-विवेक कुमार
विकसित देशों में काम करने वाले डॉक्टरों में सबसे बड़ी संख्या भारतीय डॉक्टरों की है। बड़ी संख्या में भारतीय मेडिकल प्रोफेशनल विदेश जाते हैं। लेकिन कुल भारतीय डॉक्टरों का सिर्फ 7 फीसदी ही विदेशों में है। दिल्ली के एक नामी अस्पताल में काम कर चुके डॉ. दीपक शर्मा आजकल पीएलएबी टेस्ट की तैयारी कर रहे हैं।
पीएलएबी यानी प्रोफेशनल एंड लिंग्विस्टिक असेसमेंट बोर्ड टेस्ट ब्रिटेन में काम करना चाहने वाले वाले ऐसे डॉक्टरों को पास करना होता है जिनकी पढ़ाई विदेशों में हुई हो। डॉ. शर्मा ब्रिटेन जाना चाहते हैं। अपनी पोस्ट ग्रेजुएशन कर चुके डॉ. शर्मा बाल रोग विशेषज्ञ हैं और यूरोप में काम करना चाहते हैं।
वे कहते हैं कि मेरे साथ पढ़ने वाले कई साथी वहां जा चुके हैं। वे बताते हैं कि वहां लाइफ स्टाइल बेहतर है। काम के घंटे काफी ज्यादा हैं लेकिन पैसा अच्छा मिलता है। मुझे लगता है कि मुझे भी वहां जाना चाहिए। डॉ. शर्मा के साथ पढ़े कम से कम 10 डॉक्टर्स अमेरिका, यूरोप या ऑस्ट्रेलिया जा चुके हैं। और वे उन हजारों भारतीय डॉक्टरों में से हैं, जो विदेशों में काम कर रहे हैं।
सबसे ज्यादा भारतीय डॉक्टर विदेशों में
भारत दुनिया के उन देशों में सबसे ऊपर है, जहां के पढ़े डॉक्टर विकसित देशों में काम कर रहे हैं। ऐसा तब है जबकि भारत में डॉक्टरों की बेहद कमी है और अंतरराष्ट्रीय मानकों की तुलना में भारत में प्रति हजार व्यक्तियों पर डॉक्टरों की संख्या बेहद कम है। इस कमी के बावजूद भारत डॉक्टरों के गंभीर ब्रेन ड्रेन से जूझ रहा है।
विकसित देशों के संगठन ऑर्गनाइजेशन ऑफ इकनॉमिक कोऑपरेशन एंड डिवेलपमेंट (ओईसीडी) ताजा आंकड़ों के मुताबिक करीब 75 हजार भारतीय डॉक्टर विकसित देशों में काम कर रहे हैं कि जो दुनिया में सबसे ज्यादा हैं।
दूसरे नंबर पर पाकिस्तान है जिसके 25 हजार से ज्यादा डॉक्टर विकसित देशों में हैं। रोमानिया (21,800), जर्मनी (18,827) और ब्रिटेन (18,314) के डॉक्टर भी अपना देश छोड़कर अन्य विकसित देशों में कार्यरत हैं। इस सूची में रूस, मिस्र और पोलैंड भी हैं।
डॉ. हारून कासिम ऑस्ट्रेलिया के शहर सिडनी में रहते हैं। भारत के तमिलनाडु से आने वाले डॉ. कासिम 2002 में ऑस्ट्रेलिया आ गए थे। वे बताते हैं कि भारतीय डॉक्टरों के विदेशों में काम करने की कई वजहें हैं। वे कहते हैं कि हम अंग्रेजी बोलते हैं इसलिए हमारे लिए लाइसेंसिग एग्जाम पास करना और अन्य देशों में काम करना आसान होता है। इसके अलावा काम करने की बेहतर परिस्थितियां भी डॉक्टरों को विदेशों की ओर आकर्षित करती हैं।
ओईसीडी की रिपोर्ट के मुताबिक भारत के जो डॉक्टर विदेशों में काम कर रहे हैं कि उनमें से ज्यादातर अंग्रेजी भाषी देशों में ही हैं। विकसित देशों में काम कर रहे कुल 74,455 भारतीय डॉक्टरों में से दो-तिहाई तो अमेरिका में ही हैं। लगभग 19 हजार ब्रिटेन में काम कर रहे हैं।
