क्या करतारपुर गलियारा खालिस्तानी आंदोलन में जान डालने की साजिश है?

Webdunia
गुरुवार, 7 नवंबर 2019 (09:59 IST)
भारत और पाकिस्तान के बीच ऐतिहासिक करतारपुर गलियारे के खुलने से ठीक 2 दिन पहले पाकिस्तान की सरकार ने एक वीडियो जारी किया है जिसमें खालिस्तान अलगाववादी आंदोलन के बैनर और मारे गए 3 अलगाववादियों को दिखाया गया है।
 
पाकिस्तान की सरकार की ओर से इस मौके पर जारी वीडियो का मकसद तो गलियारे के खुलने का उत्सव मनाना है, पर इसमें खालिस्तान अलगाववादी आंदोलन के बैनर और सुरक्षाबलों के हाथों मारे गए 3 अलगाववादियों को दिखाए जाने से पूरी परियोजना को लेकर सवाल खड़े हो गए हैं।
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4 मिनट लंबे इस वीडियो में कुछ सिख श्रद्धालु पाकिस्तान में एक गुरुद्वारे की तरफ जाते दिखाई दे रहे हैं और पृष्ठभूमि में दिखाई दे रहा है एक पोस्टर जिस पर 'खालिस्तान 2020' लिखा है और साथ में खालिस्तान अलगाववादी जरनैल सिंह भिंडरांवाले, मेजर जनरल शाबेग सिंह और अमरीक सिंह खालसा को दिखाया गया है।
 
भिंडरांवाले दमदमी टकसाल नाम के संगठन का मुखिया था जिसने सिखों के लिए एक अलग देश की मांग करने वाले आंदोलन को हिंसक रूप दिया था। मेजर जनरल शाबेग सिंह भारतीय सेना के अधिकारी थे, जो बाद में भिंडरांवाले के साथ जुड़ गए थे। अमरीक सिंह खालसा भी इसी आंदोलन का एक नेता था।
जब पाकिस्तान ने अचानक से करतारपुर गलियारा खोलने की बात की, तो भारत में लोग चौंक गए और इसे शक की नजर से देखने लगे। भारतीय पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह ने भी इसे खालिस्तानी आंदोलन को फिर खड़ा करने की पाकिस्तान की साजिश बताया। दोनों देश गलियारे पर आगे बढ़ने लगे और अंत में अमरिंदर सिंह भी इस विमर्श में शामिल हो गए। पर इस नए वीडियो के आने के बाद वे फिर अपनी बात दोहराने लगे हैं और पाकिस्तान से सतर्क रहने की अपील कर रहे हैं।
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पूर्व विदेश सचिव शशांक ने डॉयचे वेले से बातचीत में कहा कि अमरिंदर सिंह जानकार हैं, हालात को अच्छे से समझते हैं और इसलिए उनकी बात को नकारा नहीं जा सकता है। उन्होंने कहा, 'भारत को सावधान रहना चाहिए। लेकिन इसके साथ ही सिख समुदाय की भावनाओं का भी ख्याल रखना चाहिए। पाकिस्तान जरूर चाहेगा कि दुनियाभर में मौजूद सिख समुदाय के लोगों को वो भारत के खिलाफ इस्तेमाल कर सके, पर पाकिस्तान की हर कोशिश का भारत नकारात्मक जवाब नहीं दे सकता है'।
 
वहीं कुछ समीक्षक इस पूरी परियोजना को ही एक त्रासदी मानते हैं और कहते हैं कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की सरकार को इसके लिए हामी भरनी ही नहीं चाहिए थी। भारत-पाकिस्तान मामलों के जानकार और ऑब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन में सीनियर फैलो सुशांत सरीन उनमें से एक हैं।
 
उन्होंने डॉयचे वेले से बातचीत में कहा कि वे शुरू से इस परियोजना के आलोचक रहे हैं, क्योंकि यह बात पूरी तरह साफ है कि पाकिस्तान पिछले कुछ सालों से लगातार खालिस्तान आंदोलन को हवा देने की कोशिश कर रहा है। सरीन ने कहा, 'ब्रिटेन, कनाडा, जर्मनी, अमेरिका जैसे देशों में खालिस्तानी ताकतों को बढ़ावा देने का काम पाकिस्तान पिछले 20-30 सालों से करता आया है और पिछले कुछ सालों में उसकी ये कोशिशें और तेज हो गई हैं'।
 
उन्होंने कहा कि इस परियोजना पर शक का एक बड़ा कारण यह भी है कि इसकी घोषणा अचानक कर दी गई थी। उन्होंने यह भी कहा कि खुद पाकिस्तान के विदेश मंत्री शाह महमूद कुरैशी का बयान आया था कि करतारपुर गलियारे के रूप में पाकिस्तान ने एक गुगली फेंकी थी और भारत सरकार उसे खेलकर खुली आंखों से पाकिस्तान के जाल में गिर गई।
 
खालिस्तान आंदोलन भारत के सबसे खतरनाक आंदोलनों में से रहा है जिसने पंजाब को आतंकवाद की ऐसी आग में झोंका, जो 70, 80 और 90 के दशक तक जलती रही और जिसने हजारों जानों की आहूति ली थी। इनमें पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी भी शामिल हैं जिनकी हत्या के बाद सिखों के खिलाफ पूरे देश में भयानक दंगे भी भड़क उठे थे जिसमें और भी कई जानें गईं।
 
90 के दशक में बड़ी मुश्किल से भारत ने इस आंदोलन पर काबू पाया और इसीलिए जब भी इससे जुड़ी कोई भी सुगबुगाहट होती है तो भारतीय रक्षा तंत्र में लोगों के कान खड़े हो जाते हैं। खालिस्तान रेफेरेंडम 2020 विदेश में रहने वाले कुछ सिख संगठनों द्वारा आयोजित कार्यक्रम है जिसकी मदद से खालिस्तान में विश्वास रखने वाले लोग एक अनौपचारिक जनमत संग्रह में हिस्सा ले सकेंगे।
 
वरिष्ठ पत्रकार संजय कपूर का कहना है कि इस डर को भारत की सुरक्षा एजेंसियों और उन लोगों ने व्यक्त किया था, जो मानते हैं कि इस परियोजना को शुरू करने के पीछे पाकिस्तान के इरादे अच्छे नहीं हैं। वे कहते हैं, 'उन्हें ये लगता है कि ऐसे समय में जब रेफेरेंडम 2020 होने वाला है, तब पाकिस्तान सिखों और हिन्दुओं के बीच की दरारों का लाभ उठाना चाहता है। यह बात कुछ हद तक ठीक भी है। पाकिस्तान के इस निर्णय को ही ले लीजिए जिसके तहत करतारपुर जाने वाले सिर्फ सिख श्रद्धालुओं को पासपोर्ट रखने की आवश्यकता नहीं होगी। लेकिन मेरा ये मानना है कि इसे सेंट्रल नैरेटिव नहीं बनाना चाहिए।'
 
इन सभी आशंकाओं और विवादों के बीच गलियारे का खुलना अभी तक तय माना जा रहा है। 8 नवंबर को भारत की तरफ से इसका उद्घाटन प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी करेंगे और उसके अगले दिन पाकिस्तान की तरफ से प्रधानमंत्री खान उद्घाटन करेंगे। इस बीच कुछ मुद्दों पर गतिरोध भी बना हुआ है। भारत का कहना है कि पाकिस्तान जाने वाले लोगों की जो सूची भारत ने भेजी थी, उस पर पाकिस्तान की तरफ से स्वीकृति अभी तक नहीं आई है।
 
(डॉयचे वैले)

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