अब भारत में भी निगरानी के लिए जीपीएस ट्रैकर का इस्तेमाल

DW
शनिवार, 11 नवंबर 2023 (09:29 IST)
-चारु कार्तिकेय
 
जमानत पर रिहा आतंकवाद के आरोपियों पर नजर रखने के लिए अब भारत में भी जीपीएस ट्रैकर एंक्लेट का इस्तेमाल किया जा रहा है। जम्मू और कश्मीर पुलिस की इस पहल पर कई सवाल उठ रहे हैं। यह पहली बार है, जब भारत में आरोपियों की निगरानी के लिए इस तकनीक का इस्तेमाल किया जा रहा है। दुनिया में कई देशों में इसका इस्तेमाल किया जाता है। 
 
जम्मू और कश्मीर पुलिस ने यह ट्रैकर आतंकवाद के एक मामले में आरोपों का सामना कर रहे गुलाम मोहम्मद भट्ट के टखनों पर लगाया है। उनके खिलाफ आतंकवादी संगठन हिजबुल मुजाहिद्दीन के साथ संबंधित होने के और आतंकवादी गतिविधियों के लिए पैसों का इंतजाम करने के आरोपों को लेकर मुकदमा चल रहा है।
 
भट्ट के खिलाफ यूएपीए की कई धाराओं के तहत आरोप लगाए गए हैं। उन्होंने जमानत की अर्जी दी थी लेकिन चूंकि वो लंबित थी तो इस बीच उन्होंने अंतरिम जमानत की अर्जी दायर कर दी। जम्मू स्थित स्पेशल एनआईए अदालत ने इसी अर्जी को मानते हुए उन्हें अंतरिम जमानत तो दे दी लेकिन उनकी निगरानी पर भी जोर दिया।
 
कैसे काम करता है ट्रैकर?
 
पुलिस की तरफ से अभियोजन पक्ष ने दलील दी कि यह आतंकवाद का मामला है और इसलिए आरोपी की करीब से निगरानी की जरूरत है। इसके अलावा अदालत को यह भी बताया गया कि यूएपीए के तहत जमानत की शर्तें काफी कड़ी हैं।
 
अंत में अदालत ने पुलिस को आदेश दिया कि वो आरोपी के टखनों में जीपीएस ट्रैकर लगा दे और उसे अंतरिम जमानत पर रिहा कर दे। मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक इस ट्रैकर को आरोपी को हर वक्त पहने रहना होगा और अगर इसे काटने की कोशिश की जाएगी तो उससे एक अलार्म बजेगा और पुलिस को सूचना मिल जाएगी।
 
यह पहली बार है, जब भारत में आरोपियों की निगरानी के लिए इस तकनीक का इस्तेमाल किया जा रहा है। दुनिया में कई देशों में इसका इस्तेमाल किया जाता है। मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक अमेरिका, ब्रिटेन, दक्षिण अफ्रीका, ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड में किया जा रहा है।
 
तकनीक पर सवाल
 
मानवाधिकारों के सवालों के अलावा इस तकनीक की विश्वसनीयता पर भी सवाल उठते रहे हैं। भारत की नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी की साक्षी जैन ने हाल ही में 'इंडियन एक्सप्रेस' में छपे एक लेख में लिखा है कि इस टेक्नोलॉजी में कई खामियां हैं।
 
उनका कहना है कि दुनिया में कई जगह देखने में आया है कि इस तरह की ट्रैकरों में लगी टेक्नोलॉजी निरंतर काम नहीं करती और अक्सर सिग्नल टूट जाता है। बुरे सिग्नल की वजह से कई बार ट्रैकर झूठे अलार्म भी बजा देते हैं। सवाल यह भी उठता है कि भारतीय कानून में जमानत पर रिहा आरोपियों की इस तरह की ट्रैकिंग की स्पष्ट अनुमति है भी या नहीं? लेकिन जानकारों का कहना है कि अदालतों के आदेश पर पुलिस इस ट्रैकर का इस्तेमाल कर सकती है।

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