देखने में रेस्तरां के किचन जैसा, लेकिन असल में एक लैब, एडवांस रिसर्च इंस्टीट्यूट ऑन ह्यूमन न्यूट्रीशन की लैब। स्कॉटलैंड के एबेरडीन में स्थित इस प्रयोगशाला में वॉलिटियरों की मदद से नए खाने पर प्रयोग हो रहे हैं।
एक खास एक्सपेरिमेंट में इस पर शोध हो रहा है कि कम खाना खाकर भी पेट कैसे भरा हो। इस टेस्ट में लोगों को कम खाना दिया जाता है, लेकिन ऐसा खाना, कि इसके बावजूद उन्हें अच्छे से पेट भरा होने का एहसास होता है। वॉलंटियर गॉर्डन इरविन बताते हैं, "जिस तरह का खाना मैं खा रहा हूं वो काफी समय तक मेरा पेट भरे रहता है। मैं बीच में कुछ छुटपुट खाने की नहीं सोचता। तो ये अच्छी बात है।"
यह शोध यूरोपीय संघ के एक रिसर्च प्रोजेक्ट का हिस्सा है। इसके जरिए उन प्राकृतिक पोषक आहारों को जानने की कोशिश हो रही है, जो संतुष्टि दें, बार बार भूख न भड़काएं और ज्यादा खाने की ललक या मोटापे से बचाएं।
लीवरपूल यूनिवर्सिटी के मनोविज्ञानी जैसन हालफोर्ड कहते हैं, "हम प्रोटीन, औषधीय, कार्बोहाइड्रेट, खास किस्म के स्टार्च और घुलनशील फाइबर वाले तत्वों की बात कर रहे हैं। हम इन्हें बेक की जाने वाली चीजों, बिस्किटों, स्मूदी, दही, सोडा और पानी जैसी व्यापक चीजों में इस्तेमाल कर रहे हैं, ताकि लोग इन प्रोडक्ट्स को अपने दैनिक आहार की आदत में शुमार कर सकें।"
एक्सपेरिमेंट के दौरान वॉलंटियर्स को 52 दिन तक दिन में तीन बार खाना दिया जाता है। बदले में रिसर्चर उनकी जांच करते हैं और पता लगाते हैं कि भोजन में शामिल किन रहस्यमयी तत्वों को लेकर उनके शरीर ने कैसी प्रतिक्रिया दी। रिसर्चर खास तौर पर यह जानना चाहते हैं कि इन तत्वों का वॉलंटियरों की भूख, उनके शरीर की वसा गतिविधि और वजन पर क्या असर पड़ा। शुरुआती नतीजे उत्साहित करने वाले हैं।
वॉलंटियर कारोल एबेल का कहना है "मेरे के लिए यह फायदेमंद है। इस खाने से मुझे भूख नहीं लगती। यह मुझे बीच में कुछ खाने से भी बचाता है। मेरा वजन भी कम हुआ है।" अगले चरण में रिसर्चर यह जानना चाहते है कि भोजन के कुछ तत्व, खास तौर पर घुलनशील फाइबर हमारे पेट को ज्यादा अच्छे से कैसे भरते हैं। इस रिसर्च से आहार को लेकर कई टिप्स भी मिल रहे हैं।
एबेरडीन यूनिवर्सिटी के माइक्रोबायोलॉजिस्ट हैरी जे फ्लिंट के अनुसार, "इनमें से कुछ फाइबर तो पेट में पहुंचते ही पेट भरा होने का एहसास कराने लगते हैं।" इंसान के पेट में प्रेशर सेंसर होते हैं जो संतुष्टि का अहसास देते हैं। लेकिन इसके अलावा तत्वों के माइक्रोब्स कुछ ऐसे एसिड भी छोड़ते हैं जो आंत की सतह और शरीर के अन्य रिसेप्टरों के साथ व्यवहार करते हैं और हार्मोंनों के उत्पादन पर असर डालते हैं। और इन हार्मोंनो के चलते भी भूख का अहसास होता है।
वैज्ञानिकों का कहना है कि रिसर्च का मकसद सिर्फ यूरोप को ज्यादा खाने की आदत या मोटापे से बचाना भर नहीं है। यहां से मिलने वाली जानकारी जल्द ही नए किस्म का भोजन खोजने और सेहतमंद फूड प्रोसेसिंग टेक्नोलॉजी विकसित करने में मदद करेगी। लीवरपूल यूनिवर्सिटी के मनोविज्ञानी जैसन हालफोर्ड बताते हैं एक बार रिसर्च के नतीजे आते ही वैज्ञानिक नए तत्व बनाएंगे और फिर नए क्लीनिकल ट्रायल शुरू होंगे।
वॉलंटियरों को खाना अच्छा लगा है, स्वाद में कोई कमी नहीं थी, दिखने में कोई समस्या नहीं थी। रिसर्चरों को उम्मीद है कि जल्द ही वे ऐसा खाना वे यूरोप के बाजार में पेश कर पाएंगे जो सेहतमंद होने के साथ शरीर की जरूरतों को भी पूरा करेगा।