पवन ऊर्जा का लक्ष्य कैसे पूरा करेगा जर्मनी?

DW
बुधवार, 7 फ़रवरी 2024 (10:26 IST)
-येंस थुराऊ
 
जर्मनी ने 2030 तक अपने पवन ऊर्जा फार्मों से ऊर्जा उत्पादन को 4 गुना करने का लक्ष्य रखा है लेकिन मौजूदा नीतियां और आंकड़े इस लक्ष्य के पूरा होने को लेकर शंका पैदा करते हैं। जर्मनी की 3 पार्टियों वाली गठबंधन सरकार ने अपने मतभेदों को किनारे रखते हुए नई पॉवर प्लांट स्ट्रैटजी पर सहमति बना ली है।
 
जर्मनी के क्लाईमेट प्लान के मुताबिक 2030 तक देश में 80 फीसदी बिजली अक्षय ऊर्जा स्रोतों से आनी है। फिलहाल इन स्रोतों से ऊर्जा का केवल 50 फीसदी हासिल होता है। चांसलर ओलाफ शॉल्त्स की अगुआई वाली सरकार की इस बात के लिए आलोचना होती रही है कि 2023 में आखिरी परमाणु प्लांट बंद करने के बाद उसके पास ऊर्जा पैदा करने को लेकर कोई योजना नहीं है। इस लिहाज से यह एक अहम कदम है।
 
चांसलर ओलाफ शॉल्त्स इस बात को लेकर उम्मीदों से भरे हैं कि उनकी गठबंधन सरकार, देश को अक्षय ऊर्जा की तरफ ले जाने में कामयाब होगी। जर्मनी में बजट, नौकरशाही और हताशा के माहौल के बावजूद उनकी यह उम्मीद बनी हुई है। इसी फरवरी में उन्होंने पोट्सडाम में कहा कि अगर हम अपना लक्ष्य हासिल कर लेते हैं तो मुझे पूरी आशा है कि हम कोयले, गैस और तेल पर पिछले 200 सालों से चले आ रही औद्योगिक प्रगति की परंपरा को तोड़ पाएंगे।
 
फिलहाल जर्मनी में करीब 30 फीसदी बिजली उत्पादन कोयले और गैस से हो रहा है। देश में खपने वाली बिजली का आधा हिस्सा पवन चक्कियों से बन रहा है। सरकार पूरी तरह से अक्षय ऊर्जा स्रोतों पर निर्भरता चाहती है जिसके लिए उत्तरी सागर और बाल्टिक सागर में विशालकाय पवन ऊर्जा फार्म लगाए गए हैं।
 
समुद्र में अब तक करीब 15,000 टरबाइन लगाए जा चुके हैं, जहां तेज और लगातार आती हवा पर निर्भर रहना मुमकिन है। कुल मिलाकर यहां से 8.5 गीगावॉट बिजली बनती है। योजना है कि 2030 तक इसे बढ़ाकर 30 गीगावॉट कर लिया जाए।
 
क्या बस के बाहर हैं लक्ष्य?
 
इस लक्ष्य को हासिल करने के लिए जर्मनी को अगले 6 साल के भीतर, पवन ऊर्जा उत्पादन चौगुना करना होगा। ऊर्जा क्षेत्र के जानकार कहते हैं कि यह करना मुश्किल हो सकता है। जर्मनी की विंड एनर्जी एसोसिएशन का कहना है कि साल 2023 में केवल 27 पवन चक्कियों को ही पॉवर ग्रिड से जोड़ा जा सका। कई व्यापार संगठनों ने भी एक संयुक्त बयान जारी करके कहा कि इस तरह के लक्ष्य हासिल करने के लिए, पवन ऊर्जा क्षेत्र का जबर्दस्त विस्तार करना जरूरी है।
 
फेडरल मेरीटाइम एंड हाइड्रोग्राफिक एजेंसी ने हाल ही में लिखे एक पत्र में चेतावनी दी है कि उत्तरी सागर में कुछ ग्रिड कनेक्शन पूरे करने के काम में लगभग 2 साल तक की देरी हो सकती है। जर्मनी की फेडरल एसोसिएशन ऑफ ऑफशोर एनर्जी के प्रमुख, स्टीफान थिम ने कहा कि अगर यह स्थिति बनी रहती है या और भी बिगड़ती है तो विस्तार से जुड़े जिन लक्ष्यों पर सहमति बनी है, उन पर सवाल खड़े होंगे और वैल्यू चेन में अनिश्चितता की स्थिति पैदा होगी।
 
बुनियादी ढांचे की चुनौतियां
 
समुद्र में पवन चक्कियां लगाकर बिजली बनाना एक बात है लेकिन उस बिजली को बड़े-बड़े तारों के जरिए तट तक लाना बिलकुल अलग बात है। इसी तरह का मसला है। बड़े कन्वर्टर लगाना जो ऊर्जा को डाइरेक्ट करंट में बदलकर उसे उत्तरी जर्मनी से दक्षिण और पश्चिम में स्थित देश के मुख्य औद्योगिक इलाके तक भेजें। जानकारों का अनुमान है कि जर्मनी के समुद्र तटीय इलाकों में पवन ऊर्जा क्षेत्र का विस्तार करने के लिए 270 फुटबॉल मैदानों जितना क्षेत्र विकसित करना होगा।
 
