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भारत पर लगे ट्रंप के टैरिफ की चपेट में कश्मीरी कारीगर

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, सोमवार, 15 सितम्बर 2025 (08:51 IST)
रिफत फरीद सोनम मिश्रा
अमेरिका लंबे समय से भारत के हस्तकला उद्योग का बड़ा खरीदार रहा है, लेकिन डॉनल्ड ट्रंप के नए टैरिफ दर लागू होने के बाद से इस उद्योग पर संकट मंडरा रहा है। ऐसे में ग्रामीण कश्मीर के कारीगर अपने भविष्य को लेकर चिंतित हैं।
 
65 वर्षीय अख्तर मीर भारत प्रशासित कश्मीर के हवल में मिट्टी और ईंटों से बने एक पुराने तीन-मंजिला घर में अपने पेपर-मैशे कारीगरों का नेतृत्व करते हैं। कारीगर फर्श पर पालथी मारकर बैठे हैं और वह फूलों और पक्षियों के रंग-बिरंगे डिजाइनों से फूलदान, हाथी और सजावटी डिब्बियां बना रहे हैं। उनके हाथ पूरी तरह रंगों से सने हुए है। इन रंगों की महक वर्कशॉप में जगह-जगह फैली हुई है।
 
पिछली तीन पीढ़ियों से मीर का परिवार इस नफीस कला को सिखाता और इसके प्रति जुनून को आगे बढ़ाता रहा है। आज, यह वर्कशॉप ना सिर्फ मीर की पारिवारिक विरासत है, बल्कि दर्जनों स्थानीय कारीगरों के लिए उनके परिवार पालने का सहारा भी है।
 
हर साल मीर और उनकी टीम अमेरिका और यूरोप भेजे जाने वाले क्रिसमस के लिए खास पेपर मैशे उत्पाद तैयार करती है। डॉनल्ड ट्रंप प्रशासन के भारत पर नए टैरिफ लगाए जाने के बाद इस बार त्योहारों का मौसम अलग हो सकता है।
 
मीर ने डीडब्ल्यू को बताया, "हम नए टैरिफ को लेकर चिंता में हैं। अभी तक हमें क्रिसमस के लिए ऑर्डर नहीं मिले हैं।” उन्होंने कहा, "अगर हमें ऑर्डर नहीं मिले तो मेरे कारीगरों की रोजी-रोटी पर असर पड़ेगा।” हालांकि, चिंता की वजह सिर्फ ट्रंप के टैरिफ ही नहीं हैं। कश्मीरी कारीगर अपने बहुत से सामान सैलानियों को भी बेचते हैं। अप्रैल में पहलगाम हमले के बाद इस साल पर्यटकों की संख्या में भी भारी गिरावट आई है।
 
‘अब यह काम हमें खुशी नहीं देता'
शानदार कश्मीरी कालीन बुनने वाले लोग भी इस बात से चिंतित हैं कि कहीं अमीर अमेरिकी खरीदारों के नाम होने से उनका व्यापार ना खत्म हो जाए। उत्तर कश्मीर के कुंजर गांव के कालीन बुनकर अब्दुल मजीद ने कहा, "अब यह काम हमें खुशी नहीं देता, इसमें बस तनाव और अनिश्चितता है।”
 
कई सालों से अमेरिका में कपड़े, कालीन और हस्तशिल्प की मांग ने कश्मीर के हस्तशिल्प उद्योग को काफी मजबूती दी है। रूस के तेल को लेकर वॉशिंगटन और नई दिल्ली के बीच हुए विवाद के चलते अमेरिका ने भारत से आने वाले कई सामानों पर50 फीसदी तक टैरिफ लगा दिया है।
 
इसके बाद विदेशी खरीदार, जो पहले से ही कश्मीरी हस्तशिल्प के लिए ऊंची कीमतें चुका रहे थे। उनके लिए अब नए टैरिफ लगने के बाद दाम और भी बढ़ गए हैं, जिससे मांग कम होने की आशंका है। इसकी वजह से हजारों कारीगरों की रोजी-रोटी खतरे में पड़ सकती है।
 
हस्तशिल्प में इटली बन सकता है भारत का प्रतिद्वंद्वी
कश्मीर चैम्बर ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री (केसीसीआई) ने अमेरिकी टैरिफ को हस्तशिल्प क्षेत्र के लिए "विनाशकारी” करार दिया है।
 
केसीसीआई के अध्यक्ष जावेद अहमद टेंगा ने कहा, "हम मानते हैं कि सरकार इस पर काम कर रही है और निर्यातकों को प्रोत्साहन देकर व्यापार को काफी हद तक संतुलित कर सकती है।”
 