भारत के मुकाबले विदेशों में काम करने वाले चीनी डॉक्टरों की संख्या काफी कम है, जहां के सिर्फ 8 हजार डॉक्टर विकसित देशों में हैं कि जबकि दोनों देशों की आबादी लगभग बराबर है। वहां के डॉक्टरों ने मुख्यतया अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया को चुना है। डॉ. कासिम भारत छोड़कर विदेश जाने की अपनी निजी वजहों में काम की बेहतर परिस्थितियों के अलावा देश के घरेलू हालात को भी जिम्मेदार मानते हैं।
वे कहते हैं कि विकसित देशों में बेहतर सार्वजनिक स्वास्थ्य सुविधाएं हासिल हैं, जो अपेक्षाकृत सस्ती हैं। इससे काम करने की संतुष्टि मिलती है। साथ ही यहां रिसर्च और डेवलपमेंट के साथ-साथ ट्रेनिंग के भी बेहतर मौके हैं। साथ ही वे जोर देकर कहते हैं कि भारत में राजनीतिक और अभिव्यक्ति की आजादी की लगातार होती कमी ने बहुत से कुशल पेशेवरों को दूसरे देशों का रुख करने को मजबूर किया है।
डॉक्टरों की कमी से जूझता भारत
प्रति हजार व्यक्तियों पर उपलब्ध डॉक्टरों के मामले में भारत दुनिया की सूची में काफी नीचे आता है। ओईसीडी की इसी महीने जारी रिपोर्ट बताती है कि दुनिया में सबसे बेहतर डॉक्टर अनुपात ऑस्ट्रिया में है, जहां हर हजार लोगों पर 5.5 डॉक्टर हैं। ब्रिटेन में 3.2 और अमेरिका में यह अनुपात 2.6 का है। चीन में भी प्रति हजार व्यक्तियों पर 2.4 डॉक्टर हैं जबकि भारत में मात्र 0.9।
हालांकि सिर्फ विदेशों में काम करने वाले डॉक्टरों को इस कमी के लिए जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता, क्योंकि भारत के कुल डॉक्टरों का एक मामूली हिस्सा ही विदेशों में है। रिपोर्ट कहती है कि कुल भारतीय डॉक्टरों का सिर्फ 7 फीसदी ही विदेशों में हैं और अगर वे लौट भी आएं तो भी भारत के हालात में ज्यादा बदलाव नहीं होगा। इसके मुकाबले ब्रिटेन या जर्मनी के डॉक्टरों का ज्यादा बड़ा हिस्सा विदेशों में काम करता है लेकिन वहां प्रति हजार व्यक्ति डॉक्टरों की संख्या बेहतर है।
मिसाल के तौर पर रोमानिया के करीब 22 हजार डॉक्टर विकसित देशों में काम कर रहे हैं। 1.9 करोड़ की आबादी वाले देश में यह बहुत बड़ी संख्या है और अगर वे सभी स्वदेश लौट जाएं तो देश में डॉक्टरों की संख्या 37 फीसदी बढ़ जाएगी। मिस्र के 17 फीसदी और फिलीपींस के भी 13 प्रतिशत डॉक्टर विदेशों में काम कर रहे हैं। छोटे से कैरेबियाई देश ग्रेनाडा के भी करीब 10 हजार डॉक्टर विदेशों में हैं।
कैसे सुधरेगी हालत?
एक नीति विशेषज्ञ के तौर पर काम करने वाले डॉ. हारून कासिम कहते हैं कि अगर भारत की स्थिति डॉक्टरों को विदेश जाने से रोकने से नहीं सुधरेगी। वे कहते हैं कि भारत को यदि अपना अनुपात सुधारना है तो उसे सार्वजनिक स्वास्थ्य क्षेत्र में बेहतर निवेश करना होगा।
डॉयचे वेले से बातचीत में उन्होंने कहा कि भारत अपनी जीडीपी का सिर्फ 2 फीसदी स्वास्थ्य पर खर्च करता है। देश के 90 फीसदी से ज्यादा डॉक्टर निजी क्षेत्रों में काम करते हैं। अगर उसे अपने डॉक्टर चाहिए तो उसे स्वास्थ्य क्षेत्र पर खर्च बढ़ाना होगा, डॉक्टरों को काम करने की बेहतर परिस्थितियां देनी होंगी। उनके लिए रिसर्च और डेवलपमेंट के साथ-साथ ट्रेनिंग की सुविधाएं भी देनी होंगी।