Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
मंगलवार, 15 अक्टूबर 2024
webdunia
Advertiesment

कोरोना से निपटने में आड़े आ रहा है भारत-पाक तनाव

हमें फॉलो करें कोरोना से निपटने में आड़े आ रहा है भारत-पाक तनाव
, शुक्रवार, 15 मई 2020 (16:30 IST)
रिपोर्ट राहुल मिश्र
 
कोरोना महामारी का दक्षिण एशियाई देशों के संगठन सार्क और आसियान ने अलग-अलग मुकाबला किया है। क्षेत्रीय गुटों में वैश्विक महामारी से लड़ने में आपसी सहयोग में भारी अंतर दिखा है। इसने सहयोग की समस्याओं को उजागर किया है।
कोविड-19 महामारी के बीच भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने एक अप्रत्याशित कूटनीतिक कदम उठाते हुए सार्क के राष्ट्राध्यक्षों की एक वर्चुअल बैठक बुलाई। मोदी ने कोविड-19 से लड़ने के लिए सार्क इमरजेंसी फंड का प्रस्ताव रखा और इसमें 1 करोड़ डॉलर का योगदान देने की पेशकश की। अन्य देशों के सहयोग से यह राशि देखते-देखते 2.18 करोड़ डॉलर पहुंच गई।
 
15 मार्च को हुई इस बैठक में पाकिस्तानी प्रधानमंत्री इमरान खान के अलावा सभी सदस्य देशों के राज्य या सरकार प्रमुख शामिल हुए। इमरान खान का प्रतिनिधित्व उनके विशिष्ट स्वास्थ्य सहायक डॉक्टर जफर मिर्जा ने किया। इस बैठक ने एक बार फिर दिखा दिया कि भारत और पाकिस्तान का विवाद हर पहल को नाकाम कर देता है। सार्क सैटेलाइट के लॉन्च के दौरान भी ऐसा ही हुआ था। बातचीत का इस दौर में सार्क के जरिए दक्षिण एशिया में सहयोग की संभावनाओं और उसकी मुश्किलों को सामने रख गया।
 
इसे दक्षिण एशिया का दुर्भाग्य ही कहा जाएगा कि क्षेत्रीय सहयोग की ओर उठाया हर कदम पहले भारत-पाकिस्तान के तराजू में तुलता है और फिर कहीं इस पर आगे कोई चर्चा होती है। मानो बाकी के 6 सदस्यों- बांग्लादेश, श्रीलंका, नेपाल, भूटान, अफगानिस्तान और मालदीव का कोई अस्तित्व ही न हो। क्या दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग हमेशा ही भारत-पाकिस्तान की तनातनी की बलि चढ़ता रहेगा? क्या दुनिया के तमाम दूसरे क्षेत्रीय संगठनों में सदस्य देशों के बीच कोई तनाव नहीं है? ऐसा बिलकुल नहीं है। शुरुआती कोशिशों के बाद मोदी सरकार ने पाकिस्तान पर सख्त रवैया अपनाया है।
webdunia
दक्षिण-पूर्व एशिया में सहयोग की मिसाल
 
पड़ोस के क्षेत्र दक्षिण-पूर्व एशिया को ही देख लीजिए। भारत और उसके पड़ोसी देशों की तरह ही आसियान के 10 सदस्य देश विकासशील देशों की गिनती में आते हैं। लोकतंत्र और तानाशाही के बीच डूबते-उबरते इन देशों का अतीत दक्षिण एशियाई देशों से बहुत अच्छा नहीं रहा है। मिसाल के तौर पर जब मलाया का विभाजन हुआ और सिंगापुर और मलेशिया 2 स्वतंत्र राष्ट्र बने तो इंडोनेशिया ने इसका पुरजोर विरोध किया और कनफ्रंतासी यानी टकराव की नीति के तहत इसका हर स्तर पर विरोध किया।
 
भारत ने इस विवाद में मलेशिया का समर्थन किया तो इंडोनेशिया पाकिस्तान के समर्थन में उतर गया और 1965 की भारत-पाकिस्तान लड़ाई में उसने पाकिस्तान का समर्थन किया। वियतनाम युद्ध, वियतनाम-कम्बोडिया युद्ध, मलेशिया- फिलीपींस के बीच सीमा विवाद जैसे तमाम मुद्दों ने आसियान की मुश्किलों को दशकों तक बढ़ाए रखा।
 
यही नहीं, दक्षिण चीन सागर के मुद्दे पर भी ब्रूनोई, वियतनाम, मलेशिया और फिलीपींस के बीच विवाद है और वे सब इस पर दावा करते हैं। अगर थोड़ी देर के लिए मान लिया जाए कि चीन दक्षिण चीन सागर में कोई विवाद नहीं करेगा, तो भी आसियान के इन देशों के बीच विवाद सुलझना आसान नहीं है। इसके अलावा भी इन देशों के बीच सबाह, पेड्रा-ब्रानका, प्रीह विहार और म्यांमार से भागे रोहिंग्या शरणार्थियों सहित कई और विवाद रहे हैं।
 
लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि इन देशों ने क्षेत्रीय विकास और आर्थिक प्रगति के रास्तों को अपने जमीनी और अन्य विवादों की वजह से रोके रखा है। दक्षिण एशिया में आज तक एक क्षेत्रीय मुक्त व्यापार समझौता नहीं हो पाया है, तो वहीं आसियान ने 2 दशक पहले 1992 में न सिर्फ ऐसा समझौता कर लिया था, बल्कि आज क्षेत्रीय आर्थिक साझेदारी (आरसीईपी) मसौदे के जरिए वह चीन, जापान, दक्षिण कोरिया, ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड और भारत से एक मेगा ट्रेड समझौते की ओर बढ़ रहा है।
कोरोना के दौरान भी सहयोग
 
कोविड महामारी के दौरान भी आसियान देशों में क्षेत्रीय स्तर पर सहयोग के व्यापक कदम उठाए हैं। अपने सीमित संसाधनों और महामारी से उपजीं अनिश्चितताओं के बावजूद आसियान के देशों ने आपसी सहयोग को बनाए रखा है। मिसाल के तौर पर मलेशिया ने सिंगापुर के लिए अपने पोर्ट खुले रखे और लोगों के आवागमन में बाधा के बावजूद इस संपर्क को नहीं तोड़ा।
 
सिंगापुर कृषि, पोल्ट्री, पशुधन और उससे जुड़े उत्पादों की आपूर्ति में लगभग पूरी तरह आयात पर निर्भर है। पिछले कुछ हफ्तों में आसियान ने सहयोग के तमाम कदम उठाए। वित्तमंत्रियों का 26वां वार्षिक अधिवेशन 10 मार्च को हुआ जिसमें कोविड से लड़ने में आर्थिक स्तर पर सहयोग की रणनीति बनाई गई और पारस्परिक व्यापार के लिए बाजारों को खुला रखने की वचनबद्धता भी दोहराई गई।
 
14 अप्रैल को आसियान की विशेष शिखर भेंट का आयोजन भी हुआ जिसमें सहयोग के तमाम आयामों पर चर्चा हुई। आसियान रेस्पॉन्स फंड पर सहमति के अलावा अधिवेशन के दौरान सिंगापुर ने कोविड के बाद इलाके में क्रॉस-बॉर्डर मूवमेंट का मसौदा पेश किया तो वहीं मलेशिया ने कोविड-19 से जूझने के लिए एक आर्थिक रिकवरी प्लान की पहल की। इसके अलावा पर्यटन और स्वास्थ्य मंत्रियों की बैठकों में भी परस्पर सहयोग के रास्तों पर गहन चर्चा हुई है।
 
कोविड महामारी ने अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस और दुनिया के तमाम बड़े देशों को आईना दिखा दिया है। उन्हें यह अहसास हो चुका है कि दुनिया की कोई ताकत आत्मनिर्भर नहीं है और न ही हो सकती है। आज दुनिया के तमाम देश इसी उम्मीद में बैठे हैं कि साथ मिलकर शायद कोई वैक्सीन बन जाए या कैसे क्षेत्रीय सप्लाई चेन को निर्बाध रूप से चलाया जाए।
 
आसियान जैसे क्षेत्रीय संगठन इस पर तत्परता से लगे हैं और चीन, जापान, अमेरिका और भारत से भी सहयोग चाहते हैं। दक्षिण एशिया के तमाम देशों और सार्क को भी इसकी अहमियत समझनी होगी और साथ ही यह भी कि जिम्मेदारी सिर्फ भारत की या किसी एक देश की नहीं, बल्कि सभी की है।
 
क्षेत्रीय सहयोग के लिए सार्क सहयोग का विचार निस्संदेह अच्छा है लेकिन अब समय आ गया है कि उस पर आगे के कदम उठाए जाएं। जरूरी नहीं कि आठों देश हर मसले पर एकसाथ चलें। यूरोपीय संघ की तर्ज पर 2 गतियों वाला सहयोग हो सकता है। इच्छा और सामर्थ्य के हिसाब से इसमें सदस्य देशों को जोड़ा जा सकता है।
 
यह बात सही है कि पाकिस्तान ने भारत के क्षेत्रीय सहयोग के लक्ष्यों को बहुत चुनौती दी है लेकिन यह भी सच है कि भारत और पाकिस्तान को अपनी आपसी झगड़ों से ऊपर उठकर क्षेत्रीय सहयोग पर ध्यान देना पहले से कहीं अधिक जरूरी हो गया है। भारत और सार्क के अन्य देशों को क्षेत्रीय एजेंडे की एक बड़ी लकीर खींचनी होगी और वो लकीर होगी क्षेत्रीय सहयोग के जरिए आर्थिक विकास और वृद्धि की नई मंजिले पाने की।
 
(राहुल मिश्र मलाया विश्वविद्यालय के एशिया-यूरोप संस्थान में अंतरराराष्ट्रीय राजनीति के वरिष्ठ प्राध्यापक हैं।)

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi

अगला लेख

International Museum Day: म्‍युजियम हमारे इति‍हास और उसके महत्‍व का झरोखा