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भारत में सड़क सुरक्षा पर गंभीरता की कमी

हमें फॉलो करें भारत में सड़क सुरक्षा पर गंभीरता की कमी

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, बुधवार, 20 जनवरी 2021 (09:09 IST)
रिपोर्ट : आमिर अंसारी
 
भारत में हर रोज 415 लोग सड़क हादसों में मारे जाते हैं। कानून की सख्ती और जुर्माना अधिक होने के बावजूद लोग सड़क सुरक्षा को हल्के में लेते हैं। युवा वर्ग भी कई बार कानून को अनदेखा कर देता है और हादसे का शिकार होता है।
 
भारतीय सड़कों पर महंगी से महंगी गाड़ियां दिख जाएंगी, मोटरसाइकल और कार फर्राटे भरती नजर आ जाएंगी लेकिन कड़वा सच यह भी है कि इन्हें चलाने वाले अधिकतर लोग मौका मिलते ही ट्रैफिक नियमों को तोड़ने से बाज नहीं आते हैं। आधी रात के बाद हाईवे हो या शहर की सड़कें, इन पर बड़े वाहन का तेज रफ्तार से चलना आम बात है। महानगरों में नाबालिगों के गाड़ी चलाने के दौरान जानलेवा हादसे के मामले भी चिंता का विषय है। कई हादसों में तो परिवार एकदम उजड़ जाता है।
 
ऐसा ही एक मामला रविवार, 17 जनवरी को दिल्ली के द्वारका एक्सप्रेस वे पर हुआ, जहां तेज रफ्तार ट्रॉले ने गलत दिशा से आकर विमान के पायलट की कार को टक्कर मार दी। हादसा इतना भयानक था कि कार को कुचलते हुए ट्रॉला काफी आगे तक कार को घसीटता ले गया। मृतक पायलट के परिवार में पत्नी, 3 महीने का बच्चा और मां हैं। परिवार में पायलट अनमोल वर्मा इकलौते कमाने वाले थे। सड़क पर होने वाले इन दर्दनाक हादसों और बिखरते परिवारों के बीच देश में 18 जनवरी से पहली बार सड़क सुरक्षा महीने की शुरुआत हुई है।
 
लोगों को सड़क सुरक्षा के बारे में जागरूक करने और सड़क दुर्घटनाओं में कमी लाने के उद्देश्य से इस साल सड़क सुरक्षा सप्ताह की जगह सड़क सुरक्षा माह का आयोजन किया जा रहा है। केंद्रीय सड़क परिवहन और राजमार्ग और एमएसएमई मंत्री नितिन गडकरी ने सड़क सुरक्षा माह के आयोजन पर कहा कि आप ये जानकर हैरान होंगे कि इन सड़क दुर्घटनाओं में मरने वाले लोगों से हमारे देश को जीडीपी के 3.14 फीसदी के बराबर सामाजिक-आर्थिक नुकसान होता है।
 
सरकारी आंकड़ों के मुताबिक देश में हर साल सड़क दुर्घना में करीब 1.5 लाख लोगों की मौत होती है जबकि 4.5 लाख लोग घायल होते हैं। गडकरी के मुताबिक सड़क दुर्घटना में जान गंवाने वाले 70 फीसदी लोग 18-45 वर्ष के आयु वर्ग में आते हैं यानी देश में प्रतिदिन इस आयु वर्ग के 415 लोगों की मौत होती है। गडकरी का कहना है कि नीतिगत सुधारों और सुरक्षित प्रणाली को अपनाकर साल 2030 तक भारतीय सड़कों पर सड़क दुर्घटनाओं को शून्य करने की दिशा में सरकार ने कई अहम कदम उठाए हैं।
 
कानून की धज्जियां उड़ाते चालक
 
तेज गति, कार चलाने के दौरान सीट बेल्ट का इस्तेमाल नहीं करना, गाड़ी चलान के दौरान मोबाइल पर बात करना, शराब पीकर गाड़ी चलाना, मोटर साइकिल चालक और सवारी का हेलमेट नहीं लगाना कई बार हादसे का कारण बनता है। हादसे का एक और मुख्य कारण है-गलत दिशा में गाड़ी चलाना, समय बचाने के लिए चालक कई बार गलत दिशा में गाड़ी चलाता है और सामने से आने वाली गाड़ियों से उसकी गाड़ी टकरा जाती है, कई बार हादसा इतना भयानक होता है कि गाड़ी में सवार लोगों की मौके पर ही मौत हो जाती है।
 
राष्ट्रीय अपराध ब्यूरो के आंकड़ों के मुताबिक साल 2019 में 4,37,396 सड़क दुघर्टनाएं हुईं, इन हादसों में 1,54,732 लोगों की मौत हुई जबकि 4,39,262 अन्य लोग घायल हुए। आंकड़ों के मुताबिक 59.6 फीसदी हादसे ओवर स्पीडिंग के कारण हुए और 86,241 लोगों की मौत हुई जबकि 2,71,581 लोग घायल हुए। तमाम सरकारी कोशिशों के बावजूद सड़क हादसों में लगाम नहीं लग पा रहा है और ये साल-दर-साल बढ़ रहे हैं। साल 2018 में सड़क हादसों में मरने वालों की संख्या जहां 1,52,780 थी, वहीं ये आंकड़ा 2017 में 1,50,093 था।
 
साल 2019 में मोटर व्हीकल कानून में संशोधन किया गया था जिसके बाद ट्रैफिक नियमों को तोड़ने वालों पर भारी जुर्माना लगाना मुमकिन हो पाया। कानून में संशोधन का मकसद लोगों में ट्रैफिक नियमों को तोड़ने को लेकर भय भरना था, क्योंकि इससे पहले तक जुर्माने की राशि बहुत कम होती थी। संशोधित कानून के मुताबिक कुछ नियमों को तोड़ने पर जुर्माना कई गुना तक बढ़ा दिया गया था। हादसों और मृतकों की संख्या देखने पर लगता है कि अब भी लोग कानून को लेकर गंभीर नहीं हुए हैं।

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