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गैजेट्स पहुंचा रहे हैं युवाओं की रीढ़ को नुकसान

हमें फॉलो करें गैजेट्स पहुंचा रहे हैं युवाओं की रीढ़ को नुकसान
, शुक्रवार, 31 मई 2019 (12:14 IST)
अगर आप भी दिन भर दफ्तर में कंप्यूटर के आगे बैठे रहते हैं और घर आ कर अपने फोन या टैबलेट पर लगे रहते हैं, तो पढ़िए...
 
जो युवा गैजेट्स का इस्तेमाल अधिक करते हैं और लंबे समय तक एक ही पोजीशन में बैठकर काम करते हैं, उन्हें 'रिपिटिटिव इन्जरी' होने की आशंका बढ़ जाती है। इस प्रकार के 80 प्रतिशत मामलों का समाधान जीवनशैली में बदलाव से किया जा सकता है, जैसे अच्छा पोषण और भरपूर व्यायाम आदि अपनाकर।
 
कोलंबिया एशिया हॉस्पिटल के स्पाइन सेवाओं के प्रमुख डॉक्टर अरुण भनोट का कहना है कि 20 से 40 साल की उम्र वाले प्रोफेशनल्स के बीच रीढ़ से जुड़ी समस्याएं अधिक देखी जा रही हैं। उन्होंने कहा कि रिपिटिटिव स्ट्रेस इन्जरी (आरएसआई) को बार-बार एक ही प्रकार की गतिशीलता और ओवर-यूज की वजह से मांसपेशियों और नसों में दर्द के रूप में परिभाषित किया जाता है। इस स्थिति को ओवरयूज सिंड्रोम, वर्क रिलेटेड अपर लिंब डिसॉर्डर या नॉन-स्पेसिफिक अपर लिंब के रूप में भी जाना जाता है।
 
डॉक्टर भनोट कहते हैं, "इस आयुवर्ग वाले अधिकतर लोग लंबी दूरी की यात्रा करके या ड्राइव करके दफ्तर पहुंचते हैं और इसके बाद पूरा दिन अधिकतर समय एक जगह बैठकर काम करते रहते हैं। वे कंप्यूटर या लैपटॉप पर काम करते हैं, लंबी मीटिंग के लिए बैठते हैं और अपने मोबाइल पर सोशल मीडिया पर व्यस्त रहते हैं। घर पहुंचने के बाद ये लोग किताबें पढ़ने के लिए भी गैजेट का इस्तेमाल करते हैं और पढ़ते-पढ़ते सो जाते हैं।"
 
स्क्रीन का इतना लंबा और अनावश्यक इस्तेमाल रीढ़ की हड्डी पर तनाव डालता है। डॉक्टर भनोट बताते हैं, "इससे लिगामेंट में स्प्रेन का खतरा बढ़ जाता है जो वर्टिब्रा को बांधकर रखता है। ऐसे में मांसपेशियों में कड़ापन आने लगता है और डिस्क में समस्या होने का खतरा बढ़ जाता है।"
 
रीढ़ इस्तेमाल में रहती है तो स्वस्थ्य बनी रहती है। लेकिन निष्क्रिय जीवनशैली के कारण आज कल युवाओं को समस्या हो रही है। वे ऐसा जीवन जी रहे हैं जिसमें गैजेट पर निर्भरता काफी ज्यादा बढ़ गई है, "अधिकतर युवाओं में देखी जा रही आम समस्या है सर्विकल स्पाइन और पीठ की जैसे कि स्लिप डिस्क, रिपिटिटिव स्ट्रेस इन्जरी, सोर बैक और लिगामेंट की चोट।" डॉक्टर भनोट का कहना है, "पिछले 12 महीनों में मेरे पास हर महीने औसतन 15.20 प्रतिशत ऐसे मरीज आ रहे हैं जो 40 साल से कम उम्र के हैं लेकिन उन्हें स्पाइन की गंभीर समस्या हो चुकी है और इनमें रिपिटिटिव स्ट्रेस इन्जरी सबसे ज्यादा आम है।"
 
सबसे जरूरी है समय पर समस्या की पहचान। इसके बाद समस्या का समाधान करने के लिए जीवनशैली में बदलाव लागू किया जा सकता है। इसके तहत अच्छा पोषण, हल्का व्यायाम और नियमित अंतराल में थोड़ी-थोड़ी देर तक टहलकर सिटिंग टाइम को कम करके दिक्कतों को दूर किया जा सकता है।
 
- आईएएनएस/आईबी
 
 

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