प्रवासी मजदूर अब अपने जिले के लिए ऐसे कर रहे हैं काम

DW
मंगलवार, 8 सितम्बर 2020 (07:00 IST)
सागर जिले में बड़े शहरों से लौटने के बाद मजदूर भूजल सुधारने के काम में जुटे हुए हैं। बड़े शहरों के मुकाबले उनको पैसे तो कम मिल रहे हैं लेकिन वे संतुष्ट हैं कि वे अपने गांव में ही काम कर रहे हैं।

देश में कोरोनावायरस लॉकडाउन के पहले तक बसंत कुमार अहिरवार कुशल राजमिस्त्री के तौर पर उत्तरप्रदेश में काम कर रहे थे। लेकिन लॉकडाउन की वजह से उन्हें वापस अपने राज्य मध्यप्रदेश लौटना पड़ा। बसंत कुमार को भी अन्य प्रवासी मजदूरों की तरह पैदल चलकर वापस लौटना पड़ा था, हालांकि अभी नई नौकरी मिल गई है। उनका काम पहाड़ों के पास गड्ढे खोदना है जिससे सूखा प्रभावित उनके जिले में पानी की समस्या तो कम हो ही जाए, साथ ही साथ हजारों बेरोजगारों को रोजगार भी मिल जाए।

इस काम को करने के लिए करीब 7,000 मजदूरों के साथ अन्य बेरोजगार लोगों को लगाया गया है। सागर जिले में ही अप्रैल महीने से अब तक 50,000 गड्ढे खोदे जा चुके हैं। ये गड्ढे जिले की 40 पहाड़ियों के आसपास खोदे जा रहे हैं ताकि जलस्तर बढ़ सके और लोगों के लिए रोजगार का भी इंतजाम हो सके।

बसंत कुमार कहते हैं, 'यह काम हमारी जीविका का साधन बन गया है।' बसंत कुमार को 190 रुपए इस काम के बदले में मिलते हैं, जो कि पहले के मुकाबले बहुत कम है। उनका कहना है कि बरसात का पानी नाली में जमा हो रहा है और अब पहाड़ी हरियाली से भरपूर हो रही है, जो कि पहले बंजर जैसी थी। उनके मुताबिक सूखे की मार झेल रहे जिले में खेती की संभावना बढ़ गई और यहां किसानी अधिक सफल हो सकती है।

पहले यह काम छोटे स्तर पर हो रहा था, अब यह महात्मा गांधी ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (मनरेगा) के तहत हो रहा है जिसका मकसद कम से कम 100 दिन का काम देना है। जिला पंचायत के सीईओ इच्छित गढ़पाले का कहना है कि इस प्रयास से जिले के भूजल स्तर को बेहतर करना है। उनके मुताबिक पहाड़ से गिरने वाला पानी कटाव की जगह मोरियों से होकर धीरे-धीरे मिट्टी के अंदर चला जाता है। उनके मुताबिक इस तरह के गड्ढे 6 करोड़ लीटर अतिरिक्त पानी को रोक सकते हैं।

यह काम उन हजारों प्रवासी मजदूरों के लिए राहत लेकर आया है, जो लॉकडाउन के बाद घर लौट आए थे और उनके सामने रोजगार का संकट पैदा हो गया था। लॉकडाउन के कारण लाखों लोगों के सामने अब भी रोजगार पाने की समस्या बरकरार है। हालांकि सागर जिले में जिस तरह से काम हो रहा है, वहां के लोगों में उम्मीद जगी है कि शायद उन्हें दोबारा गृह जिला छोड़कर जाना ही ना पड़े।

रोहित विश्वकर्मा कभी नागपुर में काम करते थे और अब वे इस प्रोजेक्ट के तहत काम कर रहे हैं। उन्हें यह प्रोजेक्ट घर पर बेहतर दीर्घकालिक संभावनाएं प्रदान करता नजर आता है। विश्वकर्मा कहते हैं, 'क्षेत्र में पीने के पानी की गंभीर समस्या है। गर्मी में लोगों को लंबी दूरी तय कर पानी लाने जाना पड़ता है। भूजल का स्तर गिरने से कुएं और हैंडपंप सूख रहे हैं। अगर हम पानी की समस्या सुलझा लेते हैं तो इससे बेहतर क्या होगा? अगर हमें इसी तरह से काम मिलता रहे तो हमें अपना घर छोड़ बड़े शहर जाने की जरूरत नहीं पड़ेगी।

सागर जिला ऐसे क्षेत्र में पड़ता है, जहां हर साल सूखे की समस्या पैदा होती है। अनियमित बारिश के कारण फसलें चौपट होने के साथ-साथ बेरोजगारी का भी संकट पैदा हो जाता है। इसी के साथ इलाके की कुछ और समस्याएं हैं, जैसे कि अशिक्षा और स्वास्थ्य सेवा की कमी।
एए/सीके (थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन)

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