लाल सागर संकट से भारतीय छोटे निर्यातकों का बढ़ता नुकसान

DW
शनिवार, 17 फ़रवरी 2024 (09:20 IST)
लाल सागर में यमन के हूतियों द्वारा हमलों की वजह से माल ले जाने वाले कई जहाजों को रास्ता बदलना पड़ रहा है। इससे वैश्विक सप्लाई चेनों और विशेष रूप से भारत के छोटे निर्यातकों पर गहरा असर पड़ा है। कोलकाता में रहने वाले निर्यातक अतुल झुनझुनवाला अपने बाल नोच रहे हैं, क्योंकि उन्होंने अभी अभी लाल सागर के संकट की वजह से एक और ऑर्डर गंवा दिया है। इस संकट की वजह से जहाजरानी के उनके खर्चे और माल पहुंचाने का समय काफी बढ़ गया है।
 
उनकी बिनायक हाई टेक इंजीनियरिंग कंपनी हर साल मशीनी उपकरणों, औद्योगिक कास्टिंग और रेलवे शेड सामग्री के करीब 700 कंटेनर जहाजों के जरिए भेजती है। उन्होंने बताया, 'पिछले हफ्ते, मैंने एक बड़ा ऑर्डर पोलैंड के एक प्रतिद्वंदी के हाथों गंवा दिया, क्योंकि उसके लिए माल ढोने के दाम बढ़े नहीं हैं।'
 
झुनझुनवाला ने बताया कि तुर्किये के निर्यातकों का भी भारतीय कंपनियों के नुकसान की वजह से फायदा हो रहा है। उन्होंने यह भी बताया कि उन्होंने बढ़े हुए दामों का बोझ खुद ही उठा लेने के बाद कुछ खरीदारों को ऑर्डर भेजने पर नुकसान भी उठाया है। उन्होंने कहा, 'जिन खरीदारों के साथ आपने दशकों तक काम किया हो, आप उन्हें खोने का जोखिम नहीं उठा सकते।'
 
लाल सागर में यमन के हूतियों द्वारा मिसाइल और ड्रोन हमले बढ़ गए हैं। हूती कहते हैं कि वो गाजा युद्ध में फलस्तीनियों के साथ एकजुटता दिखा रहे हैं। लेकिन उनके हमलों की वजह से कई मालवाहक कंपनियों को अपने जहाजों का रास्ता बदलकर उन्हें स्वेज नहर से दूर अफ्रीका के दक्षिणी छोर पर केप ऑफ गुड होप से होकर भेजना पड़ा है।
 
भारत में बढ़ सकती है बेरोजगारी
 
इस संकट की वजह से वैश्विक सप्लाई चेनें उलट-पुलट गई हैं। यहां तक कि चीनी निर्यातकों को भी बहुत नुकसान हो रहा है। कई सप्लायरों ने दाम, बीमा और माल ढुलाई आधार पर निर्यात संधियों पर हस्ताक्षर किए हैं जिसकी वजह से ढुलाई और बीमा के खर्च में अगर बढ़ोतरी हुई तो उसके लिए वो ही जिम्मेदार होंगे।
 
भारत में छोटे निर्यातकों ने चेतावनी दी है कि नौकरियों का जाना शुरू हो गया है और अगर हूतियों के हमले नहीं रुके तो और नौकरियां जा सकती हैं। भारत साल में 3,735 अरब रुपए मूल्य के उत्पादों का निर्यात करता है और इसमें से 40 प्रतिशत हिस्सा छोटे निर्यातकों का ही है।
 
उद्योग से जुड़े लोगों के अनुमान के मुताबिक ये छोटे निर्यातक इस संकट के पहले से बहुत ही कम मुनाफे पर काम कर रहे थे, जो अमूमन 3 से 7 प्रतिशत के बीच था। चेन्नई में रहने वाले उत्पादक और भारतीय उद्यमियों के संगठन के राष्ट्रीय अध्यक्ष केई रघुनाथन ने बताया, 'लाल सागर के मुद्दे की वजह से भारत के टेक्सटाइल हब तिरुपुर में अभी से नौकरियां जानी शुरू हो चुकी हैं। वहां छोटे निर्यातक अपनी क्षमता के एक-तिहाई स्तर पर काम कर रहे हैं।'
 
उन्होंने यह भी बताया कि ज्यादा समय लगने की वजह से माल ढोने की क्षमता भी कम हो गई है और कंटेनरों की कमी भी एक बड़ी समस्या बनती जा रही है, क्योंकि बड़े निर्यातकों ने बल्क में सभी कंटेनर बुक कर लिए हैं। उन्होंने यह भी कहा कि सरकार को छोटे निर्यातकों की मदद करनी चाहिए, नहीं तो उनमें से कइयों का धंधा बंद ही हो जाएगा। निर्यात संगठनों ने आधिकारिक तौर पर सरकार से राहत मांगी है। सरकार ने व्यापार मंत्रालय में एक समिति बनाई है, जो स्थिति पर नजर रखेगी और मदद के निवेदनों पर विचार करेगी।
 
एक बेहद बेकार समय
 
यूरोप और अमेरिका के साथ भारत के मर्चेंडाइज व्यापार का 80 प्रतिशत से भी ज्यादा हिस्सा सामान्य रूप से लाल सागर से होकर गुजरता है। भारत 1 महीने में लगभग 664 अरब रुपए मूल्य के मर्चेंडाइज यूरोप भेजता है और करीब 498 अरब मूल्य अमेरिका भेजता है।
 
टेक्सटाइल्स, इंजीनियरिंग का सामान (स्टील, मशीनरी और औद्योगिक पुर्जे)- रत्न और आभूषण उन इलाकों में जाने वाले भारत के सबसे बड़े निर्यात हैं। केप ऑफ गुड होप से घूमकर जाने का मतलब है भारत से जाने वाले जहाजों को अक्सर यूरोप में अपने ठिकानों पर पहुंचने से पहले अतिरिक्त 15-20 दिन चाहिए। इससे खर्च बहुत बढ़ जाता है।
 
कजारिया सेरामिक्स के अध्यक्ष अशोक कजारिया ने पिछले महीने समीक्षकों को बताया था कि एक कंटेनर ब्रिटेन भेजने की लागत जहां लाल सागर का संकट शुरू होने से पहले करीब 50,000 रुपए थी, वहीं अब वह बढ़कर 3 लाख रुपयों से भी ज्यादा हो गई है।
 
इंदौर की कपड़ा बनाने वाली कंपनी का खराब समय: इंदौर की कपड़े बनाने की कंपनी प्रतिभा सिंटेक्स के सीओओ नितिन सेठ कहते हैं कि यह कई कपड़ा निर्यातकों के लिए सबसे खराब समय में से एक है। उन्होंने बताया, 'अगर यह स्थिति जारी रही तो कम से कम हार 5वें छोटे निर्यातक को लोगों को नौकरी से निकालना पड़ेगा।
 
कपड़ा उद्योग सीधे 4.5 करोड़ लोगों और दूसरे तरीकों से अतिरिक्त 1.5 करोड़ लोगों को रोजगार देता है। इकलौती आशा की किरण छोटे निर्यातकों को इस बात में नजर आ रही है कि भारत में निर्यात के कई ठेकों का मार्च या अप्रैल में रिन्यूअल होना है। कई छोटे निर्यातकों ने बताया कि उन्हें उम्मीद है कि ग्राहक बढ़े हुए खर्च का थोड़ा का बोझ उठाने के लिए तैयार हो जाएंगे।
 
-सीके/एए (रॉयटर्स)

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