहन मिलता है।"