Hanuman Chalisa

Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
webdunia

कश्मीर पर बढ़ता तनावः क्या-क्या है दांव पर

कश्मीर सिर्फ भारत के लिए जरूरी नहीं है बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी यह एक रणनीतिक महत्व का इलाका है। वहां होने वाले तनाव का असर गंभीर और व्यापक हो सकता है।

Advertiesment
हमें फॉलो करें Kashmir

DW

, रविवार, 27 अप्रैल 2025 (08:04 IST)
मोनीर गाएदी
धरती पर बहुत कम इलाके ऐसे हैं, जहां कश्मीर की तरह भारी सैन्य मौजूदगी हो और लगातार बनी रहने वाली अस्थिरता ऐसी कि हमेशा डर बना रहे। हिमालय की गोद में बसा और भारत, पाकिस्तान और चीन, तीन परमाणु शक्तियों से घिरा यह क्षेत्र दशकों से क्षेत्रीय प्रतिद्वंद्विता और अनसुलझी-अधूरी महत्वाकांक्षाओं की एक प्रयोगशाला बना हुआ है।
 
इस हफ्ते इस अस्थिरता ने एक बार फिर जानलेवा रूप दिखाया। मंगलवार को, कश्मीर के पहलगाम में पर्यटकों के एक समूह पर आतंकियों ने हमला किया। 26 लोग मारे गए और दर्जनों घायल हो गए। पिछले कुछ वर्षों में इस क्षेत्र में आम लोगों पर यह सबसे बड़ा हमला था। इससे कुछ दिन पहले ही, इसी इलाके में हुई कुछ मुठभेड़ों में तीन आतंकवादी और एक भारतीय सैनिक मारे गए थे। यह संकेत हैं कि जमीनी स्तर पर तनाव खतरनाक रूप से गंभीर बना हुआ है।
 
कश्मीर क्यों महत्वपूर्ण है
लगभग 2,22,200 वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल में फैला कश्मीर भारत, पाकिस्तान और चीन के बीच बंटा हुआ है लेकिन भारत और पाकिस्तान दोनों पूरे क्षेत्र पर दावा करते हैं। यहां लगभग 2 करोड़ लोग रहते हैं, जिनमें करीब 1.45 करोड़ भारत की ओर वाले क्षेत्र में रहते हैं। पाकिस्तान वाले हिस्से में लगभग 60 लाख लोग रहते हैं जबकि कुछ हजार लोग चीन-शासित क्षेत्र में रहते हैं। यह क्षेत्र सामरिक, आर्थिक और धार्मिक हितों के लिहाज बेहद अहम है।
 
कश्मीर संघर्ष का आधुनिक इतिहास 1947 से शुरू होता है, जब अंग्रेजों से आजादी के बाद हिंदू-बहुल भारत और मुस्लिम-बहुल पाकिस्तान के रूप में दो देश बन गए। उस समय जम्मू और कश्मीर पर हिंदू महाराजा हरि सिंह का शासन था। हरि सिंह ने शुरू में किसी भी देश में शामिल होने से इनकार कर दिया था।
 
यह स्थिति तब बदली जब पाकिस्तानी गुरिल्ला लड़ाकों ने इस क्षेत्र पर कब्जा करने और महाराजा को सत्ता से हटाने की कोशिश की। नतीजतन भारत-पाकिस्तान का पहला युद्ध हुआ, क्योंकि महाराजा हरि सिंह ने आक्रमणकारियों को रोकने के लिए भारत से मदद मांगी और बदले में अपने राज्य को नई दिल्ली को सौंप दिया। इससे कश्मीर का जो विभाजन हुआ, वह आज भी कायम है।
 
आज भारत क्षेत्र के सबसे घनी आबादी वाले हिस्से को नियंत्रित करता है, जिसमें कश्मीर घाटी, जम्मू और लद्दाख शामिल हैं। पाकिस्तान के नियंत्रण में उत्तरी कश्मीर के हिस्से हैं। इनमें आजाद कश्मीर और गिलगित-बाल्टिस्तान शामिल हैं। वहीं चीन पूर्वोत्तर में बहुत कम आबादी वाले अक्साई चिन क्षेत्र का प्रशासन करता है, जिस पर भारत भी दावा करता है। साथ ही शक्सगाम घाटी भी है, जिस पर भारत चीनी के नियंत्रण को मान्यता नहीं देता।
 
पाकिस्तान का कश्मीर पर दावा इस तर्क पर आधारित है कि क्षेत्र की मुस्लिम बहुल आबादी को विभाजन के समय पाकिस्तान का हिस्सा बनना चाहिए था। दूसरी तरफ भारत का कहना है कि 1947 में हरि सिंह द्वारा हस्ताक्षरित अधीनता पत्र भारत के दावे को वैध और अंतिम बनाता है। लेकिन कानूनी विद्वान इस पर विवाद करते हैं और दबाव में हस्ताक्षरित दस्तावेज की वैधता पर सवाल उठाते हैं। यही असहमति कई युद्धों, विद्रोहों और दशकों की कूटनीतिक दुश्मनी का कारण बनी है।
 
तीसरा पक्ष: चीन
हालांकि कश्मीर को लेकर मुख्य रूप से भारत और पाकिस्तान का विवाद रहा है, लेकिन चीन भी इस पहेली का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। क्षेत्र के उत्तर-पूर्वी हिस्से में शक्सगाम घाटी और अक्साई चिन, चीन के नियंत्रण में हैं, लेकिन भारत इन पर दावा करता है। शक्सगाम घाटी का इलाका अपने दुर्गम भूगोल के कारण लगभग निर्जन है, जबकि अक्साई चिन, चीन के लिए तिब्बत और शिनजियांग के बीच जमीनी संपर्क के लिहाज से बेहद महत्वपूर्ण है।
 
