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इमरान खान के लिए तंग हुआ आगे का रास्ता

हमें फॉलो करें इमरान खान के लिए तंग हुआ आगे का रास्ता
, रविवार, 27 नवंबर 2022 (09:16 IST)
अशोक कुमार
जब से इमरान खान के हाथ से प्रधानमंत्री पद गया है, वह खुद को स्थापित करने की पूरी कोशिश कर रहे हैं। यह बात सही है कि वह इस वक्त पाकिस्तान में सबसे लोकप्रिय नेता हैं। लेकिन अनुभव बताता है कि पाकिस्तान में सत्ता हासिल करने के लिए सिर्फ जनता के बीच लोकप्रियता काफी नहीं होती।
 
जब 2018 में इमरान खान प्रधानमंत्री बने थे, तो उनके विरोधियों ने उन्हें 'सेलेक्टेड प्रधानमंत्री' कहा था। आरोप लगे कि सेना उन्हें सत्ता में लेकर आई है और इसे मुमकिन बनाने के लिए चुनाव में धांधली हुई। लेकिन चार साल के भीतर समीकरण पलट गए। सेना के लिए इमरान खान के साथ निभाना मुश्किल हो गया।
 
छत्तीस का आंकड़ा
अब इमरान खान के विरोधी सत्ता में हैं और वह सड़कों पर हैं। और आसिम मुनीर के सेना प्रमुख बनने के बाद यह बात लगभग तय मानिए कि वह आने वाले कुछ सालों तक सड़कों पर ही रहेंगे। नए सिरे से चुनाव कराने की मांग पर अड़े इमरान खान के अब सत्ता में लौटने के आसार कम ही दिखते हैं।
 
मौजूदा प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ और उनके सहयोगी जानते हैं कि लोकप्रियता के मामले में वे अभी इमरान खान का मुकाबला नहीं कर सकते। ऐसे में, जनरल मुनीर उनके लिए तुरुप का पत्ता थे। इसीलिए उन्हें आधिकारिक तौर पर रिटायर होने से कुछ दिन पहले ही सेना प्रमुख बना दिया गया।
 
इमरान खान जनता के बीच अपनी भ्रष्टाचार मुक्त छवि का खूब प्रचार करते हैं। लेकिन नए सेना प्रमुख की नजर में उनकी छवि अलग हैं। असल में, दोनों के बीच छत्तीस का आंकड़ा भी भ्रष्टाचार के मुद्दे के कारण ही है। जब आसिम मुनीर पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आईएसआई के चीफ थे, तो उन्होंने तत्कालीन प्रधानमंत्री इमरान खान को बताया था कि कैसे पंजाब प्रांत में उनकी पार्टी की सरकार भ्रष्टाचार में लिप्त है और कैसे इमरान खान के कुछ रिश्तेदार गलत तरीके से पैसा बना रहे हैं।
 
इमरान खान ने उनकी बात सुनने की बजाय उन्हें पद से हटाने का हुकम दे दिया। इसीलिए जब नए सेना प्रमुख पद के दावेदारों में मुनीर का नाम आया तो इमरान खान और उनकी पार्टी ने इसका सबसे ज्यादा विरोध किया। जाहिर है, बाजी उनके हाथ में नहीं थी।
 
सेना का सब्र
मौजूदा सेना प्रमुख कमर जावेद बाजवा ने अपने विदाई भाषण में साफ कर दिया कि सेना को इमरान खान पर भरोसा नहीं है। उन्होंने इमरान खान के इन आरोपों को सिरे से खारिज कर दिया कि उन्हें अमेरिकी साजिश के तहत सत्ता से हटाया गया है।

बाजवा ने कहा कि ऐसा कैसे हो सकता है कि देश में कोई विदेशी साजिश रची जा रही हो और पाकिस्तानी सेना हाथ पर हाथ धरे बैठी रहे। उन्होंने सेना की छवि पर कीचड़ उछालने वालों को भी हाड़े हाथ लिया। उन्होंने कहा कि सेना के सब्र को ना परखें। यह इमरान खान और उनके समर्थकों को लिए साफ संदेश है जो नए सेना प्रमुख और पाकिस्तानी सेना को निशाना बना रहे हैं।
 