कश्मीर के हस्तशिल्प एवं हथकरघा विभाग के एक वरिष्ठ अधिकारी ने डीडब्ल्यू को बताया कि कश्मीर से सामान खरीदने के बजाय अमेरिकी ग्राहक इटली जैसे देशों का रुख कर सकते हैं, जहां अमेरिकी टैरिफ केवल 15 फीसदी तक ही सीमित है।
 
अधिकारी ने कहा, "इसका मतलब साफ है कि कश्मीर का हस्तशिल्प बाजार से बाहर धकेला जा रहा है। कई अमेरिकी ग्राहकों ने पहले ही अपने ऑर्डर रोक दिए हैं, जिससे हमारे करघे और कारीगरों को काम में लगाना मुश्किल हो रहा है। इसका नतीजा बेरोजगारी हो सकता है।”
 
लगभग चार लाख कारीगरों के नाम राज्य सरकार के पास दर्ज हैं।  एक अधिकारी ने नाम जाहिर नहीं करने की शर्त पर बताया, अगर उनके काम में कोई बड़ी बाधा आती है तो यह ना केवल रोजगार का नुकसान होगा, बल्कि इससे पारंपरिक कौशल भी खत्म हो सकता है।
 
अधिकारी ने कहा, "जब कोई कारीगर किसी और पेशे की ओर चला जाता है, तो हम ना सिर्फ मौजूदा कामगारों को खो देते हैं बल्कि भविष्य में इतनी उच्च-गुणवत्ता वाले सामान बनाने की क्षमता को भी गंवा बैठते हैं।”
 
अमेरिकी खरीदारों की पहुंच से बाहर हुए लग्जरी सामान
भारत और अमेरिका के बीच टैरिफ के तनाव से पहले, निर्यात किए जाने वाले सामान पर सिर्फ 8 से 12 फीसदी आयात शुल्क लगता था। उस समय अमेरिकी खरीदार हर साल करीब 1।2 अरब डॉलर खर्च कर भारत के लगभग 60 फीसदी हस्तशिल्प उत्पाद खरीदते थे।
 
कश्मीरी हस्तशिल्प निर्यातक, मुजतबा कादरी ने बताया कि ट्रंप के टैरिफ ने इस क्षेत्र के हस्तशिल्प उद्योग को गहरी चोट पहुंचाई है। कादरी के अनुसार, लग्जरी सामान बढ़ती कीमतों से सबसे ज्यादा प्रभावित होते हैं क्योंकि खरीदार ऐसे सामान की खरीद को टाल देते हैं या कई बार तो बिल्कुल छोड़ ही देते हैं।
 
उन्होंने कहा, "50 फीसदी टैरिफ बढ़ने के बाद कश्मीर से अमेरिका जाने वाला हर सामान जैसे कि शॉल, कालीन, पेपर मैशे, लग्जरी और गैर-जरूरी श्रेणी में आ गया है।” मी एंड के नाम की कश्मीरी ऊन की बुनाई और निर्यात करने वाली कंपनी चलाने वाले कादरी ने बताया, "हमारी कंपनी के 80 फीसदी निर्यात अमेरिका जाते हैं। इसलिए इसका असर बहुत बड़ा होगा। जैसे एक शॉल जिसकी कीमत पहले 300 डॉलर थी। वह अब 450 डॉलर में बिकेगी। जो कि एक बड़ा उछाल है। जिसका नतीजा यह हो सकता है कि ज्यादातर लोग अपने ऑर्डर रद्द कर देंगे।”
 
कारोबार पर अनिश्चितता का साया
विशेषज्ञ चेतावनी दे रहे हैं कि नए टैरिफ के कारण भारत का निर्यात आधा हो सकता है। जिससे लगभग पांच से सात लाख कारीगरों की नौकरियां खतरे में पड़ सकती हैं। कश्मीर की राजधानी, श्रीनगर के बाहरी इलाके जोनिमर में रहने वाली शॉल बुनकर अफरोजा जान भी इस दबाव को महसूस कर रही हैं।
 
अपने घर के करघे पर दिनभर काम करने वाली 39 वर्षीय अफरोजा ने डीडब्ल्यू को बताया, "यह बहुत मेहनत और मशक्कत का काम है। काम करते-करते मेरी आंखों में दर्द होता है, पीठ में भी तकलीफ होती है। लेकिन यह हमारा एकमात्र रोजगार है।”उन्होंने बताया , "हमारे डीलर ने भी कुछ ऑर्डर रद्द कर दिए हैं, यह कहकर कि बाजार में अनिश्चितता है।”
 
अफरोजा के पति और देवरानी भी लग्जरी शॉल बुनते हैं, जिन्हें बनाने में महीनों से लेकर सालों का समय भी लग जाता है। बड़े ऑर्डरों को पूरा करने के लिए उनके परिवार के दस से ज्यादा लोग मिलकर काम करते हैं। उन्होंने कहा, "अगर हम अपना काम खो देंगे तो इससे पूरा परिवार प्रभावित होगा।”

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