ऑफशोर विंड एनर्जी फाउंडेशन की मैनेजिंग डाइरेक्टर कारीना वुर्त्स कहती हैं कि 'समुद्र तट, मुख्य पवन ऊर्जा हब हैं। वे बताती हैं कि तट, पवन ऊर्जा फार्म लगाने और उन्हें निकालने के लिए अहम हैं, साथ ही वे उत्पादन साइट के ऑपरेशन और रखरखाव के लिए सर्विस पोर्ट के तौर पर भी काम करते हैं।
 
नीदरलैंड्स और डेनमार्क से पिछड़ा जर्मनी
 
वुर्त्स कहती हैं कि जर्मनी के पड़ोसी देशों जैसे नीदरलैंड्स और डेनमार्क ने पवन ऊर्जा से जुड़ा बुनियादी ढांचा कहीं ज्यादा तेजी और प्रभावी ढंग से विकसित किया है। 'एम्सहाफेन और इस्बिया में डच और डेनिश पोर्टों में पवन ऊर्जा सेक्टर को विकसित करने पर पूरा ध्यान दिया गया है जिसने जर्मन पोर्टों से एक बड़ा मार्केट शेयर हथिया लिया है, जहां दूसरे बिजनेस भी विकसित हो गए हैं।
 
इस क्षेत्र में भयंकर प्रतियोगिता है, उदाहरण के लिए स्पेशलिस्ट कन्वर्टर बनाने वाली कंपनियों की बड़ी मांग है। इसकी वजह यही है कि जर्मनी की तरह कई देश अपने ऑफशोर पवन ऊर्जा क्षेत्र को विकसित करना चाहते हैं। हालांकि पर्यावरण के लिए काम करने वाले गैर सरकारी समूह ग्रीनपीस का कहना है कि जर्मन सरकार ने गलत प्राथमिकताएं तय की हैं, जैसे कि लिक्विफाइड नैचुरल गैस या एलएनजी टर्मिनलों में बहुत सारा पैसा लगाना। ग्रीन पीस में ऊर्जा और पर्यावरण मामलों के विशेषज्ञ मार्टिन काएजर का कहना है कि बहुत तेजी के साथ बिलकुल गैर-जरूरी एलएनजी टर्मिनल बनाने की बजाए ओलाफ शॉल्त्स को अपना ध्यान पवन ऊर्जा फार्म बनाने में लगाना चाहिए ताकि पहले से हो चुकी देरी को जल्द से जल्द पूरा किया जा सके।
 
काएजर कहते हैं कि यह बिलकुल अस्वीकार्य है कि जर्मनी में कन्वर्टर स्टेशनों की कमी और चांसलर की गलत प्राथमिकताओं की वजह से जर्मनी अपने अक्षय ऊर्जा लक्ष्यों को हासिल करने में पिछड़ रहा है। सरकार ने 2022 की शुरुआत में यूक्रेन पर रूसी चढ़ाई के बाद रूस से आने वाली गैस सप्लाई खत्म होने के बाद एलएनजी टर्मिनल बनाए थे। देश को गैस की जरूरत पूरी करने के लिए दूसरे देशों की तरफ मुड़ना पड़ा।
 
पवन ऊर्जा के लिए फंड की कमी
 
सरकार के पास समुद्र के सहारे पवन ऊर्जा क्षेत्र को विकसित करने के लिए पर्याप्त पैसे नहीं है, उसे नए लोन लेने होंगे जिसकी कानून इजाजत नहीं देता। हालांकि जैसे जर्मनी में स्पेशल आर्म्ड फोर्सेज फंड मुमकिन है, वैसे ही पवन ऊर्जा क्षेत्र के लिए एक विशेष फंड जुटाने की संभावना है।
 
जर्मनी की अर्थनीति और पर्यावरण मामलों के लिए जिम्मेदार मंत्री रॉबर्ट हाबेक ने हाल ही में जर्मन संसद में ऐसा एक फंड बनाने की सिफारिश की थी जिससे पवन ऊर्जा सेक्टर का विस्तार किया जा सके और दूसरे मसले भी सुलझाए जा सकें। हालांकि सरकारी गठबंधन में शामिल पार्टी फ्री डेमोक्रेट्स समेत विपक्ष ने हाबेक का प्रस्ताव ठुकरा दिया।

Related News

Show comments
सभी देखें

जरूर पढ़ें

मेघालय में जल संकट से निपटने में होगा एआई का इस्तेमाल

भारत: क्या है परिसीमन जिसे लेकर हो रहा है विवाद

जर्मनी: हर 2 दिन में पार्टनर के हाथों मरती है एक महिला

ज्यादा बच्चे क्यों पैदा करवाना चाहते हैं भारत के ये राज्य?

बिहार के सरकारी स्कूलों में अब होगी बच्चों की डिजिटल हाजिरी

सभी देखें

समाचार

केशव प्रसाद मौर्य का दावा, 2047 तक सत्ता में नहीं आएगी सपा

LIVE: भारत का 5वां विकेट गिरा, ध्रुव जुरेल 1 रन बनाकर पैवेलियन लौटे

पीएम मोदी ने बताया, युवा कैसे निकाल रहे हैं समस्याओं का समाधान?

अगला लेख
More