आरबीआई की वार्षिक रिपोर्ट में भारतीय अर्थव्यवस्था पर कोविड-19 के असर की असली तस्वीर सामने आई है। बैंक ने कहा है कि अभी तक के संकेत आर्थिक गतिविधि में एक ऐसे घटाव की तरफ इशारा कर रहे हैं, जो इतिहास में अभूतपूर्व हैं।
कई रेटिंग एजेंसियों और समीक्षकों ने तालाबंदी की वजह से वित्त वर्ष 2020-21 की पहली तिमाही में जीडीपी में 20 प्रतिशत तक की कटौती का पूर्वानुमान लगाया है। आरबीआई का कहना है कि इतिहास में पहली बार भारतीय अर्थव्यवस्था के सिकुड़ने के आसार हैं और इसके महामारी से पहले के स्तर तक वापस पहुंचने में काफी वक्त लगेगा।
बैंक ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि खपत को जो झटका लगा है, वो गंभीर है और जो सबसे गरीब हैं उन्हें सबसे ज्यादा चोट लगी है। रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि मई और जून में अर्थव्यवस्था ने जो गति पकड़ी थी, वो भी अब राज्यों द्वारा स्थानीय तालाबंदी लगाने की वजह से जा चुकी है। इसका मतलब है कि आर्थिक गतिविधि का सिकुड़ना दूसरी तिमाही में भी जारी रहेगा।
जानकार मानते हैं कि यूं तो अभी भी आरबीआई पूरी हकीकत नहीं दिखा रहा है, फिर भी यह रिपोर्ट स्थिति की एक ईमानदार समीक्षा के करीब है। जाने-माने अर्थशास्त्री प्रोफेसर अरुण कुमार कहते हैं कि हालात इतने खराब हैं कि अगर हम एक बहुत ही आशावादी परिदृश्य लेकर चलें तो आर्थिक विकास दर माइनस 12 प्रतिशत होने की आशंका है। उनका अनुमान है कि असलियत यह है कि विकास दर माइनस 37.5 रहेगी।
माइनस विकास दर के मायने?
अरुण कुमार ने डीडब्ल्यू को बताया कि इसका मतलब है कि अर्थव्यवस्था में 70 लाख करोड़ रुपए की कटौती होगी और एफएमसीजी, फार्मा और आईटी को छोड़कर सभी क्षेत्रों में निवेश गिरेगा, खपत गिरेगी, सरकार के लिए राजस्व में भारी गिरावट आएगी, जीएसटी से कमाई आधी हो जाएगी, नौकरियां जाने की वजह से आयकर से कमाई भी गिरेगी, कॉपोर्रेट सेक्टर घाटा दिखाएगा जिस वजह से कॉर्पोरेट टैक्स से कमाई भी बुरी तरह से गिरेगी।
वे कहते हैं कि पूरे का पूरा बजट ही अर्थहीन हो गया है इसलिए सरकार को चाहिए कि अपने खर्च में भी कटौती करे और राजस्व और खर्च की नए सिरे से समीक्षा करे ताकि आगे की योजना बनाई जा सके। उनका अनुमान है कि इस स्थिति के 2 से 3 साल से कम में संभलने के आसार नजर नहीं आते।
वरिष्ठ पत्रकार अंशुमान तिवारी भी कहते हैं कि सरकार अभी तक एक नकली आशावादी स्थिति की धारणा बनाने की कोशिश कर रही थी, जो कि अब धीरे-धीरे टूटकर गिर रही है। उन्होंने डीडब्ल्यू से बातचीत में कहा कि सबसे पहली बात तो यह है कि भारत इस वक्त बहुत ही गहरी आर्थिक मंदी की चपेट में है। दूसरी बात यह है कि चूंकि अर्थव्यवस्था पहले से ही सुस्त थी इसलिए हमारे लिए यह दोहरी चोट है। वे कहते हैं कि चूंकि भारत की अर्थव्यवस्था खपत पर आधारित है इसलिए खपत को गंभीर झटका लगने से पूरी व्यवस्था को झटका लगा है।
पहले खपत या पहले आय?
अंशुमान का यह भी कहना है कि यह एक पहेली ही है कि खपत नहीं होगी तो आर्थिक गतिविधि ना होने से आय नहीं होगी, और जब तक आय नहीं होगी तब तक खपत कैसे होगी? उनका यह भी आकलन है कि लोगों को खपत के लिए प्रोत्साहित करने के लिए सरकार पैसा नहीं लगा सकती क्योंकि सरकार के पास भी अपना खर्च बढ़ाने की गुंजाइश नहीं है।
वो कहते हैं कि यही कारण है कि आरबीआई भले ही दो-टूक ना कह रहा हो, लेकिन वो सरकार को और लोगों को यही बताने की कोशिश कर रहा है कि हालात अपनी ही गति से सुधरेंगे, इस स्थिति से उबरने में काफी समय लगेगा और इसलिए सबको कमर कस लेनी चाहिए क्योंकि इस स्थिति को ठीक करने वाली कोई जादू की छड़ी नहीं है।
बहरहाल, आरबीआई ने सुझाव दिया है कि इस्पात, कोयला, ऊर्जा, जमीन और रेल जैसे क्षेत्रों में अपने संपत्ति का इस्तेमाल कर और बंदरगाहों का निजीकरण कर सरकार अर्थव्यवस्था में निवेश करने के लिए धन जुटा सकती है और निजी निवेश को प्रोत्साहित कर सकती है।