Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
मंगलवार, 15 अक्टूबर 2024
webdunia
Advertiesment

मध्य पूर्व में कितनी कामयाब मोदी की कूटनीति?

हमें फॉलो करें मध्य पूर्व में कितनी कामयाब मोदी की कूटनीति?
, शुक्रवार, 16 फ़रवरी 2018 (11:37 IST)
भारत के पीएम नरेंद्र मोदी ने हाल में मध्य पूर्व के तीन देशों का दौरा किया और अब वह दिल्ली में ईरानी राष्ट्रपति की मेजबानी कर रहे हैं। मोदी मध्य पूर्व की प्रतिद्ंवद्वियों से अच्छे रिश्ते कायम करने में कामयाब रहे हैं।
 
ईरान के राष्ट्रपति हसन रोहानी तीन दिन के दौरे पर गुरुवार को भारत पहुंचे। वह अपनी इस यात्रा में दोनों देशों के बीच अरबों डॉलर की ऊर्जा और बुनियादी ढांचे से जुड़ी डीलों को आगे बढ़ाने की कोशिश करेंगे जिनमें ईरान के चाबहार पोर्ट को आधुनिक बनाना भी शामिल है।
 
ईरान सरकार की तरफ से दी गई जानकारी के मुताबिक रोहानी सबसे पहले हैदराबाद जाएंगे जहां वह मुस्लिम विद्वानों से मिलेंगे और कई धार्मिक और सांस्कृतिक स्थलों का दौरा करेंगे। शनिवार को वह दिल्ली पहुंचेंगे जहां प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से उनकी मुलाकात होगी। इस मौके पर दोनों देशों के कारोबारी भी आपस में मिलेंगे।
 
समाचार एजेंसी रॉयटर्स का कहना है कि ईरान चाहता है कि भारत उसके पेट्रोकेमिकल्स प्लांटों, रेलवे और औद्योगिक विकास से जुड़ी परियोजनाओं में निवेश करे। ईरान में इस बात को लेकर चिंता है कि अमेरिका 2016 की परमाणु डील को खत्म करके दोबारा उसके खिलाफ कड़े आर्थिक प्रतिबंध लगा सकता है, जिससे वहां निवेश करने वाले और परियोजनाओं पर दबाव पड़ेगा।
 
भारत ईरानी तेल के अहम खरीदारों में से एक है। 2012 से 2016 के बीच जब अमेरिका और यूरोपीय संघ ने ईरान के खिलाफ प्रतिबंध लगाए तब भारत ने भी ईरान से तेल खरीदना कम कर दिया था, हालांकि पूरी तरह बंद नहीं किया था। भारतीय अखबार इकॉनोमिक्स टाइम्स का कहना है कि ईरान के ऊपर से प्रतिबंध हटने के बाद भारत ने वहां से हर दिन रिकॉर्ड पचास लाख बैरल तेल मंगाया है। प्रधानमंत्री मोदी ने 2016 में ईरान का दौरा किया था और वहां चाबहार पोर्ट को विकसित करने से जुड़ी परियोजना में 50 करोड़ डॉलर का निवेश करने का वादा किया था।
 
ईरान के साथ संबंध मजबूत कर रहे मोदी हाल में मध्य पूर्व के तीन देशों की यात्रा से लौटे हैं। फलस्तीनी इलाकों के अलावा वह ओमान और यूएई भी गए। इससे पहले, इस्राएल के प्रधानमंत्री बेन्यामिन नेतान्याहू ने भारत का छह दिन का दौरा किया। मोदी की कूटनीतिक वार्ताओं से दिखाई देता है कि वह कई संकटों में घिरे मध्य पूर्व क्षेत्र में तटस्थ रुख अपनाकर फायदा उठाने में सक्षम है ताकि वहां भारतीय निवेश से सर्वोत्तम नतीजा हासिल कर सकें।
 
मोदी ने फलस्तीनी प्राधिकरण के साथ छह समझौते पर हस्ताक्षर किए हैं और फलस्तीनी इलाकों में पांच करोड़ डॉलर की मदद और निवेश करने पर सहमति जताई है। इस पैसे से वहां अस्पताल और शैक्षिक संस्थान खोलने की योजना है। मोदी ने फलस्तीनी राष्ट्रपति महमूद अब्बास से मिलने के बाद कहा, "मैं एक बार फिर राष्ट्रपति अब्बास को भरोसा दिलाता हूं कि भारत फलस्तीनी लोगों के हितों का ख्याल रखने के वादे से बंधा हुआ है।"
 
कुछ पर्यवेक्षक मानते हैं कि इस्राएल के साथ बढ़ते रक्षा और आर्थिक संबंधों को संतुलित करने के लिए ही मोदी ने फलस्तीनी इलाकों का दौरा किया। भारत एक अलग फलस्तीनी राष्ट्र के निर्माण के प्रति लंबे समय से प्रतिबद्ध रहा है और उसने 1988 से फलस्तीन को एक देश के तौर पर मान्यता दे रखी है।
 
भारत और ईरान के बीच भी दोस्ताना और पारंपरिक संबंध रहे हैं। हालांकि कई बार भारत को इस मुद्दे पर अमेरिकी दबाव का सामना करना पड़ता है, लेकिन उसने अपने संबंधों में संतुलन बनाए रखा है। अमेरिकी कांग्रेस की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत ने ईरान पर लगे प्रतिबंधों को लागू करने में "आम तौर पर सहयोग" ही किया है। वैसे जब ईरान पर आर्थिक प्रतिबंध लगे थे, तब भी ईरान के साथ आंशिक रूप से भारत के आर्थिक रिश्ते बने रहे।
 
अहम बात यह है कि इस्राएल के साथ भारत के मजबूत होते संबंध कभी ईरान के उसके रिश्तों में बाधा नहीं बने हैं। दिल्ली स्थित संस्था आईडीएसए में रिसर्च फेलो स्मृति पटनायक कहती हैं, "ईरान और भारत के बीच संबंधों की रणनीतिक वजहें हैं। इनका इस्राएल के साथ संबंधों से कोई लेना देना नहीं है।"
 
वेस्ली रान

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi

अगला लेख

क्या चीन और रूस अमेरिकी दबदबे को चुनौती दे रहे हैं?