दुनिया भर में एक तिहाई से ज्यादा पेड़ों की प्रजातियों पर विलुप्त होने का खतरा मंडरा रहा है, जिससे पृथ्वी पर जीवन संकट में पड़ सकता है। यह चेतावनी सोमवार को प्रकाशित एक रिपोर्ट में दी गई।
ग्लोबल ट्री असेसमेंट रिपोर्ट में चेतावनी दी गई है कि धरती पर मौजूद पेड़ों की हर तीन में से एक प्रजाति पर विलुप्त होने का खतरा है। इंटरनेशनल यूनियन फॉर कंजर्वेशन ऑफ नेचर (आईयूसीएन) की रेड लिस्ट ऑफ थ्रेटेंड स्पीशीज के तहत यह रिपोर्ट जैव विविधता पर संयुक्त राष्ट्र के कॉप16 शिखर सम्मेलन के दौरान जारी की गई, जो कोलंबिया के काली शहर में हो रहा है।
रिपोर्ट में कहा गया है कि पेड़ों की 16,000 से अधिक प्रजातियों के विलुप्त होने का खतरा है। अध्ययन के लिए 47,000 से अधिक प्रजातियों का आकलन किया गया। इस अध्ययन में 1,000 से ज्यादा विशेषज्ञ शामिल थे। अनुमान है कि दुनियाभर में पेड़ों की 58,000 प्रजातियां हैं।
रिपोर्ट में कहा गया है कि जंगल तेजी से कम हो रहे हैं, पेड़ों को लकड़ी के लिए काटा जा रहा है और खेती और मानव विस्तार के लिए जमीन खाली की जा रही है। इसके अलावा, जलवायु परिवर्तन भी सूखा और जंगल की आग जैसी समस्याओं के कारण एक अतिरिक्त खतरा पैदा कर रहा है।
ये आंकड़े केवल प्रतीकात्मक नहीं हैं। विशेषज्ञ एमिली बीच ने बताया कि लोग "खाने, लकड़ी, ईंधन और दवाओं" के लिए पेड़ों की अलग-अलग प्रजातियों पर निर्भर करते हैं। पेड़ ऑक्सीजन बनाते हैं और वातावरण से कार्बन डाइऑक्साइड जैसी ताप रोकने वाली गैसों को सोखते हैं।
आईयूसीएन की महानिदेशक ग्रेथल एगुइलर ने कहा, "पेड़ पृथ्वी पर जीवन बनाए रखने के लिए जरूरी हैं और लाखों लोग अपने जीवन और आजीविका के लिए उन पर निर्भर हैं।"
अरबों पेड़ हो रहे हैं खत्म
2015 में प्रकाशित एक अध्ययन के अनुसार, दुनिया में लगभग 300 अरब पेड़ हैं। विज्ञान पत्रिका नेचर में प्रकाशित इस अध्ययन में अनुमान लगाया गया कि हर साल 15 अरब से अधिक पेड़ काटे जाते हैं और मानव सभ्यता की शुरुआत से पेड़ों की वैश्विक संख्या लगभग आधी हो चुकी है।
आईयूसीएन की रेड लिस्ट में जिन 5,000 से अधिक प्रजातियों को खतरे वाली सूची में डाला गया है, उनका उपयोग लकड़ी के लिए किया जाता है। 2,000 से अधिक प्रजातियों का उपयोग दवाओं, खाने और ईंधन के लिए किया जाता है।
खतरे में पड़ी प्रजातियों में हॉर्स चेस्टनट और जिन्कगो शामिल हैं, जिनका उपयोग चिकित्सा में किया जाता है। बिग लीफ महोगनी का इस्तेमाल फर्नीचर बनाने में होता है। इसके अलावा कई ऐश, मैगनोलिया और यूकेलिप्टस की प्रजातियां भी खतरे में हैं।
रिपोर्ट के अनुसार, विलुप्ति के कगार पर पहुंच चुकीं पेड़ों की प्रजातियों की संख्या "सभी संकटग्रस्त पक्षियों, स्तनधारियों, सरीसृपों और उभयचरों की संख्या से दोगुनी से भी अधिक" है। यही वजह है कि वैज्ञानिक जोर-शोर से जैव विविधता को बचाने के उपाय खोज रहे हैं।
द्वीपों पर खतरा सबसे ज्यादा
192 देशों में पेड़ प्रजातियों के विलुप्त होने का खतरा है, लेकिन द्वीपों पर यह अनुपात सबसे अधिक है, जहां तेजी से शहरी विकास, कृषि का विस्तार और अन्य स्थानों से लाई गई प्रजातियां, कीट और बीमारियां इसके लिए जिम्मेदार हैं।
दक्षिण अमेरिका में, जहां दुनिया में सबसे अधिक पेड़ों की विविधता है, 13,668 आकलित प्रजातियों में से 3,356 विलुप्त होने के खतरे में हैं। अमेजन वनों के घर इस महाद्वीप की कई प्रजातियां अब तक खोजी भी नहीं गई हैं।
रिपोर्ट के अनुसार, जब उन प्रजातियों की खोज की जाती है, तो वे " संभावना है कि विलुप्ति के खतरे में होंगी।" रिपोर्ट में पेड़ लगाने के माध्यम से जंगल संरक्षण और पुनर्स्थापना का आह्वान किया गया है, साथ ही प्रजातियों को बचाने के लिए बीज बैंकों और वनस्पति उद्यानों में उनके संरक्षण पर जोर दिया गया है।