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संयुक्त राष्ट्र के मुताबिक राष्ट्रीय जलवायु लक्ष्य 'बहुत कम हैं'

हमें फॉलो करें संयुक्त राष्ट्र के मुताबिक राष्ट्रीय जलवायु लक्ष्य 'बहुत कम हैं'

DW

, शनिवार, 30 अक्टूबर 2021 (15:51 IST)
संयुक्त राष्ट्र की नई रिपोर्ट से पता चलता है कि दुनिया इस सदी में 2.7 डिग्री सेल्सियस तापमान तक की बढ़ोतरी के रास्ते पर है। COP26 से पहले संयुक्त राष्ट्र का कहना है कि सदस्य देशों को इस पर तत्काल कार्रवाई करनी चाहिए। 'गर्मी बढ़ना जारी है'। संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम यानी यूएनईपी ने मंगलवार को इसी शीर्षक से नई उत्सर्जन गैप रिपोर्ट को पेश किया है। यह रिपोर्ट 120 देशों की अद्यतन राष्ट्रीय जलवायु योजनाओं का विश्लेषण करती है, जिन्हें राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान यानी एनडीसी के रूप में जाना जाता है।
 
एनडीसी पेरिस जलवायु समझौते के मूल में हैं। इस समझौते पर हस्ताक्षर करने वाले सभी देशों को राष्ट्रीय जलवायु लक्ष्य निर्धारित करने और उनके कार्यान्वयन और नए लक्ष्यों पर नियमित रूप से रिपोर्ट करने की बाध्यता होती है।
 
यूएनईपी की नवीनतम रिपोर्ट का यह शीर्षक बहुत कुछ कहता है और इसके निष्कर्ष बेहद गंभीर हैं। एनडीसी के अद्यतन निष्कर्षों के मुताबिक, साल 2030 तक ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में सिर्फ 7.5 फीसदी की कमी देखी जाएगी। लेकिन पेरिस समझौते के लक्ष्य को प्राप्त करने और ग्लोबल वॉर्मिंग को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित करने के लिए, ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन को 55 फीसदी तक कम करना होगा।
 
समय तेजी से आगे बढ़ रहा है
 
दूसरे शब्दों में, दुनिया को साल 2030 तक प्रति वर्ष 28 गीगाटन कार्बन डाइऑक्साइड के समतुल्य (GtCO2e) उत्सर्जन में कटौती करनी चाहिए। उत्सर्जन को 2 फीसदी तक सीमित करने के लिए, देशों को अभी भी अपने जलवायु-हानिकारक उत्सर्जन को 30 फीसदी या 13 GtCO2e कम करना होगा।
 
यूएनईपी की इक्जीक्यूटिव डायरेक्टर इंगर एंडरसन इस रिपोर्ट में लिखती हैं, 'बहुत स्पष्ट होने की जरूरत है। हमारे पास योजनाएं बनाने, नीतियां बनाने, उन्हें लागू करने और आखिरकार कटौती करने के लिए सिर्फ 8 साल हैं। मतलब, घड़ी जोर से टिक-टिक कर रही है। समय बहुत तेजी से आगे बढ़ रहा है।'
 
हालांकि, यदि देश केवल अपने राष्ट्रीय जलवायु लक्ष्यों पर टिके रहते हैं, जिन्हें पेरिस समझौते के तहत उन्हें व्यक्तिगत रूप से निर्धारित करने की अनुमति है, तो साफ है कि दुनिया 2।7 डिग्री सेल्सियस तक की तापमान वृद्धि के रास्ते पर है, जो खतरनाक है।
 
कोलोन स्थित गैर लाभकारी शोध संस्थान के निदेशक और नीदरलैंड की वेगनिंजेन यूनिवर्सिटी में जलवायु संरक्षण के प्रोफेसर निकलास होने कहते हैं, 'इसके परिणामस्वरूप भयावह जलवायु परिवर्तन होगा जिसका हम बिल्कुल भी सामना नहीं कर पाएंगे। इसे हर कीमत पर टाला जाना चाहिए।'
 
महामारी में बड़ी चूक हो गई
 
यूएनईपी की रिपोर्ट में निराशा व्यक्त की गई है कि कोरोना वायरस महामारी के बाद अर्थव्यवस्था को प्रोत्साहित करने के लिए किए गए निवेशों में जलवायु संरक्षण का ध्यान बहुत कम रखा गया था। रिपोर्ट के मुताबिक रिकवरी पैकेज के 5वें हिस्से से भी कम राशि ऐसी है जिसका इस्तेमाल ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम करने में होना है।
 
साल 2020 में, COVID-19 महामारी के कारण दुनियाभर में नए उत्सर्जन में 5.4 फीसदी की गिरावट आई। हालांकि, विश्व मौसम विज्ञान संगठन, संयुक्त राष्ट्र की मौसम और जलवायु एजेंसी की एक रिपोर्ट के मुताबिक, इसी दौरान, वातावरण में ग्रीनहाउस गैसों की साद्रता भी एक नई ऊंचाई पर पहुंच गई।
 
रिपोर्ट में कहा गया है कि पिछले साल की तुलना में यह वृद्धि पिछले एक दशक की औसत वृद्धि से भी अधिक थी। यूएनईपी की रिपोर्ट कहती है, 'पिछले करीब बीस लाख वर्षों में किसी भी समय की तुलना में कार्बन डाइऑक्साइड की साद्रता अधिक है।'
 
