जर्मनी में इस समय संसदीय चुनावों की सरगर्मियां हैं। जर्मनी में भारत जैसी संसदीय व्यवस्था है लेकिन चांसलर का चुनाव भारत के प्रधानमंत्री से अलग है। कितना अलग है चांसलर का चुनाव भारतीय प्रधानमंत्री से?
जर्मनी में चुनाव प्रचार की शुरुआत होने से पहले ही बड़ी पार्टियां इस शीर्ष पद के लिए अपने उम्मीदवार घोषित करती हैं। इस साल हो रहे चुनावों में चांसलर मैर्केल की सत्ताधारी सीडीयू/सीएसयू पार्टियों के असावा देश को 3 बार चांसलर देने वाली सोशल डेमोक्रैटिक पार्टी और ग्रीन पार्टी ने अपने चांसलर उम्मीदवारों की घोषणा की है। ये पार्टियां इन नेताओं के नाम पर चुनाव लड़ती हैं, किंतु चांसलर का चुनाव तब तक पूरा नहीं होता है जब तक नई संसद बुंडेस्टाग में होने वाले मतदान में किसी उम्मीदवार को बहुमत वोट न मिल जाए।
जर्मनी में हमेशा 2 या 3 पार्टियों के गठबंधन वाली सरकार रही है। नई संसद को आम चुनाव के 30 दिनों के भीतर इसकी पहली बैठक बुलानी पड़ती है। ताकि अधिकतम सीटें जीतने वाली पार्टी जल्द से जल्द सरकार बनाने का काम शुरू कर सके। अब तक सबसे ज्यादा सीटें हासिल करने वाली पार्टी को सरकार बनाने का असली दावेदार माना जाता है। चुनाव में जीत हासिल करने वाली पार्टी बहुमत सरकार बनाने के लिए एक या अधिक पार्टियों से बातचीत करती है ताकि साझा कार्यक्रमों के आधार पर गठबंधन बनाया जा सके और नई सरकारी बुंडेस्टाग में पूर्ण बहुमत प्राप्त कर सके।
जीत के बाद सरकार बनाने की कवायद
एक बार जब यह साफ हो जाता है कि सबसे ज्यादा सीटें जीतने वाली पार्टी किसके साथ गठबंधन बनाएगी, तब गठबंधन के अनुबंध के प्रारूप पर विमर्श किया जाता है जो नई सरकार के गठन का आधार होती है। इस समझौते में 4 साल के लिए नई सरकार की योजनाओं का जिक्र होता है। इसी बातचीत के दौरान गठबंधन के सहयोगी दल यह तय करते हैं कि वे किसे चासंलर बनाना चाहते हैं तथा किसे मंत्रिमंडल में जगह देना चाहते हैं। ये तय होता है कि सबसे बड़ी पार्टी का चांसलर उम्मीदवार ही संसद में होने वाले चुनाव में गठबंधन पार्टियों का चांसलर उम्मीदवार भी होगा।
इसके बाद नवनिर्वाचित 600 से अधिक सदस्यों के लिए बुंडेस्टाग का पहले सत्र की बैठक बुलाई जाती है, जिसमें वे नए चांसलर के लिए गुप्त मतदान में भाग लेते हैं। यह राष्ट्रपति पर निर्भर करता है कि वे बुंडेस्टाग की पहली बैठक में चाहें तो किसी प्रत्याशी के बारे में सुझाव दें। यह बाध्यता नहीं है कि वे उस व्यक्ति का नाम प्रस्तावित करें जिसे गठबंधन वार्ता के दौरान चुना गया हो। उनसे ऐसे उम्मीदवार का नाम प्रस्तावित करने की उम्मीद की जाती है जिसके जीतने की संभावना हो। यदि वह व्यक्ति पहले दौर की वोटिंग में पूर्ण बहुमत प्राप्त करता है तो राष्ट्रपति को उसे चांसलर नियुक्त करना होगा।
अब तक पहले ही दौर में चुने गए चांसलर
अब तक सभी जर्मन चांसलर को पहले दौर में ही चुना गया है। हालांकि कभी-कभी बहुमत बहुत मामूली रहा है। कोनराड आडेनावर 1949 में पश्चिम जर्मनी पहले चांसलर चुने गए थे। वे अब तक सबसे कम बहुमत से जीतने वाले चांसलर हैं। 1974 में चांसलर चुने जाने वाले हेल्मुट श्मिट और 1982 में चांसलर बनने वाले हेल्मुट कोल को बहुमत के लिए जरूरी मतों से महज एक वोट ज्यादा हासिल हुआ था। 4 बार चांसलर बनने वाली अंगेला मैर्केल के लिए सबसे कम अंतरों से चुनाव जीतने का अनुभव 2009 में रहा जब उन्हें संसद के 612 सदस्यों में से सिर्फ 323 का समर्थन मिला। यह चासंलर बनने के लिए जरूरी मतों से सिर्फ 16 ज्यादा था।
यदि चुनाव के पहले दौर में चांसलर के उम्मीदवार को पूर्ण बहुमत नहीं मिलता तो चुनाव का दूसरा दौर शुरू होता है। इस दौर में संसद के सदस्य दूसरे उम्मीदवारों के नाम प्रस्तावित कर सकते हैं, लेकिन इन प्रत्याशियों को बुंडेस्टाग के एक चौथाई सदस्यों का समर्थन होना जरूरी है। इसके बाद के 2 हफ्ते में चांसलर का चुनाव हो जाने तक मतदान के कई दौर हो सकते हैं। यदि 14 दिन के अंत तक भी कोई चांसलर नहीं चुना जाता है तो एक बार आखिरी दौर की वोटिंग होती है।
क्या होता है जब किसी को बहुमत न मिले
इस दौर में यदि कोई प्रत्याशी पूर्ण बहुमत प्राप्त कर लेता है तो उसका नाम तुरंत ही चांसलर के लिए तय कर दिया जाता है और राष्ट्रपति उसे चांसलर नियुक्त कर देंगे। लेकिन वह अगर उसे बहुमत तो नहीं लेकिन सबसे ज्यादा वोट मिलते हैं तो राष्ट्रपति के पास यह तय करने के लिए सात दिनों का समय होता है कि अल्पमत चांसलर को स्वीकार किया जाए या नहीं, जिसे पूर्ण बहुमत प्राप्त चांसलर के समान ही अधिकार होंगे या फिर बुंडेस्टाग को भंग कर दिया जाए। अगर राष्ट्रपति संसद को भंग करने का फैसला करते हैं तो 60 दिनों के अंदर फिर से संसद का चुनाव करवाना अनिवार्य है।