दरअसल इमरान खान ने जिस दक्षिणपंथ को अपनी राजनीति और लोकप्रियता की धुरी बना रखा है, वह शायद पाकिस्तानी सेना के रणनीतिक हितों और देश की कूटनीति के साथ फिट नहीं बैठती। इमरान खान अमेरिका और पश्चिम का विरोध करके अपनी रैलियों में भारी भीड़ और तालियां तो बटोर सकते हैं, लेकिन जमीनी सच्चाई कुछ और है।
 
पाकिस्तानी सेना को आर्थिक ही नहीं, बल्कि तकनीकी और रणनीतिक तौर पर अमेरिका समेत पश्चिमी देशों के सहयोग की बहुत जरूरत है। और इमरान खान की राजनीति इन हितों को चोट पहुंचाती है। पाकिस्तान जिन मुश्किल आर्थिक और कूटनीतिक हालात में फंसा है, वहां उसे दुनिया से टकराव की नहीं, बल्कि सहयोग की जरूरत है। 
 
हाल के दिनों में इमरान खान ने भी अमेरिका को लेकर अपना रुख नरम किया है। लेकिन वह अपने विरोधियों से अलग दिखना चाहते हैं। इसलिए तेवर उनके गर्म ही रहेंगे। इमरान खान बहुत जल्दी में दिखते हैं। वह सब कुछ बदल देना चाहते हैं। 'नए पाकिस्तान' का नारा वह आजकल नहीं लगा रहे हैं, लेकिन नया करना चाहते हैं। बदलाव अकसर आसान नहीं होते।
 
जनरल बाजवा ने अपने विदाई संदेश में कहा कि सेना ने अब राजनीति में हस्तक्षेप नहीं करने का फैसला किया है। लेकिन इस बात में किसी को शक नहीं है कि पूरी व्यवस्था पर सेना का नियंत्रण बना रहेगा। होगा वही, जो पाकिस्तानी सेना चाहेगी। और कम से कम अभी तो इमरान खान नए सेना प्रमुख की गुड बुक में नहीं हो सकते। जनरल मुनीर अगर प्रतिशोध ना भी लेना चाहें, तो भी दोनों के बीच कम से कम सहजता तो नहीं होगी। कड़वे अनुभव किसी ना किसी रूप में आड़े आते ही हैं।
 
'देश के रक्षक'
इमरान खान निश्चित रूप से आने वाले चुनाव में पूरा जोर लगाएंगे। सोशल मीडिया से लेकर सड़क तक उनके समर्थकों की कमी नहीं है। जो लोग देश के पुराने ढर्रे में बदलाव चाहते हैं, उनमें से बहुत सारे इमरान खान की पार्टी के झंडे तले खड़े हैं। वे मौजूदा गठबंधन सरकार में शामिल दोनों बड़ी पार्टियों पीएमएल (एन) और पाकिस्तान पीपल्स पार्टी (पीपीपी) को बेईमान समझते हैं। उन्हें इमरान खान में उम्मीद नजर आती है। यही उम्मीद इमरान खान की सियासी पूंजी है। लेकिन उनके लिए सत्ता का रास्ता लगातार तंग होता जा रहा है। बतौर सेना प्रमुख आसिम मुनीर की नियुक्ति इसका एक और संकेत हो सकता है।
 
पाकिस्तान के लिए आने वाले महीने इम्तिहान से कम नहीं होंगे। इम्तिहान इमरान खान का भी है, और नए सेना प्रमुख आसिम मुनीर का भी। इमरान खान के लिए आखिरी उम्मीद देश की जनता है। और इसी जनता का समर्थन पाकिस्तानी सेना को भी चाहिए, अपनी साख और अपने दबदबे को बनाए रखने के लिए, हमेशा की तरह।
 
इमरान खान को सत्ता में आने से रोकने की कोशिश एक बड़े तबके में असंतोष को जन्म दे सकती है। इससे नए टकराव का रास्ता खुल सकता है। लेकिन सेना स्थिति को कभी हाथ से नहीं निकलने देगी। हालात जो भी हों, पाकिस्तानी सेना 'देश के रक्षक' की अपनी भूमिका में हमेशा तैयार रहेगी। यही तो पाकिस्तानी व्यवस्था में दबदबा बनाए रखने का उसका मंत्र है।

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