1950 के दशक में चीन ने अक्साई चिन पर नियंत्रण स्थापित किया, जब उसने शिनजियांग और तिब्बत को जोड़ने वाला एक रणनीतिक राजमार्ग बनाया। यह राजमार्ग उस क्षेत्र से होकर गुजरता था जिस पर भारत दावा करता था। भारत ने इस पर आपत्ति जताई, और 1962 में दोनों देशों के बीच जंग छिड़ गई। कुछ ही दिन चली इस जंग के बाद से चीन अक्साई चिन का प्रशासन करता आ रहा है। हाल के वर्षों में चीन ने वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) के पास अपनी सैन्य मौजूदगी बढ़ाई है, जिससे दोनों पक्षों के सैनिकों के बीच अक्सर आमना-सामना होता रहता है।
 
चीन के लिए इस क्षेत्र का महत्व केवल रणनीतिक नहीं बल्कि आर्थिक भी है। चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा (सीपीईसी) बीजिंग की बेल्ट एंड रोड पहल का एक मुख्य हिस्सा है। यह पाकिस्तान-प्रशासित गिलगित-बाल्टिस्तान से होकर गुजरता है। इस कारण कश्मीर की स्थिरता बीजिंग के लिए केवल भू-राजनीतिक ही नहीं, बल्कि आर्थिक चिंता का विषय भी है।
 
भारी सैनिक मौजूदगी
एक अनुमान के मुताबिक भारत ने जम्मू और कश्मीर में 7.5 लाख से अधिक सैनिक तैनात किए हुए हैं, जिनमें अधिकतर मुस्लिम बहुल कश्मीर घाटी में तैनात हैं। पाकिस्तान ने अपनी ओर से नियंत्रण रेखा (एलओसी) पर 1.2 लाख तक सुरक्षा बल तैनात किए हैं, जिनमें मुजाहिद बल जैसी विशेष यूनिट भी शामिल हैं, और कुल मिलाकर 2.3 लाख सैनिक क्षेत्र में मौजूद हैं।
 
दोनों पक्ष एक-दूसरे पर अपनी तैनाती संख्या बढ़ा-चढ़ाकर बताने का आरोप लगाते हैं और सटीक आंकड़े सार्वजनिक नहीं करते। हालांकि विश्लेषकों का मानना है कि क्षेत्र में सैन्य घनत्व नागरिक आबादी के मुकाबले कोरियाई प्रायद्वीप के बराबर या उससे अधिक है।
 
विद्रोही समूह स्थिति को और जटिल बनाते हैं। भारत के हिस्से वाले कश्मीर में 1980 के दशक के अंत से शुरू हुए सशस्त्र विद्रोह को स्थानीय असंतोष और बाहरी समर्थन दोनों की मदद मिलती है। भारत का आरोप है कि पाकिस्तान आतंकवादी समूहों का समर्थन करता है, जिसे इस्लामाबाद नकारता है। पिछले दशकों में हिज्बुल मुजाहिदीन, जैश-ए-मोहम्मद और लश्कर-ए-तैयबा जैसे संगठनों ने क्षेत्र में हमले किए हैं।
 
क्या यह एक और संकट भड़का सकता है?
मंगलवार को पहलगाम में हुए हमले के जवाब में भारत ने पाकिस्तान के खिलाफ कई कदम उठाए हैं, जिनमें कूटनीतिक संबंधों को कम करना, थल और वायु सीमाएं बंद करना और 1960 की सिंधु जल संधि को निलंबित करना शामिल है, जो सिंधु नदी प्रणाली के जल बंटवारे को नियंत्रित करती है। पाकिस्तान ने पहले ही चेतावनी दी थी कि संधि में कोई भी दखल "युद्ध की कार्यवाही" के रूप में देखा जाएगा।
 
अब अटकलें बढ़ रही हैं कि यह विवाद सैन्य रूप ले सकता है। इससे 2019 के तनाव की याद ताजा हो जाती है, जब पुलवामा में एक आत्मघाती बम विस्फोट में 40 भारतीय अर्धसैनिक बलों की मौत हो गई थी। भारत ने जवाबी कार्रवाई में पाकिस्तान में हवाई हमले किए थे, जिससे दोनों देशों के बीच युद्ध का खतरा पैदा हो गया था।
 
उसी साल, भारत ने अपने संविधान के अनुच्छेद 370 को रद्द कर जम्मू-कश्मीर की विशेष स्वायत्तता समाप्त कर दी थी। इस कदम की पाकिस्तान ने निंदा की थी, जिससे क्षेत्र में अशांति फैल गई थी। तब से लेकर अब तक तनाव लगातार बना हुआ है। हालांकि वैश्विक ध्यान कुछ हद तक कम हो गया है।
 
इस अत्यधिक अस्थिर क्षेत्र में, जहां पहले भी कई संघर्ष हो चुके हैं, एक और युद्ध का खतरा वास्तविक और खतरनाक है।
 
यह लेख कश्मीर क्षेत्र के भूभाग, जनसंख्या, तैनात सैनिकों की संख्या और 1947 के अधीनता समझौते की विवादास्पद प्रकृति से संबंधित अद्यतन आंकड़ों के साथ अपडेट किया गया।

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi

अगला लेख

पाकिस्तान के हवाई क्षेत्र पर कितना निर्भर है भारत?