नेट-जीरो लक्ष्य उम्मीद जगाते हैं
 
यूएनईपी के मुताबिक, संयुक्त राज्य अमेरिका, जापान, चीन और यूरोपीय संघ सहित कई देशों द्वारा किए गए नेट जीरो संकल्प से महत्वपूर्ण अंतर आ सकता है। नेट जीरो का मतलब है मानव जितनी मात्रा में ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन कर रहा है, उतनी ही मात्रा में इन गैसों को वातावरण से हटा देना चाहिए। कृत्रिम और प्राकृतिक ग्रीनहाउस गैस सिंक, जैसे कि पीटलैंड या जंगल इन ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन को संतुलित कर सकते हैं।
 
यूएनईपी की रिपोर्ट कहती है, 'यदि मजबूती से बनाया गया और पूरी तरह से लागू किया गया तो नेट जीरो लक्ष्य ग्लोबल वॉर्मिंग से अतिरिक्त 0।5 डिग्री सेल्सियस तापमान कम कर सकते हैं। इस वजह से अनुमानित तापमान वृद्धि घटकर 2.2 डिग्री सेल्सियस तक ही रह सकती है।'
 
हालांकि, यहां यह भी महत्वपूर्ण तथ्य है कि कई देश साल 2030 के बाद तक नेट-जीरो के लक्ष्य को प्राप्त करने की दिशा में काम करने की योजना नहीं बना रहे हैं।
 
2 डिग्री की बढ़ोतरी भी घातक है
 
सदस्य देशों को इस मामले में आगे बढ़ने और एनडीसी समझौते को देखते हुए नेट जीरो पर तेजी से काम करने की जरूरत है। यूएनईपी की इक्जीक्यूटिव डायरेक्टर एंडरसन इस रिपोर्ट की भूमिका में लिखती हैं, 'यह सब 5 साल या तीन साल बाद नहीं हो सकता। इस पर तत्काल अमल करने की जरूरत है।'
 
न्यू क्लाइमेट इंस्टीट्यूट के निकलास होने कहते हैं कि भले ही ग्लोबल वॉर्मिंग को 2 डिग्री सेल्सियस पर रोक दिया गया हो, आने वाले दिनों में दुनिया एक बदली हुई जगह होगी। वो कहते हैं, 'वर्तमान में हम तापमान में 1 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि कर रहे हैं और हम इसके परिणाम के रूप में सूखा, बाढ़ और पूरी दुनिया में जंगल में आग की घटनाएं देख रहे हैं। तापमान में 2 डिग्री की वृद्धि का साफ मतलब है कि ये सभी घटनाएं और भी भयावह रूप में दिखेंगी और मौसम की चरम घटनाएं साल में कई बार दिखाई पड़ेंगी।'
 
मीथेन और कार्बन बाजार में संभावनाएं
 
यूएनईपी रिपोर्ट मीथेन उत्सर्जन में कमी के माध्यम से जलवायु लक्ष्यों और वर्तमान वास्तविकता के बीच की खाई को पाटने के लिए एक अवसर के तौर पर देखती हैं। मीथेन न केवल जीवाश्म ईंधन के निष्कर्षण के दौरान निकलती है, बल्कि जैविक कचरे के अपघटन, अपशिष्ट जल के उपचार और पशुधन की खेती और चावल की खेती के माध्यम से भी उत्पन्न होती है।
 
हालांकि मीथेन वातावरण में महज 12 साल तक मौजूद रहती है जबकि इसकी तुलना में कार्बन डाइऑक्साइड सदियों तक वातावरण में रहती है। अपेक्षाकृत कम जीवनकाल के दौरान यह जलवायु के लिए बहुत अधिक शक्तिशाली और इसलिए ज्यादा हानिकारक है। रिपोर्ट के मुताबिक, मीथेन उत्सर्जन में तेजी से कमी, कार्बन डाइऑक्साइड में गिरावट की तुलना में तापमान में बढ़ोत्तरी को जल्दी सीमित कर सकती है।
 
यूएनईपी रिपोर्ट तैयार करने वालों ने लिखा है कि गरीब देशों को मुआवजा भुगतान या स्पष्ट रूप से परिभाषित और ठीक से डिजाइन किए गए कार्बन बाजारों जैसे उपायों से भी जलवायु संरक्षण के लिए प्रेरित किया जा सकता है।
 
होने कहते हैं, 'हमने जलवायु संरक्षण के उपायों में इतनी देर कर दी है कि यह जरूरी है कि विकसित देश घरेलू प्रयासों के अलावा, विकासशील देशों को जितनी जल्दी हो सके उत्सर्जन कम करने में मदद करें। उत्सर्जन का अंतर इतना बड़ा है कि कोई भी देश पीछे नहीं बैठ सकता।'
 
यूएनईपी की एंडरसन ने लिखा है कि इस साल की एमिशन गैप रिपोर्ट न केवल विफलताओं पर प्रकाश डालती है, बल्कि अधिक जलवायु कार्रवाई की विशाल क्षमता पर भी प्रकाश डालती है। उदाहरण के लिए, साल 2010 और 2021 के बीच लागू की गई नीतियां साल 2030 में वार्षिक उत्सर्जन को 11 GtCO2e कम कर देंगी।
 
एंडरसन कहती हैं कि इसलिए हमें जागना होगा और बिना किसी भेदभाव के इस पर आगे बढ़ना होगा। उनके मुताबिक, 'एक प्रजाति के रूप में हम जिस आसन्न संकट का सामना कर रहे हैं, उसके प्रति हमें सचेत रहना है। हमें दृढ़ रहने की जरूरत है, हमें तेजी से आगे बढ़ने की जरूरत है, और हमें इसे अभी करना शुरू करना होगा।'
 
रिपोर्ट: जीनेटे स्विएंक

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