भारत में हुए संसदीय चुनावों में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की जीत हुई है। जीत की इस राह पर उन्होंने भारत को पूरी तरह बदल दिया है। यह भारतीय राजनीति में एक नए काल की शुरुआत है।
चुनाव में संघर्ष एक पदासीन प्रधानमंत्री और उन्हें चुनौती दे रहे युवा विपक्षी नेता के बीच था। संघर्ष राष्ट्रवाद की ताकतों और क्षेत्रीयतावाद तथा जातिवाद के बीच था। और ये संघर्ष दृष्टिकोणों के बीच था, भावी भारत की कल्पना का। नरेंद्र मोदी ने एक बार फिर साबित कर दिया कि वे राजनीतिक हुनर के उस्ताद हैं। चाहे भाषणबाजी हो, सोशल मीडिया का इस्तेमाल या राजनीतिक बहस में मुद्दों को तय करना, दूसरों से मीलों आगे रहने की कला भारतीय राजनीति में उनसे बेहतर इस समय और कोई नहीं जानता।
जिन लोगों ने सोचा था कि चुनाव में भारतीय उद्योग की स्थिति, रिकॉर्ड बेरोजगारी, किसानों की दुरावस्था या छोटे कारोबारियों पर नोटबंदी का असर अहम भूमिका निभाएगा, उन्हें चुनाव नतीजों ने राजनीतिक प्रचार और वोटरों के फैसले की विद्या में दूसरा सबक सिखाया है। नरेंद्र मोदी ने सात चरणों में हुए चुनावों में हर बार नए मुद्दे उठाकर मतदाताओं का ध्यान रोजमर्रा की समस्याओं से हटाकर बाहरी खतरों, आंतरिक सुरक्षा और उनकी सरकार की सुरक्षा देने की क्षमता की ओर लाने में कामयाबी पाई। इससे पहले सुरक्षा बलों का चुनाव के दौरान इस पैमाने पर राजनीतिक इस्तेमाल नहीं हुआ था।
भारत के मतदाता अत्यंत राजनीतिक हैं। आमतौर पर सामंतवादी समझे जाने वाले समाज में उनका क्षेत्रीय या जातिवादी रुख भी राजनीति से प्रेरित होता है। मोदी ने इन संबंधों और रवैयों की रीढ़ तोड़ दी है। पिछले चुनावों में उन्होंने विकास के नाम पर इसे कमजोर किया और अब राष्ट्रीय सुरक्षा और हिंदुत्व को चुनाव प्रचार में राष्ट्रवाद और राष्ट्रीय अस्मिता के साथ जोड़कर उन्होंने उन मुद्दों को निष्प्रभावी कर दिया है।
इस बार के चुनाव नतीजे विपक्षी दलों के लिए लोकतंत्र का पाठ हैं। उन्होंने लोकतांत्रिक संगठन बनाने और महिलाओं तथा युवाओं को आकर्षित करने के बदले अपने नेताओं को केंद्र में रखा और उनके नाम पर समर्थन जीतने की कोशिश की। कांग्रेस ने राहुल गांधी के नेतृत्व में गरीबी से लड़ने और एक अलग भारत बनाने के नाम पर समर्थन जुटाने की कोशिश की लेकिन नतीजे दिखाते हैं कि वे विफल रहे।
स्वतंत्र आधुनिक भारत के निर्माता जवाहरलाल नेहरू के बाद नरेंद्र मोदी लगातार दूसरी बार चुनाव जीतने वाले दूसरे प्रधानमंत्री हैं। यह चुनाव जीतकर उन्होंने न सिर्फ अपनी पार्टी बीजेपी का भाग्य बदला है, उन्होंने भारतीय मतदाताओं के सोचने का रवैया भी बदला है और बहुत से लोगों को ये समझाने में कामयाब रहे हैं कि हिंदू राष्ट्रवादी पार्टी हिंदू बहुल भारत के हितों की रक्षक है।
आज के बाद दुनिया का सामना हिंदू बहुमत वाले एक मजबूत भारत से होगा। यह पाकिस्तान और चीन के लिए विदेश नीति के विकल्पों को मुश्किल बनाएगा। मोदी की विशाल जीत के बावजूद पश्चिमी देशों के प्रति भारतीय विदेश नीति के बदलने के आसार नहीं हैं, लेकिन दक्षिण एशिया और प्रशांत में भारत के आक्रामक तेवर दिख सकते हैं। मोदी की जीत विश्व के एक और पॉपुलिस्ट नेता की जीत है, जिसका विश्व व्यवस्था पर भी गंभीर असर होगा।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की जीत का जोश जब खत्म होगा तो मोदी खुद को पुरानी चुनौतियों के सामने पाएंगे। लाखों युवा बेरोजगारों के लिए नए रोजगारों के सृजन और देहात बहुल भारत को विकसित औद्योगिक राष्ट्र बनाने की चुनौती। मोदी सरकार के पिछले पांच वर्षों ने साफ तौर पर दिखाया है कि आर्थिक और सामाजिक विकास शांति और सहिष्णुता के माहौल में ही संभव है। नई सरकार की सबसे बड़ी चुनौती अल्पसंख्यक समुदायों को सुरक्षा की भावना देने, प्रेस स्वतंत्रता को सुनिश्चित करने और समाज को और लोकतांत्रिक बनाने की होगी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस जीत के साथ अपनी सत्ता तो पुख्ता कर ली है, अब उन्हें ये साबित करना है कि वे इस भरोसे के पूरे हकदार हैं।