रिपोर्ट : चारु कार्तिकेय
जम्मू और कश्मीर में 7 महीनों के बाद इंटरनेट के इस्तेमाल पर से प्रतिबंध हटा है। क्या ये दीर्घकालिक है या अस्थायी और क्या ये हालात के सामान्य होने का संकेत है?
7 महीनों से कई तरह के प्रतिबंधों के बीच जीवन बिता रहे जम्मू और कश्मीर में रहने वाले लोगों को प्रशासन ने 4 मार्च की शाम एक और छूट दे दी। प्रशासन ने इंटरनेट पर 5 अगस्त से लगी हुई पाबंदी हटा ली और पूरे केंद्र शासित प्रदेश में इंटरनेट उपलब्ध कराने के निर्देश दिए।
ये निर्देश इंटरनेट के इस्तेमाल को तरस चुके इलाके के लोगों के लिए कुछ राहत लेकर तो आएगा, लेकिन उन्हें अभी भी कुछ पाबंदियों का सामना करना पड़ेगा। प्रशासन के निर्देश के मुताबिक इंटरनेट की स्पीड अभी 2जी ही रखी जाएगी, 3जी और 4जी नहीं मिलेगा। इंटरनेट पोस्ट-पेड कनेक्शन वाले मोबाइल फोनों में मिलेगा और प्री-पेड कनेक्शन रखने वालों में उन्हीं को मिलेगा जिनका सत्यापन हो चुका होगा।
इसके अलावा ब्रॉडबैंड इंटरनेट का इस्तेमाल सिर्फ एमएसी-बाइंडिंग के जरिए ही हो पाएगा। मैक यानी मीडिया एक्सेस कंट्रोल के जरिए कम्प्यूटर का इस्तेमाल इंटरनेट पर किस गतिविधि के लिए किया जा रहा है इसकी निगरानी सरकार कर सकती है।
एक और निर्देश है, जो चौंकाने वाला है। प्रशासन ने यह भी कहा कि इंटरनेट पर पाबंदी का हटाया जाना सिर्फ 17 मार्च तक वैध रहेगा। निर्देश के इस हिस्से की वजह से यह अभी तक स्पष्ट नहीं हो पाया है कि ये छूट क्या सिर्फ अस्थायी है? इसके बावजूद, जम्मू और कश्मीर के लोगों ने इस कदम से राहत महसूस की और इंटरनेट का इस्तेमाल शुरू कर दिया। कई लोगों ने सोशल मीडिया का इस्तेमाल करते हुए ट्विटर और फेसबुक पर अपने अपने संदेश पोस्ट किए।
पत्रकार अजान जावेद ने लंबे अरसे तक इंटरनेट से वंचित रहने के दर्द को व्यक्त करते हुए लिखा कि अपने घर से इतने आराम से ट्वीट करना उन्हें अभी भी काल्पनिक लग रहा है।
जम्मू और कश्मीर की पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती ने ट्वीट किया कि आखिरकार प्रशासन को सोशल मीडिया पर प्रतिबंध लगाने की निरर्थकता का एहसास हो गया, क्योंकि कश्मीरी लोग प्रतिबंध के बावजूद वीपीएन के जरिये इंटरनेट और सोशल मीडिया का इस्तेमाल कर ही रहे थे।
5 अगस्त 2019 को केंद्र सरकार ने जम्मू-कश्मीर से संबंधित अनुच्छेद 370 और धारा 35 ए को निरस्त किया था। इसके साथ ही जम्मू और कश्मीर का राज्य का दर्जा खत्म कर उसे 2 अलग-अलग केंद्र शासित प्रदेशों में बांट दिया था। कश्मीर तब से एक तरह के लॉकडाउन में है जिसके तहत वहां के नागरिकों पर कई कड़े प्रतिबंध लागू हैं। इन प्रतिबंधों की वजह से वहां आम जीवन अस्त-व्यस्त है।
इंटरनेट पर पाबंदी भी इन्हीं प्रतिबंधों में से एक थी जिसकी वजह से वहां के लोगों को किसी भी काम के लिए इंटरनेट इस्तेमाल करने के लिए घंटों उन दफ्तरों और दुकानों के बाहर कतार में खड़े रहना पड़ता था जिन्हें इंटरनेट उपलब्ध कराने के लिए प्रशासन से इजाजत मिली थी।
इस प्रतिबंध के खिलाफ याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने 10 जनवरी को कहा था कि आम लोगों के लिए इंटरनेट को अनिश्चितकाल तक बंद नहीं रखा जा सकता। सर्वोच्च अदालत ने सरकार को इंटरनेट पर प्रतिबंध के बारे में फिर से विचार करने को कहा था।
लेकिन सरकार ने उस फैसले के बाद भी लगभग 2 महीनों तक प्रतिबंध जारी रखा और अब इसे हटाया भी है तो अस्थायी रूप से। स्पष्ट नहीं हो पा रहा है कि इसे कश्मीर में हालात के सामान्य होने का संकेत माना जाए या नहीं? ध्यान देने लायक बात है कि 3 पूर्व मुख्यमंत्रियों समेत कश्मीर के कई बड़े राजनेता अभी भी हिरासत में हैं और उन पर पीएसए के तहत कड़े आरोप लगे हैं।